Jammu Kashmir Vidhansabha: जम्मू-कश्मीर विधानसभा के दूसरे दिन श्रद्धांजलि सत्र के दौरान मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को अचानक याद कर लिया. उन्होंने जमकर तारीफ करते हुए कहा कि अगर वाजपेयी के कश्मीर के प्रति दृष्टिकोण और रोडमैप का पूरी तरह पालन किया गया होता, तो आज राज्य की स्थिति कुछ और ही होती. उमर ने वाजपेयी को एक ऐसे राजनेता के रूप में याद किया, जिन्होंने पाकिस्तान के साथ मित्रवत संबंध बनाने की कोशिश की और लाहौर बस सेवा तथा मीनार-ए-पाकिस्तान की यात्रा से दोस्ती का हाथ बढ़ाया. वाजपेयी का मशहूर कथन, "हम दोस्त बदल सकते हैं, लेकिन पड़ोसी नहीं" आज भी प्रासंगिक है.


'जम्मूरियत कश्मीरियत और इंसानियत' का जिक्र


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असल में उमर अब्दुल्ला ने वाजपेयी के प्रसिद्ध नारे 'जम्मूरियत कश्मीरियत और इंसानियत' का जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने इस नारे के साथ कश्मीर समस्या के समाधान की राह दिखाई थी. उमर ने माना कि ऐसे नारे देने का साहस वाजपेयी के अलावा शायद ही किसी अन्य नेता में था. उन्होंने कहा कि वाजपेयी के साथ काम करने के दौरान उन्होंने सीखा कि कैसे एक सच्चे नेता को अपने रास्ते पर अडिग रहना चाहिए, भले ही उसे आलोचनाओं का सामना क्यों न करना पड़े. उमर ने यह भी कहा कि वाजपेयी ने विभाजित परिवारों को जोड़ने के लिए ऐतिहासिक मुजफ्फराबाद मार्ग खोला, जिससे भारत और पाकिस्तान के संबंध सुधारने में भी सहायता मिली.


'वाजपेयी की नीति को अपनाया गया होता तो...'


हालांकि वाजपेयी के कश्मीर संबंधी रोडमैप को बीच में ही छोड़ दिए जाने पर उमर ने दुख जताया. उन्होंने कहा कि अगर वाजपेयी की नीति को अपनाया गया होता, तो जम्मू-कश्मीर आज एक बेहतर स्थिति में होता. सीपीआईएम के विधायक यूसुफ तारिगामी ने भी इस दौरान कहा कि एक समय वाजपेयी ने विधानसभा द्वारा पारित स्वायत्तता प्रस्ताव को वापस भेज दिया था, लेकिन बाद में उन्होंने इसे पुनर्विचार के लिए कानून मंत्री अरुण जेटली को एनसी नेतृत्व से बातचीत के लिए नियुक्त किया था.


श्रद्धांजलि सत्र के दौरान..


वहीं इस श्रद्धांजलि सत्र के दौरान उमर अब्दुल्ला ने पिछले छह वर्षों में दिवंगत हुए 57 विधायकों को श्रद्धांजलि दी. विशेष बात यह रही कि कट्टर अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी, जो कभी तीन बार विधायक रह चुके थे, का नाम भी इस सूची में शामिल किया गया. गिलानी 1972, 1977 और 1987 में सोपोर से विधायक रहे, हालांकि 1989 में आतंकवाद के उदय के साथ वह अलगाववादी आंदोलन से जुड़ गए और 2021 में अपनी मृत्यु तक चुनाव का बहिष्कार करते रहे.


उधर पीडीपी विधायक रफीक नाइक ने भी सदन में गिलानी समेत अन्य दिवंगत विधायकों को श्रद्धांजलि दी. नाइक ने कहा कि गिलानी एक अच्छे वक्ता थे, हालांकि उनकी राजनीतिक विचारधारा उनसे भिन्न थी. उन्होंने गिलानी और अन्य पूर्व विधायकों को श्रद्धांजलि देते हुए कहा, "भगवान उनकी आत्मा को शांति दें, हमने महान नेताओं को खो दिया है.