नई दिल्ली: कोरोना वायरस (Coronavirus) के गिरफ्त में आ रही ये दुनिया अब डर और चिंता के साये में जी रही है. ये जानलेवा वायरस सिर्फ शारीरिक रूप से ही नहीं बल्कि मानसिक रूप से भी लोगों को तोड़ रहा है.


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ऐसे समय में जब दुनिया भर के वैज्ञानिक इस वायरस का इलाज खोजने में जी जान से लगे हुए हैं. तब सिर्फ एक तरीके को सबसे बेहतर इलाज माना गया है और वो है सेल्फ आइसोलेशन यानी खुद को अलग-थलग कर लेना, खासकर बुजुर्गों के लिए. हालांकि सेल्फ आइसोलेशन इतना भी आसान नहीं है, इसकी भी भारी कीमत चुकानी पड़ती है. क्योंकि कोरोना वायरस संबंधी परेशानियों से निपटने के लिए अक्सर लोगों को अकेला छोड़ दिया जाता है.


ब्रुसेल्स के एक नर्सिंग होम में कर्मचारी इतने लंबे लॉकडाउन के प्रभाव को महसूस करने लगे हैं. कर्मचारियों का कहना है कि उनके पास परेशान होने के लिए भी समय नहीं है. कर्मचारियों को डर है कि COVID-19 की तुलना में लोग अकेलेपन से ज्यादा मरेंगे.


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कोरोना वायरस की वजह से अब लोगों को एक नहीं बल्कि दो-दो परेशानियां एक साथ झेलनी होंगी. पहला गंभीर बीमारी या मौत का जोखिम और दूसरा मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाला प्रभाव, जो वायरस के डर से पड़ रहा है कि आगे क्या होगा.


विशेषज्ञों को लगता है कि वो कोरोना वायरस से संक्रमित अस्पताल में भर्ती मरीजों और कोरोना की जंग में सबसे आगे वाली पंक्ति में लड़ रहे स्वास्थ्यकर्मियों में उच्च स्तर के पोस्ट-ट्रोमैटिक तनाव विकार और डिप्रेशन देखेंगे.