Apollo 17 Mission Man on Moon: अमेरिका की एक प्राइवेट कंपनी ने कुछ घंटे पहले पहली बार चांद पर अंतरिक्षयान उतारा है. खास बात यह है कि 1972 में अपोलो 17 मिशन के बाद पहली बार किसी अमेरिकी यान की मून लैंडिंग हुई है. आपके मन में सवाल उठ सकता है कि 50 साल से भी ज्यादा हो गए, अमेरिका ने चांद पर फिर से इंसानों को क्यों नहीं भेजा? जबकि जुलाई 1969 में अपोलो 11 मिशन से चांद पर पहली बार इंसान के कदम पड़े थे. उसके बाद अगले 2-3 साल ताबड़तोड़ मून मिशन भेजे गए लेकिन बाद में क्या हो गया?


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वो 70 का दौर था


अपोलो 11 मिशन के बाद चांद के छह और ट्रिप हुए थे. इसमें से पांच सफलतापूर्वक लैंड किए. कुल 12 इंसानों ने चांद की सतह पर चहलकदमी की थी लेकिन 1970 में भविष्य में प्रस्तावित सारे अपोलो मिशन रद्द कर दिए गए. इसकी सबसे बड़ी वजह मून मिशन में आने वाला भारी खर्च था. 


एक बड़ी वजह यही है जिस कारण 1970 के दशक के बाद अमेरिका ने किसी इंसान को चांद पर नहीं भेजा. बाद में स्पेस शटल का दौर आया, रूसी स्पेस स्टेशन Mir ने 2001 तक काम किया. धरती की लोअर ऑर्बिट में इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन 1998 से ही काम कर रहा है. यहां अमेरिका, रूस, जापान, यूरोप और कनाडा के एस्ट्रोनॉट आते जाते रहते हैं. एक बार में वे छह महीने का वक्त गुजारते हैं. हालांकि मून पर उतरने के बारे में अमेरिका ने फिर नहीं सोचा. 


वो दिन का वो आखिरी मिशन था


आखिरी मैन मिशन 7 और 19 दिसंबर 1972 को हुआ था. 12 दिन के इस मिशन ने कई रिकॉर्ड तोड़े. सबसे लंबी स्पेस वॉक, सबसे लंबे समय तक लुनार लैंडिंग और सबसे ज्यादा चांद का सैंपल धरती पर लाया गया. तब लौटते समय अपोलो 17 के अमेरिकी क्रू ने कहा था- मानव जाति के लिए हम (अमेरिका) फिर चांद पर लौटेंगे. हालांकि वो वादा अब तक पूरा नहीं हो सका है. 


मून की रेस कैसे शुरू हुई?


आज जब प्राइवेट यान चांद पर उतरा तो यह जानना दिलचस्प हो जाता है कि नासा के मून मिशन की भी चर्चा होने लगी. दरअसल, चांद पर इंसान भेजने की रेस अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जॉन एफ. केनेडी की 1962 की एक स्पीच से शुरू हुई थी. उन्होंने वादा किया था कि इस दशक के खत्म होने से पहले इंसान चांद पर चहलकदमी कर चुका होगा. 1969 में उनका वादा पूरा हो गया. 


हालांकि इसके बाद नासा की फंडिंग में कटौती होने लगी. भविष्य में अपोलो मिशन भेजना मुश्किल होता गया. जबकि 20 अपोलो मिशन प्लान किए गए थे लेकिन तकनीकी और अनुसंधान आधारित मिशन को उतनी तवज्जो नहीं दी गई जितनी मून लैंडिंग की चर्चा होती थी. आगे तीन मिशन कैंसल कर दिए गए. स्पेस रेस में अमेरिकी सरकार काफी पैसा खर्च कर रही थी. अपोलो 11 वैसे भी राजनीतिक बयान की देन था. 


20 अरब डॉलर का मोटा खर्च


चांद पर जाना काफी खर्चीला साबित हुआ. केनेडी सरकार ने तब 7 अरब डॉलर दिए थे. आखिर में इसकी लागत 20 अरब डॉलर पहुंच गई. देश का सपोर्ट भी कम दिखा. अमेरिका की जनता अपोलो मिशनों से नाराज होने लगी. अंदरूनी हालात भी अच्छे नहीं थे. जनता को लगा कि स्पेस यात्रा में इतना पैसा क्यों बर्बाद किया जा रहा है.


अब नासा चांद पर बेस बनाने की कोशिश कर रहा है. ‘इंटुएटिव मशीन्स’ का लैंडर ‘ओडीसियस’ जहां उतरा है, वहां अंधेरा होने में सात दिन का वक्त है. इसके बाद अंतरिक्षयान के सौर पैनल सूरज से ऊर्जा हासिल नहीं कर पाएंगे. वहां तापमान शून्य से कई डिग्री नीचे चला जाएगा. नासा चांद के साउथ पोल इलाके में पर्यावरण की स्टडी करेगा.