Holi 2024: इंदौर में है होली का दिलचस्प इतिहास, तोप और फूल एक साथ; तस्वीरों के साथ पढ़ें परंपरा

Holi 2024: कुछ दिनों में होली आने वाली है. इससे पहले उत्सव शुरू हो गया है. ऐसे में आइये जानते हैं मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर में होली के दिलचस्प इतिहास के बारे में...

Mar 21, 2024, 22:14 PM IST
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होली का दिलचस्प इतिहास

होली का इंतजार अब खत्म हो रहा है. देश में कुछ जगहों पर होलिका या फाग उत्सव शुरू हो गया है. हमारे देश में हर त्यौहार का हर शहर में कोई न कोई दिलचस्प इतिहास रहा है. आइये आज हम आपको बता रहे हैं इंदौर में होली के दिलचस्प इतिहास और यहां प्रचलित तोप और फूल के कल्चर के बारे में

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कई सौ साल का इतिहास

इंदौर की रंग पंचमी का इतिहास कई सौ साल पुराना है. साल 1920 में महाराज होलकर ने एक पुस्तक उत्सव दर्शन लिखवाई थी. ये वो किताब है. जिसके अंदर रियासत के तमाम तीज त्योहारों के बारे में बताया गया है. यानी यहां की परंपरा इससे भी काफी पहले की है.

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15 दिन का उत्सव

इंदौर में फाग महोत्सव 15 दिन धूम से मनाया जाता है. इसके लिए 1 महीने पहले होली का डंडा लग जाता था. इसका मतलब होता था कि फॉरेस्ट डिपार्टमेंट प्राकृतिक फूल से कलर का निर्माण करे.

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होलिका दहन

इंदौर रियासत में होली के लिए ढाले परिवार के यहां से अग्नि आती थी. इसे महाराज होलकर हस्त स्पर्श कर प्रज्वलित करते थे. इसके बाद सियासत का राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत होता था और आर्मी कमांडर 5 राउंड तोप चलाते थे. इसी के साथ पूरे शहर में फाग उत्सव शुरू हो जाता था. इसके बाद महाराज होलकर राजबाड़े में दाखिल होते थे.

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शहीदों की याद

होलकर घराने में होली के दूसरे दिन वीर परंपरा की रिवायत थी. इस रिवायत में वीर हाथ में ढाल और तलवार लेकर राजबाड़े के सामने से गाजे बाजे के साथ निकलते थे. राज पुरोहित उनकी पूजाकर महाराज को आभूषण देते थे. इसके बाद प्राचीन वनखंडी मारुति मंदिर में भगवान हनुमान की पूजा और महल में सेवइयां और खीर की रस्म होती थी.

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मुख्य कार्यक्रम

मुख्य कार्यक्रम ओल्ड पैलेस और न्यू पैलेस के बीच हुआ करता था. यहां सैनिक कई करतब दिखाते थे और उनके लिए भांग का इंतजाम होता था. यहां पर चांदी और सोने की रंग-बिरंगे पिचकरिया भरकर महाराज को दिया जाता था जिससे वो दरबारियों और फौजियों पर रंग डालते थे.

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पंचमी की गैर

पंचमी के दिन का मुख्य समारोह राजवाडा में ही होता था. यहां आम जनता पर पानी का छिड़काव होता था. हालांकि, ये पानी खुशबूदार होता था, क्योंकि उसमें कई जड़ी बूटियों मिलाई जाती थी. इसी को गैर कहा जाता था.

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नई गैर

1950 में एक नई शुरुआत हुई. टोरी कॉर्नर से श्रमिक नेता और मिल मजदूरों ने मिलकर गैर की शुरुआत की. उस समय बड़े-बड़े कड़ाव साबुन मंगाए जाते थे और उनमें केसरिया रंग डालकर लोगों पर डाला जाता था. यह शुरुआत इंदौर की नई गैर की थी.

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दुनिया में मशहूर

शुरुआत में केवल दो बैलगाड़ियों रंगारंग गैर टोरी कॉर्नर से राजवाड़ा लाई जाती थी. धीरे-धीरे ये पूरे इलाके में फेमस हो गई और लोग यहां आने लगे. आधुनिकता के दौर में बैलगाड़ियां बड़े वाहनों में बदल गई और ऐसे इंदौर की गैर पूरी दुनिया में मशहूर होती गई.

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