नई दिल्लीः मंगलवार को हुए एक दर्दनाक हादसे में 10 पर्वतारोहियों की मौत हो गई. दरअसल उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में स्थित नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग के 41 पर्वतारोही द्रौपदी का डंडा चोटी की चढ़ाई पर निकले थे. मंगलवार सुबह करीब 8 बजे चोटी फतह करने के बाद वहां से लौटते समय पर्वतारोहियों का यह दल हिमस्खलन की चपेट में आ गया. इस हादसे में 10 पर्वतारोहियों की मौत हो गई और 14 पर्वतारोहियों को सुरक्षित बचा लिया गया. वहीं 27 पर्वतारोही अभी भी लापता हैं, जिनकी तलाश की जा रही है. इस खबर को पढ़कर आपके मन में सवाल आया होगा कि आखिर हिमस्खलन कैसे और क्यों आते हैं? तो आइए जानते हैं इसकी वजह


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हिमस्खलन क्या होता है
जब पहाड़ियों पर जमी बर्फ कमजोर होकर नीचे  खिसकती है उसी घटना को हिमस्खलन कहा जाता है. इस हिमस्खलन के साथ कई बार सिर्फ बर्फ और पानी नीचे आता है. इसे स्लफ हिमस्खलन कहा जाता है. कई बार यह हिम्सखलन इतना बड़ा होता है इसके साथ पत्थर, पेड़-पौधे और बहुत सारा मलबा भी नीचे आता है. इससे जान माल का भारी नुकसान हो सकता है. इसे स्लैब हिमस्खलन कहा जाता है.


हिमस्खलन आमतौर पर सर्दियों के मौसम में होता है. दरअसल जब भारी बर्फबारी होती है तो पहाड़ियों पर जमी बर्फ दबाव के साथ नीचे सरकने लगती है. इसके अलावा कई बार सूरज की गर्मी से पहाड़ियों पर जमी बर्फ पिघलने लगती है और यह भी हिमस्खलन का कारण बनती है. हिमस्खलन कितना खतरनाक हो सकता है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इन हिमस्खलनों में 10 लाख टन से लेकर एक अरब किलो तक बर्फ 120 से 300 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से नीचे गिर सकती है.


हिमस्खलन की चपेट में आने से व्यक्ति की दम घुटने से मौत हो जाती है. हिमस्खलन में बर्फ कंक्रीट की तरह जम जाती है और इसमें शरीर को हिलाना असंभव हो जाता है. इससे बर्फ में दबे व्यक्ति को सांस लेने में परेशानी होती है और उसकी दम घुटने से मौत हो जाती है. बर्फ के ढेर में करीब एक घंटे तक दबे होने की स्थिति में व्यक्ति के बचने की संभावना बेहद कम हो जाती है. 


हिमस्खलन की बड़ी घटनाएं


प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान आल्पस पर्वत पर हिमस्खलन की अलग-अलग घटनाओं में करीब 60 हजार सैनिकों की मौत हुई थी. 13 दिसंबर 1916 को हुए हादसे में तो इटली की सेना के करीब 10 हजार सैनिकों की मौत एक दिन में ही हो गई थी. एक हिमस्खलन एक पूरे शहर को तबाह करने की ताकत रखता है. यही वजह है कि स्विटजरलैंड और कनाडा जैसे देशों में एवलांच कंट्रोल टीमें तैनात रहती हैं. साथ ही वहां हिमस्खलन से कम से कम नुकसान हो, इसके लिए भी वहां कई उपाय किए गए हैं.