Jahangir & Nurjahan Love Story: उसे कोई दिलदार बादशाह कहता है तो कोई खूंखार. कोई शराब और शबाब में डूबे रहने वाला तो कोई अपने ही बेटे की आंख फोड़ देने वाला. 27 साल की उम्र में अकबर के जीवन का सबसे बड़ा दुख ये था कि उसकी कोई औलाद नहीं थी. 1564 में उसके दो जुड़वां बेटे हसन और हुसैन पैदा हुए लेकिन एक ही महीने में उनका इंतकाल हो गया. इस घटना ने अकबर को तोड़ दिया.  


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उसने अपने प्रिय संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर मन्नत मांगी कि अगर मुझे बेटा हुआ तो मैं आगरा से अजमेर पैदल चलकर दरगाह पर सिर झुकाऊंगा. 


अकबर को हुए थे तीन बेटे


खुदा की अकबर पर रहमत हुई और सिपहसालारों ने उसको बताया कि मोइनुद्दीन चिश्ती के शिष्य सलीम चिश्ती आगरा के पास एक पहाड़ी पर रहते हैं, जो ख्वाहिश पूरी कर सकते हैं. उनके आशीर्वाद से अकबर को एक नहीं तीन बेटे हुए. सबसे बड़े बेटे का नाम अकबर ने उनके नाम पर सलीम रखा, जिसे दुनिया जहांगीर के नाम से जानती है.


17 अक्टूबर 1605 को जब अकबर का देहांत हुआ तो जहांगीर गद्दी पर बैठे. इसके करीब 6 साल बाद यानी 42 साल की उम्र में उन्होंने नूरजहां से शादी की थी. तब नूरजहां की उम्र 34 साल थी और उसके पति शेर अफगान की मौत हो गई थी. लेकिन नूरजहां और जहांगीर की मोहब्बत परवान चढ़ने की कहानी भी दिलचस्प है.


बहुत मशहूर है कबूतर वाला किस्सा


एंप्रेस: द ऐस्टॉनिशिंग रेन ऑफ़ नूरजहां में इतिहासकार रूबी लाल ने लिखा, 'एक दिन बाग में बादशाह जहांगीर आए. उनके हाथों में कबूतरों का एक जोड़ा था. तभी उनकी नजर एक फूल पर पड़ी. उसे तोड़ने की उनकी ख्वाहिश हुई. लेकिन वह कबूतरों को छोड़ना नहीं चाहते थे. तभी वहां एक खूबसूरत महिला आई.'


रूबी लाल ने आगे लिखा, 'जहांगीर ने दोनों कबूतर उस महिला को पकड़ाए और फूल तोड़ने चले गए. वापस आकर उन्होंने देखा कि महिला के हाथ में एक कबूतर बचा है. जब जहांगीर ने उससे पूछा कि एक कबूतर कहां गया तो उसने कहा कि वह तो उड़ गया. जब जहांगीर ने पूछा कि कैसे उड़ गया तो महिला ने दूसरा कबूतर उड़ाकर कहा-ऐसे.'


जब दोनों ने की बैलगाड़ी की सवारी


'मूडी' बादशाह जहांगीर और उनकी बेगम का एक और किस्सा सामने आता है, जो उनके दरबार में दूत रहे सर टॉमस रो ने पत्रों के जरिए बताया है. 


एक बार रात के वक्त टॉमस रो बादशाह से मिलना चाहते थे. पूरा दिन उनका इंतजार में निकल गया क्योंकि बादशाह शिकार पर थे. अंधेरा होने पर मशालें जला दी गईं. तभी मशालों को बुझा देने का आदेश आ गया क्योंकि बादशाह जहांगीर का बैलगाड़ी चलाने का मन हुआ. वह अपनी बेगम नूरजहां को लेकर बैलगाड़ी में बैठ गए और उसी से अपने शिविर में लौटे. 


टॉमस रो ने आगे कहा, यह दृश्य मुझे अच्छा लगा कि मुगल साम्राज्य का सबसे ताकतवर शख्स और उनकी बेगम बैलगाड़ी पर आ रहे हैं.