Mundka Fire: पश्चिमी दिल्ली के मुंडका में आग लगने से 28 लोग जलकर मर गए थे. ये आग क्यों लगी, इसका जवाब पहले से सबको मालूम था. जांच में भी वही सब दोहराया गया कि मुंडका की इमारत नियमों के मुताबिक नहीं बनी थी. उसमें आग बुझाने का कोई इंतजाम नहीं था. आग लगने के बाद जान बचाने के लिए कोई रास्ता नहीं है. इस भयानक घटना के बाद उम्मीद थी कि शायद जिम्मेदार लोग अब तो नींद से जागेंगे. मुंडका के बाद हालात कितने बदले, यही जानने के लिए ज़ी न्यूज़ की अंडरकवर टीम  दिल्ली के उन इलाकों में पहुंची, जो अवैध फैक्ट्रियों के लिए बदनाम हैं. यहां हमारा सामना जिस सच से हुआ, उसे जानकर आपके होश उड़ जाएंगे.


किसी को कोई फिक्र नहीं


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मुंडका की ये घटना किसी को भी झकझोर देने के लिए काफी थी. सिवाय उस सिस्टम के, जो इस तरह की घटनाएं रोकने के लिए ही बनाया गया है. इस घटना के बाद सिस्टम कितना बदला, यही जानने के लिए ज़ी न्यूज़ की टीम दिल्ली के बादली गांव पहुंची. मुंडका से मुश्किल से 15 किलोमीटर दूर उत्तर-पश्चिम दिल्ली के बादली गांव की जिन गलियों से हमारी टीम गुजरी, वहां इमारतों में फैक्ट्रियां चल रही थीं. हम यही जानने के लिए इस गांव में आए थे कि यहां फैक्ट्री खोलने के लिए कितने विभागों के चक्कर काटने पड़ते हैं. कितने विभागों से NOC यानी नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट लेना पड़ता है. बादली गांव में ही हमारी मुलाकात प्रॉपर्टी डीलर विनोद यादव से हुई, जो फैक्ट्रियों के लिए किराए पर बिल्डिंग दिलाने का काम करता है.


यहां से शुरू होता है स्टिंग


विनोद यादव, प्रॉपर्टी डीलर- किस चीज का काम करोगे?


रिपोर्टर- जूतों का


विनोद यादव, प्रॉपर्टी डीलर- थ्री फेस की तो जरूरत नहीं है उसमें


रिपोर्टर- मशीनें तो लगेंगी


विनोद यादव, प्रॉपर्टी डीलर- अच्छा कितना लोड चाहिए


रिपोर्टर- 25 से 30 तक


विनोद यादव, प्रॉपर्टी डीलर- 25 किलो और ग्राउंड फ्लोर भी चाहिए होगा?


रिपोर्टर- ऊपर लेना पड़े तो ले लेंगे लेकिन ग्राउंड फ्लोर मिल जाए तो बेहतर होगा.


फैक्ट्री के लिए फायर NOC की जरूरत नहीं?


हमारी जरूरत समझने के बाद इस प्रॉपर्टी डीलर ने किसी से फोन पर बात की. कुछ ही मिनट में उसने तीन फेस बिजली के कनेक्शन वाली एक बिल्डिंग ढूंढ निकाली. हमारी टीम ने अब मुद्दे की बात छेड़ी कि फैक्ट्री के लिए फायर NOC कैसे मिलेगी.


रिपोर्टर- अच्छा ये जो फायर वाला इश्यू है.. यहां पर फायर की एनओसी तो नहीं लेनी पड़ती है?


विनोद यादव, प्रॉपर्टी डीलर- ना ना ऐसा कुछ सिस्टम नहीं है. जैसे मुंडका में आग लग गई. अब बार-बार दिखा रहे हैं, किसने फायर की एनओसी परमिशन नहीं ले रखी थी. अब जब आग लग गई है तो खंगाल रहे हैं.. बाद में पहले कहां गए थे?


रिपोर्टर- मतलब की आते तो नहीं है यहां पर?


विनोद यादव, प्रॉपर्टी डीलर- ना ना... यहां नहीं... ये फायर बिग्रेड वाले साल में एक बार आते हैं, दीपावली पर. अपना हजार-पांच सौ खर्चा पानी लेते है. उनका जो सिलेंडर है बस वो ले लो एक बार. वो कोई महंगा नहीं है. अगर सिलेंडर ओके है तो खर्चा पानी लेते भी हैं, नहीं भी लेते.


साल में एक बार सिर्फ खर्चा-पानी!


इससे तो यह साफ हो गया है कि बादली गांव में फैक्ट्री चलाने के लिए फायर ब्रिगेड की NOC नहीं चलती. खर्चा-पानी चलता है और वो भी साल में एक बार. जो शख्स ये दावा हमारी अंडर कवर टीम के सामने कर रहा था, वो इसी गांव का है और खुद की फैक्ट्री भी चलाता है. बादली गांव में ये शख्स हमारी टीम को फैक्ट्री के लिए उपलब्ध इमारत दिखाने भी निकल पड़ा. रास्ते में हमारी नजर एक ऐसी बिल्डिंग पर पड़ी, जिसमें एक ही गेट था, जो मुश्किल से ढाई फीट चौड़ा था. गेट बंद था, इसलिए पता नहीं चला कि ये फैक्ट्री किस चीज की है. बादली गांव में विनोद यादव हमें जो बिल्डिंग दिखाने ले गया, उसके मालिक अनिल यादव से भी हमने यही बताया कि जूते की फैक्ट्री खोलने के लिए किराए की जगह चाहिए.


रिपोर्टर- तो सर बताइए क्या-क्या टर्म कंडीशन है?


अनिल यादव, मकान मालिक- आपका क्या काम है?


रिपोर्टर- हमारा जूते का काम है स्पोर्ट्स शू बनाते हैं.


अनिल यादव, मकान मालिक- लेबर वगैरह कितनी काम करेगी?


रिपोर्टर- सर 10 से 12...


अनिल यादव, मकान मालिक- जूते वगैरह में केमिकल का काम भी होता है?


रिपोर्टर- स्टिचिंग और पेस्टिंग का काम होता है. रॉ मैटेरियल आता है हमारा. सब चीज बना बनाया आता है. बस उसको चिपकाना होता है.


अनिल यादव, मकान मालिक- 10 से 12 आपके लेबर का काम होगा. तो आवाज कितना होगा...?


रिपोर्टर- अभी मैं ऊपर देखने गया था, अभी जो ऊपर आप के धागे की फैक्ट्री है उसमें जितनी आवाज हो रही है उतनी ही आवाज होगी.


रिपोर्टर- अच्छा भाई साहब से बात हो गई है हमारी. एक बार आप बता दीजिए क्या हमें कोई एनओसी लाना पड़ेगा?


अनिल यादव, मकान मालिक- एनओसी वगैरह नहीं चाहिए.


विनोद यादव, प्रॉपर्टी डीलर- ऐसा है जी आप पता कर लो यहां ऐसा कुछ नहीं है. यहां सब फैक्ट्री चल रही है बराबर वाली भी. ये सब कोई दिक्कत नहीं है. आप वहम में पड़ रहे हो बिना मतलब के.


रिपोर्टर- देखिए ये हमारा डेली का काम है. अगर हम फैक्ट्री चला रहे हैं ना तो हमें भी पता है कहां-कहां पैसा देना होता है. दिल्ली का सिस्टम मुझे कुछ नहीं पता. दूसरे जगह का उंगली पर बता देंगे कि कहां-कहां क्या-क्या दक्षिणा देना है. हमारा मानना यह है कि हमें पता रहे.


अनिल यादव, मकान मालिक- NOC का कोई सिस्टम यहां नहीं है.


रिपोर्टर-  NOC मतलब कि मैं फायर NOC की बात कर रहा हूं. अभी मुंडका में बवाल मच गया था.


विनोद यादव, प्रॉपर्टी डीलर- मुंडका में बवाल मच गया.. उससे पहले तो कोई आया नहीं वहां पर.


अनिल यादव, मकान मालिक- कोई बात नहीं.. फिलहाल तो ऐसा कुछ है नहीं यहां पर. अब कोई नियम आ जाए तो कल का तो पता नहीं.


रिठाला का भी यही हाल


बादली गांव के बाद हमारी टीम रिठाला गांव पहुंची. पश्चिम दिल्ली का ये गांव बादली और मुंडका से लगभग आठ-दस किलोमीटर की दूरी पर है. रिठाला गांव में भी छोटी-छोटी फैक्ट्रियों की भरमार है. यहां भी हमारी अंडरकवर टीम को सिर्फ एक सवाल का जवाब जानना था कि क्या रिठाला गांव में फैक्ट्री चलाने वालों को फायर ब्रिगेड की NOC के बारे में कुछ पता है. सरकारी रिकॉर्ड में जिस गांव को रिहायशी इलाका बताया गया है, वहां की मुख्य गलियों में आपको शायद ही कोई मकान मिलेगा, जिसमें कोई फैक्ट्री ना चल रही हो.


आग लग गई, तो क्या होगा?


यहां भी हमारी टीम ने कुरेद-कुरेद कर फायर NOC के बारे में पूछा, लेकिन जवाब हर बार यही मिला कि 'यहां इसकी कोई जरूरत नहीं'. रिठाला गांव है, इसलिए यहां फायर ब्रिगेड की NOC कोई नहीं लेता. अपनी बात के सबूत के तौर पर प्रापर्टी डीलर ने हमें रेंट एग्रीमेंट भी दिखाए और बिजली के बिल भी. यानी बिजली विभाग को मालूम है कि यहां फैक्ट्री चल रही है. उसके बाद भी किसी को परवाह नहीं कि फैक्ट्री में आग लग गई, तो क्या होगा?


यहां देखें स्टिंग ऑपरेशनः



फैक्ट्री चलाने वाले ही कठघरे में


चाहे मुंडका हो, बादली हो, बवाना हो, रिठाला हो..कोई भी इलाका हो. वहां आग लगने की घटनाओं के बाद मकान मालिक और फैक्ट्री चलाने वालों को ही कठघरे में खड़ा किया जाता है. उन विभागों से कोई नहीं पूछता, जो अवैध इमारत बनने देते हैं. उनमें फैक्ट्रियां खुलने देते हैं और बाकायदा बिजली का कनेक्शन भी दे देते हैं. फायर ब्रिगेड की NOC के बिना दिल्ली के गांवों में चल रही फैक्ट्रियों में अगर कोई हादसा होता है, तो उसका जिम्मेदार कौन होगा. हमने ये भी जानने की पूरी कोशिश की. चाहे बादली हो या रिठाला, दिल्ली के गांवों में धड़ल्ले से चल रही फैक्ट्रियों में अगर आग लगी, तो फायर ब्रिगेड की गाड़ी भी इन तंग गलियों में मुश्किल से पहुंचेगी.


किसी ने नहीं दिया जवाब


फायर ब्रिगेड की एनओसी के बिना ये फैक्ट्रियां कैसे चल रही हैं, ये जानने के लिए ज़ी मीडिया ने दिल्ली फायर ब्रिगेड के पूर्व प्रमुख एके शर्मा से बात की, तो उनका सीधा जवाब था कि ये तो दिल्ली के नगर निगमों से पूछा जाना चाहिए. नगर निगमों की जिम्मेदारी है, फायर विभाग उन्हीं को एनओसी देता है, जिसके बाद ऑकुपेंसी सर्टिफिकेट जारी होता है. दिल्ली में तीनों नगर निगमों का विलय होने के बाद नगर निगम फिलहाल प्रशासक के हवाले है. ऐसे में हमने उत्तर दिल्ली नगर निगम के पूर्व मेयर जय प्रकाश से बात की, तो जवाब मिला कि ये सवाल तो दिल्ली सरकार से पूछा जाना चाहिए कि अवैध फैक्ट्रियों को बिजली का कॉमर्शियल कनेक्शन कैसे मिल जाता है.


अवैध फैक्ट्रियां चलाने का खेल जारी


सरकारी विभाग अब तक अवैध फैक्ट्रियों में जिम्मेदारी का पेंच नहीं सुलझा पाए हैं. जिसका फायदा उठाकर दिल्ली में मनमानी बिल्डिंग बनाने और उन बिल्डिंगों में अवैध फैक्ट्रियां चलाने का खेल जारी है. इसका सीधा सा मतलब ये है कि मुंडका जैसी घटना ना तो पहली थी और ना आखिरी होगी, क्योंकि आग से खेलते शैतान दिल्ली की इमारतों को श्मशान बनाने से बाज आने के लिए तैयार नहीं हैं.


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