Netaji Subhas Chandra Bose Death Mystery: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को नए भारत के 'कर्तव्यपथ' को जनता को समर्पित किया. इंडिया गेट से राष्ट्रपति भवन को जोड़ने वाला ये रास्ता पहले राजपथ के नाम से जाना जाता था लेकिन आजादी के 75वें वर्ष में गुलामी की ये निशानी भी पीछे छूट चुकी है. इस कर्तव्यपथ का सबसे बड़ा आकर्षण वहां लगाई गई नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Netaji Subhas Chandra Bose) की प्रतिमा है. ग्रेनाइट से बनी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की यह प्रतिमा 28 फीट ऊंची है और इसका वजन 65 मीट्रिक टन है.  


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ये मोनोलिथिक यानी एक ही पत्थर को काट कर बनाई जाने वाली भारत की सबसे बड़ी ग्रेनाइट की प्रतिमा भी है. इसे 280 मीट्रिक टन के एक ग्रेनाइट पत्थर से बनाया गया है जिसे मूर्तिकारों की एक टीम ने 26000 घंटों तक तराशा और तब जाकर नेताजी की ये शानदार प्रतिमा तैयार हुई. इससे पहले 23 जनवरी को पीएम मोदी ने नेताजी की 125वीं जयंती के अवसर पर उनकी होलोग्राफिक प्रतिमा का अनावरण किया था. 


पहली लगी हुई थी ब्रिटिश सम्राट की प्रतिमा


इस प्रतिमा को इंडिया गेट के सामने जिस जगह पर लगाया गया है, उसका भी अपना एक इतिहास है. नेताजी की प्रतिमा से पहले यहां ब्रिटेन के राजा किंग जॉर्ज पंचम की प्रतिमा मौजूद थी. संगमरमर की 50 फीट ऊंची ये प्रतिमा तब की ब्रितानी हुकूमत ने अपने राजा के सम्मान में लगवाई थी. 


वर्ष 1947 में भारत की आजादी के बाद इंडिया गेट पर किंग की प्रतिमा का विरोध हुआ. इसके बावजूद करीब 20 वर्षों तक किंग जॉर्ज पंचम की ये प्रतिमा वहीं मौजूद थी. बाद में वर्ष 1968 में इसे वहां से हटा लिया और फिर इसके बाद अलग अलग सरकारों के कार्यकाल में इस जगह पर महात्मा गांधी से लेकर जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी की प्रतिमा लगाने की कोशिशें की गईं. लेकिन पचास सालों से ये खाली ही रही. और अब यहां भारत की आज़ादी के महानायक नेताजी बोस की प्रतिमा शान से मौजूद है. उन्हीं नेताजी की, जिन्होने वर्षों तक अंग्रेजी हुकूमत की नाक में दम करके रखा और उनकी आज़ाद हिंद फौज ने अंग्रेजों को कई बार परास्त भी किया. 


नेताजी (Netaji Subhas Chandra Bose) पहले व्यक्ति थे जिन्होंने भारत के लोगों को भारतीय होने की नज़र से देखना सिखाया. उनका लक्ष्य भारत की आज़ादी था. अंग्रेज़ों से भारत की आज़ादी के लिए बोस किसी भी कीमत पर समझौता नहीं करना चाहते थे. शुरुआत में वो  महात्मा गांधी के साथ देश की स्वतंत्रता आंदोलन में भी शामिल हुए और वर्ष 1938 और 1939 में वो कांग्रेस के अध्यक्ष भी चुने गए लेकिन महात्मा गांधी से वैचारिक मतभेद होने की वजह से उन्होने कांग्रेस से इस्तीफ़ा दे दिया.


देश की आजादी के लिए बनाई आजाद हिंद फौज


उस वक्त दूसरा विश्व युद्ध शुरू हो चुका था और नेताजी चाहते थे कि युद्ध खत्म होने का इंतज़ार करने की जगह अंग्रेजों की मजबूरी का फायदा उठाकर देश को आज़ाद कराया जाए. उन्होने भारत को जबरदस्ती विश्व युद्ध में झोंके जाने का भी विरोध किया. बोस को साम्राज्य के लिए खतरा बनता देख अंग्रेजों ने उन्हें जेल में डाल दिया. जहां उन्होने भूख हड़ताल शुरू कर दी. बाद में अंग्रेजों ने उन्हें उनके घर में ही नजरबंद कर दिया.


लेकिन अंग्रेजो को चकमा देकर वो जर्मनी भाग निकले और युद्ध की ट्रेनिंग ली. 4 जुलाई 1943 को सिंगापुर में रासबिहारी बोस ने आज़ाद हिंद फ़ौज की कमान नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Netaji Subhas Chandra Bose) के हाथों में सौंप दी. फिर उन्होने INA के कमांडर की हैसियत से आज़ाद भारत की पहली सरकार की स्थापना की. इस निर्वासित सरकार को जर्मनी, जापान, फिलिपींस, कोरिया, चीन, इटली और आयरलैंड समेत नौ देशों ने मान्यता भी दी थी. 


INA ने अंग्रेजों को हराते हुए अंडमान निकोबार द्वीप समूह को जीत लिया था और ये भारत की पहली स्वतंत्र भूमि थी. यही नहीं इंफाल और कोहिमा के मोर्चे पर आजाद हिंद फौज ने अंग्रेजी सेना को कई बार हराया और वहां भी आजाद भारत का झंडा लहराया गया. 


महिलाओं के रानी झांसी रेजिमेंट का किया गठन


नेताजी (Netaji Subhas Chandra Bose) का नारा था कि तुम मुझे ख़ून दो मैं तुम्हे आज़ादी दूंगा. इसी नारे का असर था कि आजादी के लिए सैकड़ों महिलाओं ने भी बंदूक थाम कर अंग्रेजों का मुकाबला किया. आज़ाद हिन्द फौज शायद दुनिया की पहली ऐसी सेना थी जिसमें महिला रेजिमेंट मौजूद थी और रानी झांसी नाम की इस रेजिमेंट की कमान कैप्टन लक्ष्मी सहगल के हाथों में थी.


18 अगस्त वर्ष 1945 को नेताजी की ताइपे में रहस्यमयी तरीके से मृत्यु हो गई. तब तक विश्वयुद्ध में जापान की भी हार हो चुकी थी, ऐसे में आज़ाद हिंद फौज को भी आत्मसमर्पण करना पड़ा था और उसके कई कमांडरों और सैनिकों पर दिल्ली के लाल किला में मुकदमा भी चलाया गया था. लेकिन नेताजी और उनकी आज़ाद हिंद फौज अपना काम कर चुकी थी. उन्होने आम हिंदुस्तानियों के दिलों में आजादी की जो चिंगारी पैदा की थी वो शोलों में बदल चुकी थी. अंग्रेजी सेना में शामिल भारतीय सैनिक विद्रोह करने लगे थे और अंग्रेज़ समझ चुके थे कि अब उनके लिए भारत में राज करना नामुमकिन है. आखिरकार वर्ष 1947 में अंग्रेज भारत को हमेशा के लिए छोड़ कर चले गए.


सुभाष चंद्र बोस (Netaji Subhas Chandra Bose) जैसे स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान से देश को आजादी मिली और आज देश आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहा है. कुछ सवाल हैं जिनके जवाब को लेकर संशय बरकरार है. ऐसा ही एक सवाल है कि नेता जी सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु कैसे हुई. कहां हुई..किन परिस्थितियों में हुई..क्या आजादी के 75 साल भी कुछ ऐसे राज़ हैं जिन्हें दबाने की कोशिश की जा रही है. 


ताइवान में 18 अगस्त 1945 को मारे जाने का दावा


तारीख 18 अगस्त 1945, आखिरी बार नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Netaji Subhas Chandra Bose) को ताइपे के इसी सनशांग एयरपोर्ट पर देखे जाने का दावा किया जाता है. कुछ सरकारी दस्तावेज़ों और जांच आयोग के मुताबिक ताइवान के इसी सनशांग एयरपोर्ट पर नेताजी का प्लेन क्रैश हो गया था. नेताजी के सहयोगी कर्नल हबीबु्रर्हमान के मुताबिक उस दिन यानि 18 अगस्त 1945 को नेताजी का प्लेन ताइपे के इस सनशांग एयरपोर्ट पर रूका था, यहां ईंधन ले रहे थे और जैसे ही नेता जी का प्लेन टेक ऑफ होने वाला था. वैसे ही एक बहुत तेज़ धमाके की आवाज़ आती है और प्लेन क्रैश हो जाता है और आग लग जाती है. 


नेता जी की ताइवान फाइल्स की ये थ्योरी नेताजी के सहयोगी कर्नल हबीबुर्रहमान के बयानों पर आधारित है जो हादसे वाले दिन नेता जी के साथ मौजूद थे. कर्नल हबीबुर्रहमान नेता जी के बेहद भरोसेमंद थे और नेता जी मौत की जांच के लिए बने पहले कमीशन के सामने भी उन्होंने ये बयान दिया था. शाहनवाज़ कमीशन के आगे हबीबुरर्हमान ने जो बयान दिया था उसके मुताबिक नेताजी को इस प्लेन के आगे वाले हिस्से से निकालकर अस्पताल ले जाया गया. यानि सरकारी दस्तावेज़ों और कुछ जांच आयोग के मुताबिक इसी सनशांग एयरपोर्ट पर प्लेन क्रैश हो गया था लेकिन इन दावों पर भी लोगों को यकीन नहीं है. नेताजी के साथ क्या हुआ था, नेताजी की मौत का रहस्य क्या है. आज भी इस पर सस्पेंस बरकरार है. 


आखिरकार नेता जी (Netaji Subhas Chandra Bose) से जुड़ी कौन सी थ्योरी सही है इसकी पड़ताल करते करते जी न्यूज़ की टीम उस अस्पताल में पहुंची जहां पर नेता जी का इलाज किया गया...


कर्नल हबीबुर्रहमान ने दी थी मौत की गवाही 


ज़ी न्यूज़ की टीन सनशांग एयरपोर्ट से मिलिट्री अस्पताल पहुंची है और इस अस्पताल की दूरी सनशांग एयरपोर्ट से मात्र डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर है. शाहनवाज़ जांच आयोग के सामने कर्नल हबीबुरर्हमान ने जो बयान दिया था उसमें कहा था कि 18 अगस्त 1945 विमान हादसे के बाद नेताजी को इस अस्पताल में लेकर आया गया और इलाज किया गया. उन्हें 6 घंटे तक होश आता रहा और वे बार बार बेहोश होते रहे. नेताजी ने कहा कि देश के लोगों को बता देना कि आखिरी सांस तक मैंने देश के आज़ादी की लड़ाई लड़ी है. कर्नल हबीबुर्रहमान के मुताबिक अस्पताल में इलाज के दौरान नेताजी सुभाष चंद्र बोस का निधन हो गया. लेकिन कई लोग इस दावे पर विश्वास नहीं करते हैं. 


कृष्णा बोस के एक लेख के मुताबिक 1943-44 में नेताजी (Netaji Subhas Chandra Bose) जब ताइवान आते थे तो वो ताइपे के ताइवान रेलवे होटल में रूकते थे. जो कि ताइपे मेन स्टेशन के आसपास हुआ करता था. क्योंकि उन्हें यहां से सिंगापुर, रंगून, टोक्यो की फ्लाइट लेनी होती थी. जब हमने होटल को तलाशने की कोशिश की तो हमें ताइवान रेलवे होटल नहीं मिला. हमने बहुत से लोगों से पूछा लेकिन अब किसी के पास जवाब नहीं. काफी कोशिशों के बाद हमें यह पता चला कि यह होटल अब यहां नहीं है, इसकी जगह अब Shin Kong Life Tower ने ले लिया है. हम इसकी पुष्टि नहीं कर सकते हैं लेकिन स्थानीय लोगों ने बताया कि यहीं पर ताइवान होटल हुआ करता था.


राज जानने के लिए अब तक बन चुके 3 आयोग


1945 से 2022 तक बहुत लंबा अरसा गुजर चुका है ताइवान में बहुत कुछ बदल चुका है. लेकिन नेता जी की मृत्यु के राज़ यहीं पर मौजूद हैं. यही वजह है जब भारत सरकार ने इस रहस्य को सुलझाने की कोशिश की तो जांच यहां तक भी पहुंची.अब तक तीन आयोग नेता जी की मृत्यु का रहस्य जानने के लिए बन चुके हैं. ये हैं शाहनवाज़ आयोग, खोसला आयोग और मुखर्जी आयोग. 


इसमें से शाहनवाज़ आयोग और खोसला आयोग की जांच के मुताबिक नेता जी की मौत ताइवान विमान हादसे में हुई थी. कहा ये भी जाता है कि शाहनवाज कमेटी तो कभी ताइवान पहुंची ही नहीं और खोसला कमेटी ने भी सिर्फ ताइवान जाकर रस्म  अदायगी की. 


वर्ष 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान मुखर्जी आयोग का गठन किया गया. जस्टिस मनोज कुमार मुखर्जी ने ताइपे का दौरा किया और उन्होने खुलासा किया कि 18 अगस्त 1945 को ताइपे के इस सनशांग एयरपोर्ट पर कोई प्लेन क्रैश नहीं हुआ था. 


मुखर्जी आयोग की जांच में सनसनीखेज खुलासा


हालांकि मुखर्जी आयोग सिर्फ एयरपोर्ट पर ताइवान की रिपोर्ट के आधार पर इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा था कि 18 अगस्त को सुभाष चंद्र बोस की मौत नहीं हुई. इसका आधार अंतिम संस्कार की रिपोर्ट भी रही. मुखर्जी आयोग के मुताबिक सुभाष चंद्र बोस नाम से 18-22 अगस्त के बीच कोई अंतिम संस्कार नहीं हुआ. तो उसके बाद से लगातार यह आवाज उठ रही है कि नेताजी का सच क्या है. 18 अगस्त 1945 को नेताजी के साथ क्या हुआ था. 


हमने इस दावे की पड़ताल ताइवान के हिस्टोरिकल आर्काइव से मिले एक रिकॉर्ड से की...जिसे ताइपे में नेता जी पर शोध कर रहे भारतीय छात्र सौरव डांगर ने निकाला था. इस पेपर में जो कुछ लिखा था वो हैरान करने वाला था. इसमें यह लिखा है कि 22 अगस्त को IChiro Okura का अंतिम संस्कार हुआ. इस फाइल का सीरियल नंबर 2641 है. बस यही रिकॉर्ड है. जापानी बोलते थे चंद्र बोस, वो नाम भी नहीं मिला.


आजादी के आंदोलन में नेताजी (Netaji Subhas Chandra Bose) और उनकी आज़ाद हिंद फौज का योगदान कभी नहीं भुलाया जा सकता . आज अगर हम आज़ादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहे हैं तो इसके पीछे नेताजी बोस की भूमिका बहुत बड़े थी . लेकिन विडंबना देखिये कि सरकारें आईं और गईं. लेकिन उन्हें आजाद भारत में वो सम्मान नहीं मिला, जिसके वो हकदार थे...लेकिन आज पूरा देश न सिर्फ़ उन्हे याद कर रहा है वो उनके कर्तव्य पथ पर चल कर फख्र भी महसूस कर रहा है..



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