Maharashtra Political Crisis: महाराष्ट्र के राजनीतिक संकट से बढ़ी पारिवारिक पार्टियों की चिंता, दूसरे दलों में भी फैल सकती है आग
Maharashtra Political Crisis: महाराष्ट्र में शुरू हुए राजनीतिक संकट के केंद्र में भले ही एकनाथ शिंदे दिख रहे हों लेकिन आप ध्यान से देखें तो इसकी बुनियाद में पारिवारिक राजनीति है. जो लोकतंत्र के नाम पर स्थापित हुए दलों को किसी प्राइवेट कंपनी की तरह चलाने में यकीन रखती है.
Maharashtra Political Crisis: लोकतंत्र में निजी परिवारों वाली राजनीतिक पार्टियों के लिए रास्ते मुश्किल हो गए हैं. सिद्धांतों से दूर, कुर्सी पर बने रहने के लिए किए गए जोड़-तोड़ के नतीजे महाराष्ट्र में सामने दिख रहे हैं. वंशवादी राजकुमारों को जमीन से जुड़े नेताओं की चुनौती पार्टियों की नींव हिला देती है.
महाराष्ट्र (Maharashtra) की महा विकास अघाड़ी (MVA) सरकार के प्रमुख घटक दल शिवसेना (Shiv Sena) में हुई टूट ने एक बार फिर वंशवादी राजनीति की कमजोरियां सामने ला दी हैं. एक परिवार जब अपनी पार्टी को निजी संपत्ति मान कर किसी कंपनी की तरह चलाता है, तो उससे प्रदेश या देश देर तक स्थिर नहीं रह सकता. पार्टी में ही चुनौती मिलने पर जिस तरह से मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री आवास रातोंरात छोड़ दिया, वह बताता है कि उन्हें अपनी ही नेतृत्व क्षमता पर विश्वास नहीं है. इसके साथ ही महा विकास अघाड़ी में बिखराव दिखने लगा है. संजय राउत ने कहा है कि अगर बागी चाहें तो पार्टी एमवीए से निकलने पर विचार कर सकती है.
परिवार विशेष की तरह कर रही काम
वास्तव में महाराष्ट्र में गठबंधन सरकार चला रही तीनों ही पार्टियां लोकतांत्रिक लोगों का समूह न होकर परिवार विशेष की कंपनियों की तरह काम करता नजर आ रहा था. शिवसेना और ठाकरे परिवार, एनसीपी और पवार परिवार जैसे महाराष्ट्र में एक-दूसरे का पर्याय है, वैसे ही उनकी सहयोगी पार्टी कांग्रेस नेतृत्व के लिए गांधी-नेहरू परिवार से आगे नहीं देख पाती है. नतीजा यह है कि कमोबेश तीनों ही पार्टियों में नेतृत्व का संकट है.
शिवसेना (Shiv Sena) का कमजोर नेतृत्व महाराष्ट्र (Maharashtra) के पिछले विधानसभा चुनाव में उभर कर आ गया था. उसी कमजोरी का फायदा चाणक्य कहे जाने वाले शरद पवार ने उठाया. भले ही उद्धव मुख्यमंत्री बने, लेकिन सबने महसूस किया कि सरकार का रिमोट पवार (Sharad Pawar) और उनकी पार्टी के पास था. उसी का नतीजा एकनाथ शिंदे के रूप में सामने आया है.
इस हंगामे में किधर है कांग्रेस
महाराष्ट्र में कांग्रेस की स्थिति यह है कि राज्य स्तर पर कोई ठोस नेतृत्व नहीं है और हर कदम उठाने से पहले दिल्ली की तरफ देखा जाता है. वर्तमान संकट को संभालने के लिए भी राज्य के किसी नेता की भूमिका नजर नहीं आती. मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री रहते पार्टी टूटने की यह स्थिति देख चुके कमलनाथ को यहां विधायकों को संभालने के लिए दौड़ाया गया. एनसीपी की सारी बागडोर शरद पवार के हाथों में है और सिर्फ उन्हीं की आवाज सुनी जाती है. ऐसे में कंपनियों की तरह चलाई जा रही, तीनों पार्टियां एकनाथ शिंदे के कदम से महाराष्ट्र में अचानक मुश्किल में घिर गई हैं.
दूसरी पार्टियों के लिए भी खतरे
वैसे यह स्थिति सिर्फ महाराष्ट्र (Maharashtra) में नहीं है. भाजपा को छोड़ अन्य राष्ट्रीय या प्रादेशिक पार्टियों का हाल यही है कि वे एक परिवार की प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह चल रही हैं. यूपी में समाजवादी पार्टी यादव परिवार की प्रॉपर्टी मानी जाती है. बहुजन समाज पार्टी में मायावती के बाद कोई नहीं है. पं. बंगाल में ममता और उनके भजीते, हरियाणा में चौटाला, पंजाब में बादल, ओडिशा में पटनायक से लेकर तमिलनाडु में डीएमके ऐसी राजनीति के कुछ चुनिंदा उदाहरण हैं.
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कांग्रेस भी झेल रही है संकट
राजनीति के जानकार मानते हैं कि ऐसी पार्टियां या तो संस्थापकों के रहने तक या फिर छोटे राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति होने तक ही जनता पर असर बनाए रख पाती हैं. इसके बाद वे उतार पर आ जाती हैं. जैसा इन दिनों शिवसेना के साथ हो रहा है. लेकिन महाराष्ट्र में यही खतरा भविष्य में एनसीपी के लिए भी है. कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर इस संकट को झेल रही है.
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