ददन विश्वकर्मा/ ग्वालियर: मध्य प्रदेश में सबसे चर्चा का विषय इस वक्त सरकार में मंत्री इमरती देवी (Imarti Devi) की है. कारण यह है कि वह उपचुनाव हार गईं हैं. इमरती देवी का नाम सुर्खियों में तब भी आया था जब प्रचार के दौरान एक चुनावी सभा में पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ (Kamal nath) ने उनको लेकर अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल किया था. इसके बाद कमलनाथ की जमकर निंदा भी हुई थी. यहां तक कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने भी कमलनाथ के इस बयान पर नाराजगी जताई थी. जिसके बाद भी कमलनाथ  (Kamal nath) ने कहा था कि वो राहुल गांधी की राय है. मैं माफी नहीं मांगूंगा. कमलनाथ के इस बयान को सिंधिया ने हाथोंहाथ लिया और अपनी सबसे करीबी मंत्री इमरती देवी के मौन व्रत पर भी बैठ गए. सिंधिया ने जितना प्रचार इमरती के लिए किया, उतना शायद अपने दूसरे प्रत्याशियों के नहीं कर पाए, इसके बावजूद भी इमरती हार गईं. तो उपचुनाव में जीतकर भी सिंधिया कहीं न कहीं अपने घर में ही हार गए और यह हार इमरती और सिंधिया को चुभेगी जरूर.


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कब हुआ सिंधिया से संपर्क?
इमरती देवी (Who is Imarti Devi) के बहाने बीजेपी को कांग्रेस को घेरने का मौका मिल गया. मंत्री इमरती देवी (Minister Imarti Devi) पर छींटाकशी करने के खिलाफ मौन व्रत रखा था. ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) ने कहा था कि एक दलित महिला का अपमान करने वाले कमलनाथ (Kaml nath) को जनता सबक सिखाएगी. इमरती को लेकर मध्य प्रदेश की सियासत गर्म है. आइए आपको बताते हैं कि इमरती देवी ने राजनीति में कैसे एंट्री की थी. कैसे उनका सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) से संपर्क हुआ और कैसे वो महाराज की फेवरेट बन गईं.


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समाज सेवा और घूमने-फिरने की शौकीन
इमरती देवी (Imarti devi birth Plate) का जन्म 14 अप्रैल 1975 को जिला दतिया के ग्राम चरबरा में हुआ था. उन्होंने हायर सेकेंड्री तक शिक्षा प्राप्त की है. उनका मुख्य व्यवसाय कृषि है. इमरती देवी महिला उत्थान, समाज-सेवा, पर्यटन-स्थलों के भ्रमण में विशेष रुचि है.


सिंधिया और इमरती एक साथ हुई थी एंट्री
ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) और मंत्री इमरती देवी (minister Imarti devi) एक समय में ही सक्रिय राजनीति में आए. अगर यह कहा जाए तो गलत नहीं होगा. जिस वक्त ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) अपने पिता स्वर्गीय माधवराव सिंधिया (Madhavrao Scindia) की विरासत संभालने गुना पहुंचे,  लगभग उसी वक्त इमरती देवी जिला पंचायत सदस्य का चुनाव जीती थीं. चूंकि उस समय मोहन सिंह राठौर ग्रामीण कांग्रेस के जिला अध्यक्ष थे. वह ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) के काफी करीबी माने जाते हैं, उन्हीं के माध्यम से इमरती देवी और सिंधिया की मुलाकात हुई. क्योंकि इस अंचल में इमरती देवी के अलावा कोई दूसरी महिला नेता नहीं थी. यही कारण है लगातार चुनाव जीतने के बाद सिंधिया के खास होती गईं. यही कारण है कि आज भी वह सिंधिया को अपना राजनीतिक पिता मानती हैं.


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कब चर्चा में आईं?
इमरती देवी और सिंधिया भले की राजनीतिक पारी एक साथ शुरू की हो, लेकिन इमरती देवी सिंधिया को अपना राजनीतिक गुरू मानती हैं. वैसे इमरती देवी अपने बयानों को लेकर अक्सर चर्चा में रहीं, लेकिन साल के शुरुआत में उन्होंने कहा था कि अगर महाराज (सिंधिया) कुएं में कुदेंगे तो वह भी कूद जाएंगी. इसके बाद फरवरी में भी उनका एक बयान आया था जिसमें उन्होंने कमलनाथ सरकार पर हमला बोला था. कमलनाथ ने सिंधिया को सड़क पर उतरने को कहा था. जिस पर इमरती देवी ने कहा था कि अगर महाराज सड़कों पर उतरेंगे तो उनके साथ इमरती देवी भी सड़कों पर होंगी. इसके बाद से इमरती देवी लगातार मीडिया में सुर्खियों में बनी रहीं. 



अंडे वाले बयान पर काबिज फिर किनारा
कमलनाथ सरकार के दौरान भी डबरा से विधायक इमरती देवी महिला एवं बाल विकास मंत्री थीं. उस वक्त उन्होंने सरकार से आंगनवाड़ी केंद्रों में अंडे बंटवाने का आग्रह किया था. हालांकि सरकार इस पर कुछ फैसला कर पाती इससे पहले ही कांग्रेस की सरकार गिर गई. इसके बाद इमरती देवी शिवराज सरकार में भी मंत्री बनी. एक बार फिर उन्हें वही मंत्रालय मिला. फिर उन्होंने आंगनवाड़ी में अंडा बांटने की बात कही. हालांकि एक बार फिर उनका यह मकसद पूरा नहीं हो पाया. शिवराज सरकार ने अंडा की बजाय आंगनवाड़ियों में दूध बांटने का फैसला किया.


क्यों हारीं इमरती देवी
मंत्री इमरती देवी को उनके ही समधी कांग्रेस के सुरेश राजे ने उपचुनाव में हराया है. कुछ ऐसी वजहें रहीं जिससे इमरती देवी को हार का सामना करना पड़ा. जिसमें सबसे पहले भितरघात का सामना उन्हें करना पड़ा. यह उनकी हार की एक बड़ी वजह थी. दूसरा कारण यह भी है कि डबरा सीट परंपरागत तौर पर कांग्रेस की सीट मानी जाती है. इमरती देवी कांग्रेस की तरफ से चुनाव लड़ते हुए यहां जीत की हैट्रिक लगा चुकीं थीं, लेकिन जैसे वह बीजेपी की तरफ से मैदान में उतरीं तो बना-बनाया उनका संगठन शायद बिखर गया. डबरा के मतदाता शायद उनके बीजेपी में जाने से खुश नहीं थे, जिससे इमरती देवी जीत का चौका लगाने से चूक गईं. जबकि उनको लेकर हुई बयानबाजी भी उनकी हार की एक बड़ी वजह मानी जा रही है. 


इमरती का राजनीतिक सफर
- इमरती देवी वर्ष 1997-2000 तक जिला युवा कांग्रेस कमेटी ग्वालियर की वरिष्ठ उपाध्यक्ष रही. 


- वर्ष 2002-2005 में जिला कांग्रेस कमेटी की महामंत्री एवं किसान कांग्रेस कमेटी की प्रदेश महामंत्री थीं. 
- वर्ष 2004-2009 में जिला पंचायत ग्वालियर की सदस्य, कृषि उपज मंडी ग्वालियर की संचालक एवं सदस्य रहीं. 
- वर्ष 2005 में वह ब्लॉक कांग्रेस डबरा की अध्यक्ष रहीं. इमरती देवी वर्ष 2008 में 13वीं विधानसभा की सदस्य निर्वाचित हुईं. 
- वर्ष 2008 से 2011 तक पुस्तकालय समिति की सदस्य तथा वर्ष 2011 से 2014 तक महिला एवं बालक कल्याण संबंधी समिति की सदस्य रहीं.
- इमरती देवी वर्ष 2013 में दूसरी बार विधानसभा सदस्य निर्वाचित हुई. वर्ष 2018 में तीसरी बार 15वीं विधानसभा में जिला ग्वालियर के डबरा निर्वाचन क्षेत्र से निर्वाचित हुईं.
- इमरती देवी साल 2014 के लोकसभा चुनाव में भिंड दतिया सीट से लोकसभा की प्रत्याशी भी रह चुकी हैं. इस चुनाव में उन्हें कांग्रेस के बागी और बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़े डॉ. भागीरथ प्रसाद से हार का मुंह देखना पड़ा था.
- इमरती देवी ने 25 दिसम्बर, 2018 को मुख्यमंत्री कमल नाथ के मंत्रीमण्डल में मंत्री पद की शपथ ग्रहण की थी.
- इसके बाद सियासी उलटफेर में बीजेपी में शामिल हो गईं और वहां भी शिवराज सरकार में मंत्री बनींं. 
- उपचुनाव में डबरा सीट से चौथी बार चुनावी मैदान में उतरीं, लेकिन इस बार हार का सामना करना पड़ा.


(इनपुट- शैलेंद्र सिंह)