पुण्यतिथि: नोबेल विजेता हर गोबिंद खुराना से जुड़ी ये दिलचस्प बातें जानते हैं आप?
हरगोबिंद खुराना (Hargobind Khorana) मुलतान के जिस दयानंद आर्य समाज हाईस्कूल में पढ़े थे, उसका नाम अब बदलकर मुस्लिम हाईस्कूल कर दिया गया है. उनकी बाकी की पढ़ाई पंजाब यूनीवर्सिटी लाहौर में हुई. जहां से उन्होंने एमएससी तक पढ़ाई की. इसके लिए उन्हें स्कॉलरशिप भी मिली थी.
नई दिल्ली: हरगोबिंद खुराना (Hargobind Khorana) के बारे में हर जागरूक भारतीय जानता है कि उन्हें जींस (Genes) से जुड़ी एक खोज के चलते नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. लेकिन इससे ज्यादा जानने वाले बेहद कम हैं. उनकी पुण्यतिथि है तो आज उनके बारे में कुछ दिलचस्प बातें भी जान लीजिए-
· हर गोबिंद खुराना अविभाजित पंजाब में 1922 में पैदा हुए थे, ये मुलतान इलाके का रायपुर गांव था, जो अब पाकिस्तान में चला गया है. उनके पिता ब्रिटिश सरकार में पटवारी का काम करते थे, 100 परिवारों के बीच गांव में एक स्कूल था, जिसके एक पेड़ के नीचे हरगोविंद खुराना ने शुरू की 4 क्लासों की पढ़ाई की थी. वह अपने पांच भाई बहनों में सबसे छोटे थे.
· वह मुलतान के जिस दयानंद आर्य समाज हाईस्कूल में पढ़े थे, उसका नाम अब बदलकर मुस्लिम हाईस्कूल कर दिया गया है. उनकी बाकी की पढ़ाई पंजाब यूनीवर्सिटी लाहौर में हुई. जहां से उन्होंने एमएससी तक पढ़ाई की. इसके लिए उन्हें स्कॉलरशिप भी मिली थी.
· वो पढ़ाई में इतने मेधावी थे कि 1945 में उन्हें ब्रिटिश सरकार की स्कॉलरशिप मिली और वो लिवरपूल यूनीवर्सिटी में ऑर्गेनिक कैमिस्ट्री की पढ़ाई करने के लिए लंदन चले गए. उसके बाद पोस्ट डॉक्टरल फेलोशिप के लिए स्विटरलैंड के ज्यूरिख भी गए.
· 1949 में जब वो पंजाब वापस लौटे तो उन्हें वहां कोई भी जॉब उनकी पढ़ाई के हिसाब से नहीं मिल पाया तो फिर से एक फेलोशिप पर जॉर्ज वॉलेस केनर और अलेक्जेंडर आर टोड जैसे बड़े कैमिस्ट्री के दिग्गजों के साथ काम करने के लिए लंदन लौट गए.
· 1952 में वो कनाडा के वेंकूवर में परिवार के साथ बस गए, उन्हें ब्रिटिश कोलम्बिया यूनीवर्सिटी से जुड़ी रिसर्च काउंसिल में जॉब मिल गई थी.
· उसके बाद वो 1960 में अमेरिका में यूनीवर्सिटी ऑफ विंसकोंसिन-मेडीसन में इंस्टीट्यूट ऑफ एंजाइम रिसर्च के को-डायरेक्टर के बड़े पद पर चले गए. 1962 में वो बायोकैमिस्ट्री के प्रोफेसर बन गए.
· इसी यूनीवर्सिटी में उन्होंने वो काम किया किया जिसके लिए उन्हें बाकी 2 के साथ संयुक्त रुप से 1968 में उन्हें फिजियोलॉजी या मेडिसिन का नोबेल पुरस्कार दिया गया. उनके बारे में नोबेल अवॉर्ड की वेबसाइट ने लिखा था- ‘For their interpretation of the genetic code and its function in protein synthesis’.
· हर गोबिंद खुराना अमेरिका में जाने के 6 साल बाद यानी 1966 में अमेरिकी नागरिक बन गए थे, इस तरह से उन्होंने भारत और पाकिस्तान दोनों से अपना नाता तोड़ लिया था. ये अलग बात है कि दुनियां भर में उन्हें इंडियन अमेरिकन ही लिखा जाता है. हालांकि स्विटजरलैंड में ही उन्होंने 1952 में ही ईस्थर एलिजाबेथ से शादी कर ली थी, उनके 3 बच्चे भी हैं- जूलिया एलिजाबेथ, एमिली एन्ने और डेव रॉय.
· 2007 में भारत सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी, यूनीवर्सिटी ऑफ विंसकोंसिन-मेडिसन और इंडो-यूएस साइंस एंड टेक्नोलॉजी फॉरम ने मिलकर एक ‘खुराना प्रोग्राम’ शुरू किया, जिसका मकसद साइंटिस्ट्स कम्युनिटी, इंडस्ट्रियलिस्ट्स और सोशल एंटरप्रिन्यॉर को बढ़ावा देना था.
· खुराना की मौत 89 साल की उम्र में 9 नवम्बर 2011 को हो गई थी, उनकी मौत के 7 साल बाद यानी 2018 में उनके 96वें जन्मदिन पर गूगल ने खुराना डूडल बनाकर उनको सम्मानित भी किया था.