चंद्रशेखर को यहां मिला `आजाद` नाम, 15 साल की उम्र में MP की इस कोर्ट में चला केस
Chandrashekhar Azad: 1857 की क्रांति से ही मध्य प्रदेश की वीरांगनाएं और वीर आजादी के यज्ञ में अपनी आहुति देते आए हैं. चंद्रशेखर आजाद प्रदेश के ऐसे ही सपूत थे. जो अपने शब्दों पर खरे उतरे. चंद्रशेखर आजाद, जिए भी आजाद और वीर गति को प्राप्त भी आजाद हुए, तो आइए जानते हैं इन वीर को बनाने में प्रदेश का क्या योगदान रहा.
आजाद का जन्म
चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 में मध्य प्रदेश के अलीराजपुर जिल में आने वाली भाभरा तहसील में हुआ था. इसका नाम बदल कर अब चंद्रशेखर आजाद नगर कर दिया गया है.
MP का हिस्सा बना अलीराजपुर
जन्म के समय अलीराजपुर अलग रियासत थी, लेकिन आजादी के बाद इसे मध्य प्रदेश में मिला लिया गया. 2008 में अलीराजपुर को अलग जिला बना दिया गया.
आजाद की पहली बगावत
आजाद ने जीवन की पहली बगावत मध्य प्रदेश में ही की थी. यह बगावत 1921 के असहयोग आंदोलन में कूद कर की गई थी. इस समय उनकी उम्र 15 साल थी.
आजाद पर पहला मुकदमा
आजाद पर पहला मुकदमा भी एमपी के खरेघाट जिला मजिस्ट्रेट कोर्ट में चला. इसी मुकदमे में आजाद ने अपना नाम "आजाद", अपने पिता का नाम "स्वतंत्रता" और अपना निवास "जेल" बताया. इस जवाब पर मजिस्ट्रेट ने उन्हें 15 कोड़ों की सजा दी थी.
तीर कमान चलाना सीखा
आजाद ने तीर कमान चलाना भी प्रदेश में सीखा है. दरअसल, माता-पिता ने 6 साल की उम्र में चंद्रशेखर का दाखिला गांव के स्कूल में करा दिया. अपने आदिवासी भील सहपाठियों के साथ उन्होंने तीर कमान चलाना सीख लिया.
ओरछा में छिपे
प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में आने वाला ओरछा भी लम्बे समय तक उनके छुपने का अड्डा रहा. ओरछा के जंगलों में ही आजाद ने निशानेबाजी का अभ्यास करते रहे.
ब्रह्मचारी
आजाद के ओरछा में छिपने की कहानी बड़ी दिलचस्प है. आजाद ने ओरछा के एक हनुमान मंदिर के पास झोपड़ी बनाई और नाम और हुलिया बदलकर पंडित हरिशंकर ब्रम्हचारी बन गए.
गांव के बच्चों को पढ़ाया
ऐसे बहरूपिया बन वे लम्बे समय तक ओरछा में अंग्रेजों से छुपे रहे. इस दौरान आजाद ने पास के धिमारपुरा गांव के बच्चों को पढ़ाना भी शुरू कर दिया इससे स्थानीयों के साथ उनके अच्छे संबंध हो गए.