रैगांव सीट पर दलित मतदाता रहेंगे अहम, जानिए सीट के जातिगत समीकरण और पूरा चुनावी गणित?
रैगांव विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव को लेकर राजनीति दलों ने तैयारियां शुरू कर दी हैं.
अर्पित पांडेय/सतनाः मध्य प्रदेश की रैगांव विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव की आहट को लेकर सियासी सरगर्मियां तेज हो गई है. बीजेपी विधायक जुगल किशोर बागरी के निधन से यह सीट खाली हुई है और यहां उपचुनाव होने हैं. अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित इस सीट पर बीजेपी और कांग्रेस में मुख्य मुकाबला होता आया है लेकिन बहुजन समाज पार्टी भी यहां एक बड़ी ताकत मानी जाती है. ऐसे में हम रैगांव सीट की चुनावी गणित बता रहे हैं. साथ ही यह भी बताएंगे कि यह सीट बीजेपी-कांग्रेस के क्यों अहम है.
रैगांव सीट का इतिहास
1977 से अस्तित्व में आई सतना जिले की रैगांव विधानसभा सीट पर अब तक 10 विधानसभा चुनाव हुए हैं. जिनमें से पांच बार बीजेपी ने जीत दर्ज की है, तो दो बार इस सीट पर कांग्रेस को जीत मिली है. जबकि एक बार बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी ने विजयश्री हासिल की थी. इसके अलावा दो बार अन्य दलों के प्रत्याशियों ने भी यहां जीत का स्वाद चखा है. इस लिहाज से रैगांव सीट पर बीजेपी की जीत का प्रतिशत 71 प्रतिशत रहा है तो कांग्रेस की जीत का मार्जिन 29 प्रतिशत रहा. यही वजह है कि रैगांव विधानसभा सीट बीजेपी का दबदबे वाली सीट मानी जाती है.
जातिगत समीकरण
रैगांव सीट विंध्य अंचल में आती है. अनुसूचित जाति और ओबीसी वर्ग के मतदाता यहां प्रमुख भूमिका में होते हैं जबकि सवर्ण वोटरों पर भी सभी दलों की नजर रहती हैं. अनुसूचित जाति वर्ग में रैगांव सीट पर हरिजन, कोरी और बागरी समुदाय के सबसे ज्यादा वोटर हैं. वहीं ओबीसी वर्ग से कुशवाहा और पटेल समुदाय के मतदाता अहम माने जाते हैं. यही वजह है कि बीजेपी-कांग्रेस हो या बसपा ये तीनों दल संगठनात्मक रुप से इन वर्गों के बीच सक्रिय हो चुके हैं. हालांकि अभी यह तय नहीं है कि बहुजन समाज पार्टी यहां से उपचुनाव लड़ती है या नहीं?
राजनीतिक जानकार की नजर में रैगांव उपचुनाव
रैगांव विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव को लेकर जिले के राजनीतिक जानकार और वरिष्ठ पत्रकार अशोक शुक्ला से बातचीत की. उन्होंने कहा कि कि रैगांव विधानसभा सीट बीजेपी की दबदबे वाली सीट रही है. 2018 के चुनाव में भी बीजेपी के जुगल किशोर बागरी ने यहां बड़ी जीत दर्ज की थी. उन्होंने कहा उपचुनाव में भी बीजेपी सहानुभूति की लहर बनाए रखने के लिए जुगलकिशोर बागरी के परिवार से ही किसी को टिकिट दे सकती है. हालांकि 2013 के विधानसभा चुनाव में यहां बसपा ने जीत दर्ज की थी. लेकिन अब माहौल बदल गया है. बसपा पहले यहां मजबूत थी लेकिन 2018 के चुनाव में तीसरे नंबर पर पहुंच गई. ऐसे में उपचुनाव में लड़ाई बीजेपी और कांग्रेस के बीच होती दिख रही है.
रैगांव सीट अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित है. जिसके चलते यहां बसपा का अच्छा प्रभाव देखने को मिलता था. लेकिन अब अनुसूचित जाति वर्ग के वोटर का रूझान फिर से बीजेपी की तरफ होने लगा है. प्रधानमंत्री आवास योजना, किसान सम्मान निधि, अंत्योदय जैसी योजना सहित अन्य कामों के चलते दलित वोट बैंक का फायदा बीजेपी को मिलता दिख रहा है. उन्होंने बताया कि कोरी और बागरी समुदाय के सबसे ज्यादा वोटर हैं. ऐसे में दोनों दल इन्ही वर्ग से आने वाले प्रत्याशियों पर दांव लगा सकती है.
कांग्रेस को राजनीतिक क्षत्रपों को साथ में लेना होगा
रैगांव विधानसभा सीट पर कांग्रेस को बीजेपी से कही ज्यादा मेहनत करने की जरूरत है. ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने के बाद भी कांग्रेस में खेमेबाजी बंद नहीं हुई है. कमलनाथ सहित कांग्रेस के कई सीनियर नेताओं के बीच आंतरिक कलह देखने को मिली है. अशोक शुक्ला कहते हैं कि विंध्य में पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह कांग्रेस के सबसे बड़े क्षत्रप माने जाते हैं. अगर रैगांव चुनाव में उन्हें नजर अंदाज किया जाता है तो इसका खामियाजा चुनाव में कांग्रेस को भुगतना पड़ सकता है, जबकि अगर कांग्रेस अजय सिंह की सहमति के साथ चलती है तो रैगांव उपचुनाव कांग्रेस और बीजेपी में कांटे का हो सकता है. क्योंकि अजय सिंह की कांग्रेस कार्यकर्ताओं पर पकड़ है. ऐसे में कांग्रेस को उनकी राय के साथ चलेगी तो फायदे में रहेगी.
सहानुभूति का फायदा उठाना चाहेगी बीजेपी
जुगलकिशोर बागरी के निधन के बाद बीजेपी यहां सहानुभूति का फायदा लेना चाहेगी. पार्टी जुगल किशोर बागरी के परिवार में से अगर किसी को प्रत्याशी बनाती है तो यहां सहानुभूति की लहर चल सकती है. लेकिन अगर बीजेपी का प्रत्याशी बागरी के परिवार से नहीं होता तो सहानुभूति का मामला समाप्त हो जाएगा. वहीं कांग्रेस की तरफ से वह कल्पना वर्मा को टिकिट का दावेदार मान रहे हैं. अशोक शुक्ला कहते हैं कि बीजेपी की तरफ से रैगांव उपचुनाव पूरी सरकार लड़ने वाली है. जबकि कांग्रेस को यहां मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है. रैगांव विधानसभा उपचुनाव में विकास से ज्यादा जातिगत और सहानुभूति का मुद्दा हावी रहेगा. ऐसे में दोनों दल इसी का फायदा उठाना चाहेंगे. हालांकि अब तक न तो चुनाव की तारीखों का ऐलान नहीं हुआ है. लेकिन बीजेपी और कांग्रेस ने यहां तैयारियां शुरू कर दी है.
रैगांव विधानसभा सीट पिछले कुछ चुनावों के परिणाम
चुनाव | विजेता | जीतने वाला प्रत्याशी | हारने वाला प्रत्याशी |
1977 | जनता पार्टी | विश्वेश्वर प्रसाद | रामाश्रय प्रसाद (कांग्रेस) |
1980 | कांग्रेस | रामाश्रय प्रसाद | जुगल किशोर बागरी (बीजेपी) |
1985 | कांग्रेस | रामश्रे प्रसाद | जुगल किशोर बागरी (बीजेपी) |
1990 | जनता दल | धीरेंद्र सिंह 'धीरू' | जुगल किशोर बागरी (बीजेपी) |
1993 | बीजेपी | जुगल किशोर बागरी | राम बहरी (बसपा) |
1998 | बीजेपी | जुगल किशोर बागरी | उषा चौधरी (बसपा) |
2003 | बीजेपी | जुगल किशोर बागरी | उषा चौधरी (बसपा) |
2008 | बीजेपी | जुगल किशोर बागरी | उषा चौधरी (बसपा) |
2013 | बसपा | ऊषा चौधरी | पुष्पराज बागरी (बीजेपी) |
2018 | बीजेपी | जुगल किशोर बागरी | कल्पना वर्मा (कांग्रेस) |
रैगांव उपचुनाव में ये मुद्दे रहेंगे अहम
ग्रामीण बाहुल्य रैगांव सीट पर विकासकार्यों की दरकार अभी बहुत है. स्वास्थ्य सुविधाएं, शिक्षा, सड़कें और बरगी नहर का पानी रैगांव विधानसभा सीट के मुख्य मुद्दे हैं. रैगांव विधानसभा सीट में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव है. बेहतर इलाज के लिए विधानसभा क्षेत्र के लोगों को सतना या अन्य दूसरे शहरों का रुख करना पड़ता है. शिक्षा का भी यही हाल है. इसके अलावा सड़क और पानी के मुद्दों को लेकर यहां के वोटरों में नाराजगी साफ देखी जा सकती है.
रैगांव सीट पर भाजपा-बसपा की रही है लड़ाई
1993 में कांग्रेस ने बड़ी जीत दर्ज करते हुए प्रदेश में सरकार बनाई थी लेकिन उस चुनाव में भाजपा ने पहली बार रैगांव सीट पर जीत दर्ज की थी. बीजेपी के दिवगंत नेता जुगल किशोर बागरी ने 1993 में बीएसपी के रामबहरी को हराया था. तब से इस सीट पर बीजेपी की जीत का सिलसिला 2008 तक जारी रहा. जुगल किशोर बागरी लगातार चार विधानसभा चुनाव जीते लेकिन 2013 में बीजेपी ने प्रत्याशी बदल दिया और जुगल किशोर बागरी की जगह पुष्पराज बागरी को टिकट दिया. हालांकि भाजपा का यह दांव उल्टा पड़ा और उस चुनाव में बसपा ने बीजेपी की जीत पर ब्रेक लगा दिया. इसके बाद 2018 में बीजेपी ने फिर से जुगल किशोर बागरी पर दांव लगाया और पार्टी ने जीत दर्ज की.
2018 में बीजेपी ने जीता था चुनाव
खास बात यह है कि रैगांव में बसपा बीजेपी को सीधी टक्कर देती आई है. लेकिन पिछले चुनाव में कांग्रेस भले ही जीत दर्ज न कर पाई हो लेकिन बसपा को पछाड़कर दूसरे नंबर पर आने में कामयाब रही. ऐसे में आगामी उपचुनाव में रैगांव सीट पर दिलचस्प मुकाबला देखने को मिल सकता है. 2018 में रैगांव में कुल 45 प्रतिशत वोट पड़े थे. जहां बीजेपी प्रत्याशी जुगल किशोर बागरी को 65910 वोट मिले थे. जबकि कांग्रेस प्रत्याशी कल्पना वर्मा को 48489 वोट मिले थे. बहुजन समाज पार्टी की प्रत्याशी ऊषा चौधरी 12 हजार से ज्यादा वोटों के साथ तीसरे नंबर पर थी.
ये नेता हैं टिकट के दावेदार
रैगांव सीट पर अभी तक चुनाव की तारीखों का ऐलान नहीं हुआ है. ऐसे में किसी भी दल ने प्रत्याशी की घोषणा नहीं की है. लेकिन कांग्रेस की तरफ से अगर संभावित प्रत्याशियों की बात की जाए तो 2018 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की तरफ से प्रत्याशी रहीं कल्पना वर्मा इस बार भी टिकट की दावेदारी कर रही हैं. महिला नेत्री गया बागरी, प्रभा बागरी के अलावा माधव चौधरी भी दावेदारी करते नजर आ रहे हैं. इसके अलावा अन्य कई नेता भी रेस में है. लेकिन टिकट पर आखिरी फैसला पार्टी ही लेगी.
वहीं बात अगर बीजेपी की जाए तो पूर्व प्रत्याशी पुष्पराज बागरी, वंदना बागरी के नाम सामने आए हैं लेकिन अभी कुछ भी तय नहीं है. बड़े नेताओं के दौरे और मीटिंग के बाद ही पार्टी की तरफ से प्रत्याशी तय किया जाएगा. दोनों ही पार्टियां सर्वे के आधार पर टिकट देने की बात कह रही हैं.
बीजेपी और कांग्रेस ने इन नेताओं को सौंपी जिम्मेदारी
रैगांव विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव को लेकर बीजेपी और कांग्रेस कमर कस चुकी हैं. बीजेपी ने जहां शिवराज सरकार में मंत्री रामखिलावन पटेल, बिसाहूलाल सिंह और विधायक शरतेंदु तिवारी को रैगांव सीट की जिम्मेदारी दी है. वहीं कांग्रेस ने जबलपुर से विधायक और पूर्व मंत्री लखन घनघोरिया को प्रभारी बनाया है. कार्यकर्ताओं को भी सीट पर जनता से संपर्क करने के निर्देश दे दिए गए हैं. बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा भी जल्द ही रैगांव का चुनावी दौरा कर चुनावी नब्ज टटोलेंगे. तो कांग्रेस की तरफ से प्रचार का जिम्मा खुद पूर्व सीएम और कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ संभालेंगे. यानि दोनों पार्टियां रैगांव में कोई मौका नहीं छोड़ना चाहती हैं.
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