Punishment For Doctor Negligence: संसद के दोनों सदनों से हाल में तीन महत्वपूर्ण विधेयक पारित हुए लेकिन शायद आपकी नजर एक महत्वपूर्ण कानून पर न गई हो. नए क्रिमिनल कोड में डॉक्टरों की लापरवाही पर कम सजा का प्रावधान किया गया है. एक्सपर्ट कह रहे हैं कि इस पर फिर से विचार करने की जरूरत है. दरअसल, आईपीसी की जगह लेने जा रही भारतीय न्याय संहिता बुधवार को लोकसभा और गुरुवार को राज्यसभा से पारित हो गई. यह विधेयक 12 दिसंबर को सदन में रखा गया था. संसद की सुरक्षा में चूक, निलंबन और मिमिक्री पर मचे हंगामे के बीच एक महत्वपूर्ण संशोधन पर बात कम हुई. इस हफ्ते जो बिल का वर्जन पास हुआ है उसमें एक संशोधन के तहत रजिस्टर्ड डॉक्टरों के लिए विशेष व्यवस्था प्रदान की गई है. 


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लापरवाही के लिए दंड कम


हां, भारतीय न्याय संहिता (BNS) के क्लॉज 106 में कहा गया है कि जल्दबाजी या कहें कि लापरवाही के कारण अगर मरीज की मौत होती है तो पांच साल तक जेल की सजा और जुर्माना भी हो सकता है. हालांकि इलाज में लापरवाही (Medical Negligence) के मामले में सजा को कम करके अधिकतम दो साल और जुर्माना कर दिया गया है. अब तक लापरवाही से मरीज की मौत पर गैर-इरादतन हत्या का केस बनता था. भारतीय न्‍याय (द्व‍ितीय) संहिता विधेयक के तहत अब सजा घटाने का प्रावधान किया गया है. 


सरकार ने क्यों किया ऐसा?


बिल पर बोलते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि यह संशोधन इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अनुरोध के बाद किया गया. 


इस पर कोर्ट के फैसले भी हैं 


चिकित्सकीय लापरवाही के लिए तीन प्रावधान हैं, जिसकी व्याख्या केस लॉ यानी न्यायिक फैसलों के तहत की गई है. इसमें सुप्रीम कोर्ट के दो फैसले प्रासंगिक हैं. न्यायिक फैसलों के जरिए डॉक्टकों को लापरवाही के हल्के या तुच्छ आरोपों से सुरक्षा प्रदान की गई है. इसमें एक ऐतिहासिक केस (जैकब मैथ्यू बनाम पंजाब राज्य) ने व्यावसायिक लापरवाही और पेशेवर लापरवाही के बीच अंतर स्पष्ट किया था. इसमें कहा गया कि न तो केयर की सामान्य कमी और न ही जजमेंट में त्रुटि, लापरवाही का प्रमाण है. इन सिद्धांतों को दो महीने पहले शीर्ष अदालत के एक अन्य फैसले में दोहराया गया. इस फैसले में कहा गया, 'लापरवाही में किसी डॉक्टर को जिम्मेदार ठहराने के लिए, एक उच्च सीमा (थ्रेसहोल्ड) को लांघना साबित होना चाहिए.'


डॉक्टरों पर ऐसे केस नहीं होगा


मेडिकल प्रोसीजर में विशेषज्ञता के कारण डॉक्टरों को केस दर्ज करने से भी सुरक्षा मिली है. उदाहरण के लिए किसी की निजी शिकायत पर तब तक विचार नहीं किया जा सकता जब तक शिकायतकर्ता के मामले पर कोई योग्य डॉक्टर मुहर न लगा दे. अगर शिकायत इस स्टेज के आगे पहुंचती है तब भी जांच अधिकारी को एक अलग मेडिकल ओपिनियन की जरूरत होगी. यहां तक कि नियम के बावजूद गिरफ्तारी अपवाद है. 


उपलब्ध साक्ष्य बताते हैं कि लापरवाही की शिकायतों के खिलाफ डॉक्टरों को पहले से ही उच्च स्तर का संरक्षण मिला हुआ है. लापरवाही का मामला बनाना मुश्किल है और सफलतापूर्वक मुकदमा चलाना कठिन काम है. अंग्रेजी अखबार के एक लेख में कहा गया है कि संरक्षण के इस स्तर को देखते हुए IMA का किसी दुर्लभ केस में डॉक्टर को लापरवाही का दोषी पाए जाने पर हल्की सजा के लिए पैरवी करना कोई ठोस मामला नहीं था. ऐसे में भविष्य में बी. एन. एस. में एक और संशोधन की उम्मीद की जानी चाहिए.