महाभारत के दौरान अर्जुन के विचलित मन को प्रभु श्री कृष्ण ने संभाला था, इस दौरान उन्होंने ये उपदेश दिया था.
कई बार हमारा मन ही हमारे समस्त दुखों का कारण बन जाता है, इसलिए हर व्यक्ति को अपने मन को नियंत्रण में रखना बहुत जरूरी है
हर मनुष्य को कर्म करना चाहिए, फल की इच्छा नहीं करनी चाहिए.
कार्य के पहले ही परिणाम की अपेक्षा करेंगे तो आपका मन भ्रमित हो जाएगा और आप अपना कर्म ठीक से नहीं कर पाएंगे.
खुद से बेहतर कोई नहीं जान सकता, इसलिए स्वयं का आकलन करना सबसे जरूरी है.
मनुष्य को सदैव अभ्यास करते रहना चाहिए, अभ्यास करने से मनुष्य का जीवन आसान हो जाता है
क्रोध को खुद पर हावी नहीं होने देना चाहिए, यदि गुस्सा आए तो स्वयं को शांत रखने का प्रयास करें.
व्यक्ति को संदेह या संशय का स्थिति में नहीं रहना चाहिए, जो लोग संशय का स्थिति में रहते हैं, उनका भला नहीं हो सकता है.
आत्मा को शस्त्र काट नहीं सकते और न अग्नि इसे जला सकती है, जल इसे गीला नहीं कर सकता और वायु इसे सुखा नहीं सकती.
नरक के तीन द्वार होते है, वासना, क्रोध और लालच.