उज्जैन की नगर पूजा जिसका रहता है सभी को इंतजार, 40 मंदिर, 12 घंटे, 27 किमी पैदल यात्रा में बहती है मदिरा
27 किमी लम्बी इस महापूजा में 40 मंदिरों में मदिरा का भोग लगाया जाता है. जिला प्रशासन के साथ-साथ कई श्रद्धालु पैदल चलते है. सुबह प्रारंभ होकर यह यात्रा शाम तक खत्म होती है.
उज्जैन: महाष्टमी पर उज्जैन में शनिवार को नगर पूजन में माता महालया और महामाया मंदिर में माता को शराब का भोग लगाया गया. परंपरा के अनुसार चौबीस खंबा माता मंदिर में कलेक्टर आशीष सिंह द्वारा माता का मदिरा पान व आरती की गई. उन्होंने महालया और महामाया मंदिर में माता पूजन के बाद यात्रा को रवाना किया. करीब 27 किमी इस महापूजा में 40 मंदिरों में मदिरा का भोग लगाया जाएगा. उज्जैन के चौबीस खंबा माता मंदिर में आज सुबह से ही भक्तों का तांता लगा हुआ है. यहां माता की पूजा राजा विक्रमादित्य करते थे. इसी परंपरा का निर्वाह जिलाधीश द्वारा किया जा रहा है.
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बता दें कि शारदीय नवरात्रि महाष्टमी के दिन वर्ष में एक बार जिला प्रशासन द्वारा नगर पूजा की जाती है. पूजन के बाद मदिरा का प्रसाद न सिर्फ पुरुष बल्कि महिला और बच्चे भी पीते है.
यात्रा ज्योर्तिलिंग महाकालेश्वर ध्वज पर खत्म होगी
लगभग 27 किमी लम्बी इस महापूजा में 40 मंदिरों में मदिरा का भोग लगाया जाता है. जिला प्रशासन के साथ-साथ कई श्रद्धालु पैदल चलते है. सुबह प्रारंभ होकर यह यात्रा शाम तक खत्म होती है. यात्रा उज्जैन के प्रसिद्ध माता मंदिर 24 खंबामाता मंदिर से प्रारंभ होकर ज्योर्तिलिंग महाकालेश्वर पर शिखर ध्वज चढ़ाकर समाप्त होती है. इस यात्रा की खास बात यह होती है कि एक घड़े में मदिरा को भरा जाता है. जिसमें नीचे छेद होता है जिससे पूरी यात्रा के दौरान मदिरा की धार बहाई जाती है जो टूटती नहीं है. महापूजा में जिला कलेक्टर के साथ प्रशासनिक अधिकारी, कर्मचारी व बड़ी संख्या में श्रद्धालुगण उपस्थित होते है. इस बार कलेक्टर के साथ साथ आम श्रद्धालु ने भी माता को शराब का भोग लगाया.
सुबह से शाम तक कैसे होती है पूजा
उज्जैन में देवियों ने राजा को यह वरदान दिया था, तभी से यह परंपरा उसी प्रकार चली आ रही है. कहा जाता है कि देवी के प्रकोप से पहले बहुत बीमारियां होती थी इसलिए नगरपूजा कि जाती थी. हर साल महाष्टमी पर प्रशासन की ओर से होने वाली नगर पूजा देखने लायक होती है. लोगों को इसका वर्षभर इंतजार रहता है. माता, भैरव व हनुमान मंदिर मिलाकर कुल 40 मंदिरों में यह पूजा होती है. पूजन में 2 तेल डिब्बे, 5 किलो सिंदूर, 25 बॉटल मदिरा सहित 39 प्रकार की सामग्री लगेगी. एक दर्जन कोटवार सहित 50 से अधिक कर्मचारी 12 घंटे में 27 किलोमीटर पैदल चलकर पूजा संपन्न करेंगे.
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क्या है इतिहास और महत्व
उज्जैन में कई जगह प्राचीन देवी मन्दिर है. जहां नवरात्रि में पाठ-पूजा का विशेष महत्व है. नवरात्रि में यहां काफी तादाद में श्रद्धालु दर्शन के लिये आते है. इन्हीं में से एक है चौबीस खंबा माता मन्दिर. कहा जाता है कि प्राचीनकाल में भगवान महाकालेश्वर के मन्दिर में प्रवेश करने और वहां से बाहर की ओर जाने का मार्ग चौबीस खंबों से बनाया गया था. इस द्वार के दोनों किनारों पर देवी महामाया और देवी महालाया की प्रतिमाएं स्थापित है. सम्राट विक्रमादित्य ही इन देवियों की आराधना किया करते थे. उन्हीं के समय से नवरात्रि के महाअष्टमी पर्व पर यहां शासकीय पूजन किये जाने की परम्परा चली आ रही है. उज्जैन नगर में प्रवेश का प्राचीन द्वार है. नगर रक्षा के लिये यहां चौबीस खंबे लगे हुए थे, इसलिये इसे चौबीस खंबा द्वार कहते है. यहां महाअष्टमी पर शासकीय पूजा तथा इसके पश्चात पैदल नगर पूजा इसलिये की जाती है ताकि देवी मां नगर की रक्षा कर सके और महामारी से बचाये. प्राचीन समय में इस द्वार पर 32 पुतलियां भी विराजमान थी. यहां हर रोज एक राजा बनता था और उससे ये पुतलियां प्रश्न पूछती थी. राजा इतना घबरा जाता था कि डर की वजह से उसकी मृत्यु हो जाती थी. जब विक्रमादित्य की बारी आई तो उन्होंने नवरात्रि की महाअष्टमी पर देवी की पूजा की तथा उन्हें देवी से वरदान प्राप्त हुआ.
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