UP Rat Murder: भारतीय न्याय प्रक्रिया के इतिहास में ये पहला मामला है, जब किसी चूहे का पोस्टमार्टम (Rat Post-mortem) करवाया गया हो और अब पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई है. उसके बारे में जानने से पहले ये जान लीजिए कि आखिर एक चूहे का पोस्टमार्टम कराने की नौबत आई ही क्यों. दरअसल ये सवाल और इसका जवाब दोनों ही बेहद दिलचस्प हैं. वैसे ये पूरी कहानी उत्तर प्रदेश (UP) के बदायूं (Budaun) से शुरू होती है, आरोप है कि 25 नवंबर को मनोज नामक एक शख्स ने वहां एक चूहे की नाले में डुबोकर हत्या कर दी थी. बताया गया कि आरोपी ने चूहे की पूंछ को एक पत्थर से बांधकर उसे नाले में फेंक दिया, बाद में वहां से गुजर रहे एक पशु प्रेमी विकेंद्र शर्मा ने चूहे को बचाने की कोशिश की, लेकिन वो कामयाब नहीं हो सके और चूहे की मौत हो गई.


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चूहे के केस में पुलिस ने दिखाई कमाल की तेजी


इसके बाद चूहे की मौत से आहत विक्रेंद शर्मा थाने पहुंच गए और उन्होंने आरोपी मनोज के खिलाफ FIR दर्ज करवा दी. अब यहां से यूपी पुलिस का रोल शुरू होता है, क्योंकि ये कहानी यूपी पुलिस के स्पेशल एक्टिविज्म के बिना तो पूरी ही नहीं हो सकती थी. और अगर आप यूपी पुलिस को लापरवाह या सुस्त समझते हैं तो आज आपको अपना नजरिया बदल लेना चाहिए. क्योंकि एक चूहे की कथित हत्या की जांच में उसने जिस कमाल की तेजी और तत्परता दिखाई है, उसकी उम्मीद यूपी पुलिस से आमतौर पर की नहीं जाती.


आरोपी से 8 घंटे तक की गई पूछताछ


दरअसल बदायूं पुलिस को जैसी ही चूहे की कथित हत्या की शिकायत मिली वो तुरंत सक्रिय हो गई और उसने आनन-फानन में आरोपी मनोज को हिरासत में ले लिया और हिरासत में उससे 8 घंटे तक पूछताछ भी की. घटना के तीन दिन बाद यानी 27 नवंबर को पुलिस ने आरोपी मनोज के खिलाफ FIR भी दर्ज कर ली. चूहे को इंसाफ दिलवाने के लिए तत्पर यूपी पुलिस ने इस केस को सुलझाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी.


पोस्टमार्टम के लिए एसी कार भेजा गया चूहे का शव


आरोपी के खिलाफ पुख्ता सबूत जुटाने के लिए उसने चूहे के शव का पोस्टमार्टम भी करवाया. बदायूं में पोस्टमार्टम की सुविधा नहीं थी, तो पुलिस ने चूहे के शव को करीब 50 किलोमीटर दूर बरेली भिजवाया. वो भी एक AC कार में ताकि चूहे की बॉडी डिकंपोज न हो जाए यानी उसे कोई नुकसान न पहुंचे. हालांकि इसका खर्च शिकायतकर्ता ने ही उठाया है.


चूहे की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बड़ा खुलासा


जब पुलिस इतना एक्टिव थी तो, भला पोस्टमार्टम में कोताही कैसे बरती जाती. लिहाजा बरेली में दो विशेषज्ञ डॉक्टरों की एक टीम ने चूहे का पोस्टमार्टम किया. लेकिन अब उसकी जो पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई है, वो और भी दिलचस्प है. पोस्टमार्टम करने वाले डॉ. अशोक कुमार और डॉ. पवन कुमार ने कहा है कि चूहे की मौत डूबने से नहीं हुई, बल्कि वो पहले से ही बीमार था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, चूहे के फेफड़े और लिवर पहले से ही खराब थे जबकि उसके फेफड़ों में नाली के पानी का कोई अंश नहीं मिला. बाद में कुछ और जांच भी की गईं और इसके बाद दोनों डॉक्टर इस नतीजे में पहुंचे कि चूहे की मौत डूबने से नहीं बल्कि दम घुटने से हुई थी.


हालांकि इतनी भागदौड़ के बाद पुलिस थोड़ा मायूस जरूर हुई होगी क्योंकि पुलिस ये मान कर चल रही थी कि चूहे की बेदर्दी से डुबा कर हत्या की गई है, लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने इस केस में नया ट्विस्ट ला दिया है और अब आरोपी का परिवार पुलिस की मंशा पर सवाल उठा रहा है.


पोस्टमार्टम रिपोर्ट में डूबने से चूहे की मौत की पुष्टि नहीं हुई तो शिकायतकर्ता और पशु प्रेमी विक्रेंद्र शर्मा के खयालात भी बदल गए, अब वो कह रहे हैं कि उन्होंने FIR चूहे को मारने पर नहीं, बल्कि उसके साथ की गई क्रूरता के मुद्दे पर दर्ज करवाई थी.


लेकिन इस मामले में कानून का क्या कहना है. क्या चूहे को मारने पर किसी को सजा हो सकती है, इसका जवाब वन विभाग अधिनियम में मौजूद है. इस अधिनियम की धारा 5 के तहत चूहे को वॉर्मिंग कैटेगरी में रखा गया है यानी कीड़े-मकोड़े या रेंगने वाले जीवों की श्रेणी में और इनको मारना अपराध नहीं माना जाता. हालांकि ये मामला पशु क्रूरता अधिनियम के तहत दर्ज किया गया है, इसलिए शिकायतकर्ता का पक्ष भी गलत नहीं ठहराया जा सकता.


ये पूरा मामला अब कानूनी दांवपेच में फंस चुका है और चूहे का मर्डर हुआ या नहीं, ये तो अब अदालत में ही तय होगा. लेकिन इतना तो तय है कि ये केस अब लंबा चलेगा क्योंकि जिस न्याय व्यवस्था में इंसानों को ही इंसाफ मिलने में सालों लग जाते हैं. वहां एक चूहे को इंसाफ कब मिलेगा इसकी कोई समय सीमा नहीं है. क्योंकि हमारे देश की अदालतों में पहले से ही करीब पांच करोड़ मामले पेडिंग पड़े हैं और चोरी, जेबकतरी जैसे मामूली अपराधों में शामिल लाखों लोग जेलों में बंद है, जिनका केस सालों से चल रहा है.


केंद्र सरकार ने इसी वर्ष जुलाई में लोकसभा में जो आंकड़े जारी किए थे, उनके अनुसार देशभर की अदालतों में 4.83 करोड़ से भी ज्यादा मुकदमें पेडिंग पड़े हैं. इसमें 72 हजार से ज्यादा मामले तो अकेले सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग हैं, जबकि साढ़े 59 लाख (59,55,873) मामले देश के हाईकोर्ट में लंबित हैं. जबकि जिला और अधीनस्थ अदालतों में 4 करोड़ 23 लाख से ज्यादा मामले इंसाफ के इंतजार में लटकें हैं और इनमें भी 60 प्रतिशत से ज्यादा मामले ऐसे हैं, जो एक वर्ष से ज्यादा पुराने हैं.


कोर्ट में मुकदमों की इस भीड़ से क्या असर पड़ता है, ये भी जानना जरूरी है क्योंकि नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो एक रिपोर्ट कहती है कि पिछले कुछ सालों से भारतीय जेलों में विचाराधीन कैदियों की संख्या लगातार बढ़ रही है. 31 दिसंबर, 2021 तक भारतीय जेलों में करीब साढ़े पांच लाख कैदी थे लेकिन इसमें से सिर्फ 22 प्रतिशत कैदी ही ऐसे थे जिनका गुनाह साबित हो चुका था, यानी उन्हें सजा सुनाई जा चुकी थी, जबकि बाकी कैदी (4,27,165 कैदी) अंडरट्रायल थे, यानी करीब 78 प्रतिशत लोग अपराध साबित हुए बिना ही सजा काट रहे हैं.


दिलचस्प बात ये है कि एक तरफ दोषी साबित हो चुके कैदियों की संख्या में 9.5 प्रतिशत की कमी आई है तो वहीं विचाराधीन कैदियों की संख्या करीब 46 प्रतिशत तक बढ़ चुकी है. यानी अदालतों के पास मुकदमों की भीड़ बढ़ती जा रही है, फाइल पर फाइल इकट्ठा होती जा रही हैं, और इसकी वजह से इंसाफ में देरी हो रही है.


भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना ने तो यहां तक कहा था कि देश की आपराधिक न्याय प्रणाली में प्रक्रिया ही सजा बन गई है. और अब तो खुद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू भी यही अपील कर रही हैं. उन्होंने संविधान दिवस के दिन दिए गए अपने भाषण में विचाराधीन कैदियों की बढ़ती संख्या पर चिंता जताई थी और न्यायपालिका से इसका हल खोजने को कहा था.


अब इस केस में दो चीजें हो सकती हैं, पहली तो ये पुलिस केस यहीं खत्म कर दे. दूसरा ये कि पुलिस चार्जशीट दायर करे लेकिन तब पुलिस सबूत जुटाएगी, गवाहों के बयान दर्ज होंगे, फिर मामला कोर्ट में जाएगा, जहां लंबी सुनवाई होगी और फिर कोर्ट अपना फैसला सुनाएगा. लेकिन तब तक आरोपी मनोज हमेशा जेल जाने के खौफ में ही जिएंगे.


इस रिपोर्ट को दिखाने का हमारा मकसद ये बिल्कुल भी नहीं है कि हम पशुओं के साथ क्रूरता का समर्थन करते हैं, या हम पुलिस की कार्रवाई या शिकायतकर्ता की भूमिका पर कोई सवाल उठा रहे हैं. हमारा सिर्फ इतना कहना है कि काश पुलिस ये तत्परता बाकी मामलों में दिखाती. चूहों के साथ-साथ आम नागरिकों के साथ होने वाले अपराधों पर भी ऐसी ही तेजी दिखाई जाए, उन्हे भी वक्त पर इंसाफ दिलाया जाए. नहीं तो चूहे को इंसाफ मिले न मिले, लेकिन आम लोगों को तारीख पर तारीख ही मिलेंगीं.


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