बाल विधवा से दूसरी शादी करने के बाद आया `कथा सम्राट` के जीवन में नया मोड़
प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी के लमही गांव में हुआ था.
हिंदी साहित्य में सर्वश्रेष्ठ कहानीकार का जब भी जिक्र होता है हमारे जहन में पहला नाम 'मुंशी प्रेचचंद' का ही आता है. बचपन से हम प्रेमचंद की कहानियां सुनकर उनके उपन्यास पढ़कर बड़े हुए. लिहाजा प्रेमचंद किसी परिचय के मोहताज नहीं है. हिंदी साहित्य के विकास को जो नई दिशा प्रेमचंद ने दी है उसमें आज भी उनका दूसरा कोई सानी पैदा नहीं हुआ. अपनी रचनाओं से उन्होंने समाज को रुढ़िवादी परंपराओं और कुरीतियों से निकालने की कोशिश की.
प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी के लमही गांव में हुआ था. उनका बचपन का नाम धनपत राय था. वे 8 साल के ही थे जब मां के आंचल का साया उनके सिर से उठ गया. 15 साल की छोटी सी उम्र में पिता ने विवाह करा दिया. उनकी पत्नी उम्र में उनसे बड़ी, बदसूरत और झगड़ालू मिजाज की थीं. इस दौरान उनका जीवन बहुत दुखद रहा. उन्होंने इस अनुभव के बारे में खुद लिखा है, 'उम्र में वह मुझसे ज्यादा थी. जब मैंने उसकी सूरत देखी तो मेरा खून सूख गया. उसके साथ-साथ जबान की भी मीठी नहीं थी.' उन्होंने अपनी शादी के फैसले पर पिता के बारे में लिखा है, 'पिताजी ने जीवन के अंतिम सालों में एक ठोकर खाई और स्वयं तो गिरे ही, साथ में मुझे भी डुबो दिया. मेरी शादी बिना सोचे समझे कर डाली.' हालांकि अपने फैसले पर बाद में उनके पिता को भी बहुत अफसोस हुआ.
उनकी शादी के बाद पिता ने भी दूसरी शादी कर ली. घर में सौतेली मां उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं करती थीं. एक पिता ही अपने बचे थे लेकिन जल्द ही वे भी उनका साथ छोड़कर इस दुनिया को अलविदा कह गए. मुंशी के सिर पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा. आर्थिक तंगी और परिवार की जिम्मेदारियों के बीच पत्नी भी साथ छोड़कर मायके चली गई.
मुंशी प्रेमचंद वकील बनना चाहते थे. साल 1905 के अंतिम दिनों में उन्होंने शिवरानी से शादी कर ली. शिवरानी एक बाल विधवा थीं. मुंशी प्रेमचंद विधवा विवाह के पक्षधर थे और यही वजह थी कि उन्होंने समाज के विरुद्ध जाकर शिवरानी से विवाह रचाया. शिवरानी के साथ विवाह के बाद उनकी जिंदगी में नया मोड़ आया. अध्यापक की नौकरी से वे स्कूलों के डिप्टी इंस्पेक्टर बना दिए गए. आखिरकार गरीबी से निजात मिली. वैसे प्रेमचंद ने 13 साल की उम्र से ही लिखना शुरु कर दिया था लेकिन अब तक उनके लेखन में काफी परिपक्वता आ चुकी थी.
नाम के आगे मुंशी जुड़ने की यह थी वजह
मुंशी प्रेमचंद के नाम के आगे मुंशी कैसे जुड़ा इसके लिए लोगों के अलग-अलग मत हैं. माना जाता है कि उस समय अध्यापकों को मुंशी कहा जाता था. इसलिए उनके नाम के आगे मुंशी जुड़ गया. ज्यादातर लोगों का मानना है कि पहले कायस्थों के नाम के आगे सम्मान स्वरूप मुंशी लगाने के परंपरा थी. हो सकता है उनके मुंशी कहे जाने के पीछे यह वजह रही होगी.
प्रेमचंद की कहानी नमक का दरोगा, मंत्र, कर्मभूमि, ईदगाह और उपन्यास गोदान जैसी कई रचनाएं हिंदी साहित्य के लिए किसी धरोहर से कम नहीं हैं.यही वजह है कि उन्हें कथा सम्राट की उपाधि दी गई. अपने मुखर साहित्य को लेकर उनकी कई रचनाएं प्रतिबंधित भी कर दी गईं. 1909 में उनकी लिखी 'सोजे वतन' को अंग्रेजों ने जला दिया था और 'समर यात्रा' को प्रतिबंधित कर दिया था.