मोहित सिन्हाः आज भारतीय जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की पुण्यतिथि है. 23 जून 1953 के दिन ही डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हुई थी और आज भी यह गुत्थी उलझी हुई है. डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मौत देश के सबसे बड़े अनसुलझे मामलों में से एक है. भाजपा हर साल डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की पुण्यतिथि पर उन्हें याद करती है और उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करती है. डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मौत जम्मू कश्मीर में हुई थी और उनकी मौत को लेकर देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू पर गंभीर आरोप लगाए जाते हैं. तो आइए जानते हैं कि डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी कौन थे और किन परिस्थितियों में उनकी मौत हुई?


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पंडित नेहरू से थे मतभेद
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म 1901 में कोलकाता में हुआ था. डॉ. मुखर्जी के पिता कोलकाता हाईकोर्ट में जज के पद पर थे. डॉ.श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने वकालत की पढ़ाई की. साल 1929 में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी कांग्रेस के टिकट पर बंगाल विधान परिषद के लिए चुने गए. देश की आजादी के बाद वह पंडित नेहरू की सरकार में इंडस्ट्रियल और सप्लाई मंत्री बने. लेकिन देश की आजादी के बाद 1950 में ईस्ट बंगाल (मौजूदा बांग्लादेश) से बड़ी संख्या में हिंदुओं का पलायन भारत में हुआ. 


दरअसल डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी चाहते थे कि शरणार्थियों के साथ ही भारत को पाकिस्तान से उनके लिए जमीन की भी मांग करनी चाहिए और पाकिस्तान से सख्ती से पेश आना चाहिए लेकिन पंडित नेहरू की सरकार ने बिना किसी शर्त के शरणार्थियों को भारत आने की मंजूरी दे दी थी. इसी बात से नाराज होकर डॉ.श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने नेहरू मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था. सरकार के विरोध के लिए डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने भारतीय जनसंघ की स्थापना की जो बाद में चलकर भारतीय जनता पार्टी बनी. 


जम्मू कश्मीर से लगाव के चलते गई जान!
देश की आजादी के बाद जम्मू कश्मीर के महाराज हरि सिंह ने भारत के साथ विलय की संधि पर हस्ताक्षर कर दिए थे. हालांकि साल 1953 में तत्कालीन पंडित जवाहर लाल नेहरू की सरकार ने जम्मू कश्मीर को अनुच्छेद 370 के तहत विशेष राज्य का दर्जा दे दिया था. विशेष राज्य के तहत जम्मू कश्मीर के लिए कई ऐसे प्रावधान किए गए थे, जो जम्मू कश्मीर को अन्य राज्यों से अलग करते थे. इनमें अलग झंडा, अलग प्रधानमंत्री और साथ ही जम्मू कश्मीर में दूसरे राज्यों से आने वाले लोगों को परमिट लेने जैसे प्रावधान शामिल थे. 


इन्हीं प्रावधानों का श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने विरोध किया और इसी के खिलाफ नारा दिया कि "एक देश में दो विधान, दो प्रधान और दो निशान नहीं हो सकते". साथ ही डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने सरकार के इस फैसले के विरोध में अपने कुछ समर्थकों के साथ बिना परमिट के जम्मू कश्मीर जाने का फैसला किया. यही फैसला डॉ. मुखर्जी की जिंदगी का आखिरी फैसला साबित हुआ.   


जम्मू कश्मीर सरकार की हिरासत में हुई मौत
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी 8 मई 1953 को अपने समर्थकों के साथ, जिनमें गुरुदत्त वैद्य, अटल बिहारी वाजपेयी, बलराज मधोक आदि लोग शामिल थे, दिल्ली से जम्मू के लिए रवाना हुए. उस वक्त जम्मू कश्मीर में शेख अब्दुल्ला की सरकार थी. डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे ही जम्मू कश्मीर की सीमा में घुसते रही गिरफ्तार कर लिया गया. 


गिरफ्तारी के बाद डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को किसी जेल में रखने के बजाय राजधानी श्रीनगर से काफी दूर निशात बाग में एक जर्जर गेस्ट हाउस में कैद करके रखा गया. यह हैरानी वाली है कि नेहरू सरकार में मंत्री रहे व्यक्ति इस तरह निर्जन जगह पर क्यों रखा गया! हिरासत में रहने के दौरान डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की तबीयत बिगड़ गई. 


बीमारी के दौरान डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के इलाज में लापरवाही के भी आरोप लगे. 23 जून को तबीयत ज्यादा बिगड़ने पर उन्हें एक सामान्य से सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उनकी मौत हो गई. कहा गया कि डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मौत हार्ट अटैक से हुई लेकिन हैरानी की बात ये है कि उनके शव का पोस्टमार्टम नहीं कराया गया और संदिग्ध परिस्थितियों के बावजूद डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मौत को सामान्य मान लिया गया. तत्कालीन कई नेताओं ने डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मौत पर सवाल उठाए थे और इसे संदिग्ध करार दिया था. 


हैरानी की बात ये भी है कि संदिग्ध परिस्थितियों में हुई डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मौत के मामले की कोई जांच नहीं हुई. यही वजह है कि डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मौत आज भी एक अनसुलझी गुत्थी है, जो अब शायद ही सुलझ पाए!