MP Assembly Election 2023: मध्य प्रदेश की राजनीति में 25 सितंबर को दो घटनाएं हुईं. पहले भोपाल के जंबूरी मैदान में लाखों कार्यकर्ताओं को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संबोधित किया. देर शाम नई दिल्ली में भाजपा के केंद्रीय कार्यालय ने मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर दूसरी सूची जारी कर दी. इसमें 3 केंद्रीय मंत्रियों को टिकट दिया गया. इससे सियासी अटकलों का बाजार दिल्ली के दीनदयाल उपाध्याय मार्ग से लेकर भोपाल के श्यामला हिल्स तक तैरने लगीं. पत्रकार और लेखिका दीप्ति अंगरीश की एक्सपर्ट राय में समझिए प्रदेश की सियासत किस ओर जा रही है.


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क्या मुख्यमंत्री का चेहरा बदल दिया जाएगा ? चुनाव परिणाम के बाद कहीं कैलाश विजयवर्गीय, नरेंद्र सिंह तोमर, प्रहलाद पटेल, फग्ग्न सिंह कुलस्ते जैसे नेताओं को मुख्यमंत्री तो नहीं बनाया जाएगा ? क्या शिवराज सिंह चौहान के लिए यह विधानसभा चुनाव बतौर मुख्यमंत्री आखिरी चुनाव है ? 


ऐसे कई सवाल पार्टी कार्यकर्ताओं से लेकर राजनीतिक विश्लेषकों के मन में उमड़-घुमड़ रहा है. जाहिर है इससे मध्यप्रदेश की आम जनता भी बावस्ता है. इसके बीच भोपाल में जिस प्रकार से लाखों लोगों की भीड़ जंबूरी मैदान में दिखीं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस को कोसा और तालियां बटोरीं, उससे तो यही लगा कि भाजपा प्रधानमंत्री के नाम और काम पर अधिक फोकस करेगी. कहा भी जा रहा है कि मध्य प्रदेश के मन में मोदी है.


भाजपा की दूसरी सूची में यूं तो 39 प्रत्याशियों के नाम की घोषणा हुई है. सबसे अधिक चर्चा इसमें केंद्रीय मंत्रियों और पार्टी महासचिव के नाम को लेकर है. भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय काफी समय से केंद्रीय राजनीति में अधिक सक्रिय थे. कई राज्यों के चुनावी प्रबंधन को लेकर इन्हें जिम्मेदारी सौंपी गई थीं. अब मध्य प्रदेश की राजनीति में इनकी दूसरी पारी के रूप में इसे देखा जा रहा है. वहीं, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, फग्गन सिंह कुलस्ते, प्रहल्लाद पटेल के चुनाव लड़ने पर जनता में अधिक सवाल हैं. सांसद राकेश सिंह और इमरती देवी को क्यों विधानसभा में उतारा गया, जनता इसके जवाब खोज रही है.


जनता एक चेहरा को देखकर और नाम सुनकर उब जाती है. भाजपा की ओर से लिए शिवराज सिंह चौहान बीते 18 साल से मुख्यमंत्री हैं. ऐसे में उनके खिलाफ एंटी इन्कंबेंसी होने से इंकार नहीं किया जा सकता है. भले ही भाजपा नेता चुनावी मंचों से इसे स्वीकार नहीं करें, लेकिन आपसी बातचीत में इसे पूरी तरह से नकारते भी नहीं हैं. बीते 3 सालों में शिवराज सिंह सरकार की कुर्सी को लेकर भोपाल से दिल्ली तक कई प्रकार की चर्चाओं को हवा मिला है. ऐसे में भाजपा ने यह दांव खेला है कि प्रदेश के तमाम बड़े नेताओं को विधानसभा चुनाव में बतौर प्रत्याशी उतारा जाए.


बड़े केंद्रीय नेताओं के विधानसभा चुनाव लड़ने से यह संदेश प्रसारित हो गया है कि भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व अब केवल मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर ही निर्भर नहीं रहेगा. संगठन से जुड़े लोगों का कहना है कि जिस भी नेता का अपने क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन होगा. पार्टी उनके नाम पर विचार करेगी. पार्टी ने परिवर्तन को हमेशा ही स्वीकार किया है और तो और, मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने चुनावी राजनीति में सभी को चौंकाया है. इसलिए इस बार भी दूसरी सूची में भी चौंकाया है. हालांकि, इसमें डार्क हॉर्स के रूप में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की भूमिका को भी दरकिनार नहीं किया जा सकता है.


भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को इंदौर 1 से विधानसभा का टिकट दिया गया है. उन्होंने बेलौस अंदाज में कहा किमैंने कहा था कि मैं चुनाव नहीं लड़ना चाहता, लेकिन पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने परसों मुझे कुछ दिशा-निर्देश दिए. मैं असमंजस में था और घोषणा होने के बाद मैं आश्चर्यचकित रह गया. मेरा सौभाग्य है कि मुझे चुनावी राजनीति में भाग लेने का अवसर मिला और मैं पार्टी की अपेक्षाओं को पूरा करने का प्रयास करूंगा.


ये लेख Zee Media के लिए दीप्ति अंगरीश ने लिखा है. दीप्ति पेशे से पत्रकार और लेखिका हैं.