MP High Court: आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) से जुड़े मामले में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के जस्टिस विवेक अग्रवाल की बेंच ने एक बड़ा फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा है कि EWS को 10 फीसदी आरक्षण का लाभ कुल पदों में से नहीं, बल्कि अनारक्षित पदों में से ही दिया जाए. कोर्ट ने साफ किया कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए आरक्षण में एससी, एसटी और ओबीसी को मिलने वाले आरक्षण में शामिल नहीं हैं. कोर्ट ने यह फैसला मध्य प्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल की ओर से आयोजित की गई लेबोरेटरी टेक्नीशियन की भर्ती में EWS पदों को बढ़ाने वाली याचिका पर सुनाया.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

शहडोल, रायसेन, रीवा, राजगढ़, सीधी, छिंदवाड़ा समेत कई जिलों के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के अभ्यर्थियों की ओर से EWS पदों बढ़ाने की मांग की गई थी. याचिका में तर्क दिया गया था कि एमपी प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड  ने लेबोरेटरी टेक्नीशियन के 219 पदों के लिए भर्ती निकाली थी. 10 फीसदी आरक्षण के हिसाब से EWS कोटे के लिए 22 पद रिजर्व रखे जाने थे, लेकिन बोर्ड की तरफ से सिर्फ 4 वैसेंसी ही रखी गईं. इस वजह से याचिकाकर्ताओं का नाम मेरिट सूची में होने के बावजूद उनका सिलेक्शन नहीं हो सका.


क्या बोली थी सरकार?
कोर्ट में जस्टिस विवेक अग्रवाल की एकलपीठ ने उम्मीदवारों की याचिकाएं खारिज कर करते हुए सख्त टिप्पणी भी की. कोर्ट ने कहा कि EWS के लिए आरक्षण  एससी, एसटी और ओबीसी शामिल नहीं हैं.  कोर्ट ने कहा, 'यह दुख का विषय है कि राज्य सरकार मूल मुद्दे का समाधान करने में सक्षम नहीं है. सरकार की उदासीनता और सुस्त रवैये के चलते अदालतों में मुकदमेबाजी का बोझ बढ़ रहा है.' दरअसल, सरकार ने अपने जवाब में कहा था कि वह इस मामले में कुछ नहीं कर सकती.


EWS आरक्षण अलग
सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 15(6) और 16 (6) की स्पष्ट व्याख्या करते हुए कहा कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए 10 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था की गई है. EWS आरक्षण के लाभ से OBC, SC और ST वर्ग को अलग रखा गया है. इस हिसाब से EWS को कुल पदों में से 10 फीसदी पदों का लाभ मिलना संविधान के अनुच्छेद 16 (6) के प्रावधान से असंगत है. इसका मतलब कुल 219 पदों में से 122 ओबीसी, 46 एसटी और 13 एससी वर्ग के लिए रिजर्व रखे गए हैं. इस तरह बचे सामान्य वर्ग के 38 पदों में से 10 फीसदी यानी 4 पद EWS को दिए जा सकते हैं.