'रोज़ मिलते हैं मगर बात नहीं होती है'...यहां पढ़िए शकील बदायुनी के बेहतरीन शेर

Harsh Katare
Nov 14, 2024

इक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताज-महल सारी दुनिया को मोहब्बत की निशानी दी है

जाने वाले से मुलाक़ात न होने पाई दिल की दिल में ही रही बात न होने पाई

ऐ मोहब्बत तिरे अंजाम पे रोना आया जाने क्यूँ आज तिरे नाम पे रोना आया

दिल की तरफ़ 'शकील' तवज्जोह ज़रूर हो ये घर उजड़ गया तो बसाया न जाएगा

कैसे कह दूँ कि मुलाक़ात नहीं होती है रोज़ मिलते हैं मगर बात नहीं होती है

मुझे दोस्त कहने वाले ज़रा दोस्ती निभा दे ये मुतालबा है हक़ का कोई इल्तिजा नहीं है

उन्हें अपने दिल की ख़बरें मिरे दिल से मिल रही हैं मैं जो उन से रूठ जाऊँ तो पयाम तक न पहुँचे

मोहब्बत ही में मिलते हैं शिकायत के मज़े पैहम मोहब्बत जितनी बढ़ती है शिकायत होती जाती है

मैं नज़र से पी रहा था तो ये दिल ने बद-दुआ दी तिरा हाथ ज़िंदगी भर कभी जाम तक न पहुँचे

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