बलात्कारी और हत्यारा अगर पांच वक्त का नमाजी हो तो सजा कम हो जाएगी? हाई कोर्ट ने फांसी को उम्रकैद में बदला
Orissa HC Judgement: ओडिशा हाई कोर्ट ने हालिया फैसले में छह साल की बच्ची से बलात्कार और फिर उसकी हत्या के दोषी को मिली फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया.
Orissa High Court News: क्या किसी अपराधी की सजा इस आधार पर कम की जा सकती है कि वह दिन में कई बार नमाज पढ़ता है? वह भी तब जब वह छह साल की मासूम बच्ची से बलात्कार और हत्या का दोषी हो? यह सवाल इसलिए उठा क्योंकि ओडिशा हाई कोर्ट ने ऐसे अपराधी को मिली फांसी की सजा को उम्रकैद में बदला है.
HC ने फैसले में मामले को इस आधार पर 'रेयरेस्ट ऑफ द रेयर' नहीं माना कि 'वह (दोषी) दिन में कई बार भगवान से प्रार्थना करता है और वह सजा कबूल करने के लिए तैयार है, क्योंकि उसने खुदा के सामने आत्मसमर्पण कर दिया है'. केवल 'रेयरेस्ट ऑफ द रेयर' मामलों में ही मृत्युदंड की सजा दी जा सकती है.
HC ने दोषी माना लेकिन सजा घटा दी
यह फैसला जस्टिस एसके साहू और जस्टिस आरके पटनायक की डिवीजन बेंच ने सुनाया. HC ने ट्रायल कोर्ट का फैसला बरकरार रखा जिसमें शेख आसिफ अली को बच्ची के रेप और मर्डर का दोषी करार दिया गया था. उसे आईपीसी की धारा 302/376 और POCSO एक्ट की धारा 6 के तहत दोषी पाया गया. ट्रायल कोर्ट ने इसे 'रेयरेस्ट ऑफ द रेयर' केस मानते हुए अली को मृत्युदंड दिया. 2014 में जब अपराध हुआ, उस समय अली की उम्र 26 साल थी.
हालांकि, HC ने फैसले में कहा कि दोषी को मृत्यु होने तक जेल में रखा जाए. बेंच ने मौत की सजा को उम्रकैद में बदलने को कई आधारों पर सही ठहराया. इनमें रोज नमाज पढ़ना और सजा के लिए खुदा के आगे आत्मसमर्पण भी शामिल है. टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी रिपोर्ट के अनुसार, HC ने कहा, 'वह (दोषी) एक पारिवारिक आदमी है, उसकी बुजुर्ग मां 63 साल की है और दो बहनें हैं जिनकी शादी नहीं हुई है. घर में कमाने वाला वही था और मुंबई में रंगाई-पुताई का काम करता था, परिवार की माली हालत ठीक नहीं है.
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'क्रिकेट-फुटबॉल अच्छा खेलता था, जेल में भी ठीक व्यवहार'
हाई कोर्ट ने फैसले में लिखा, 'स्कूल में उसका चरित्र और व्यवहार अच्छा था और उसने 2010 में मैट्रिकुलेशन पास किया था. आगे पढ़ नहीं पाया क्योंकि परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी. युवावस्था में वह क्रिकेट और फुटबॉल का अच्छा खिलाड़ी था. भले ही वह लगभग 10 साल तक न्यायिक हिरासत में रहा, जेल सुपरिटेंडेंट और मनोचिकित्सक की रिपोर्ट्स बताती हैं कि जेल के भीतर भी उसका व्यवहार सामान्य है. साथी कैदियों के साथ-साथ जेल कर्मचारियों के प्रति उसका व्यवहार सौहार्दपूर्ण है और वह जेल प्रशासन के हर अनुशासन का पालन कर रहा है.'
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मृत्युदंड एकमात्र विकल्प नहीं: HC
जस्टिस साहू ने फैसले में आगे कहा, 'कैद में रहने के दौरान, न तो उसके खिलाफ कोई प्रतिकूल रिपोर्ट दर्ज है और न ही उसने जेल में कोई अपराध किया है. वह दिन में कई बार भगवान से प्रार्थना कर रहा है और वह सजा स्वीकार करने के लिए तैयार है क्योंकि उसने भगवान के सामने आत्मसमर्पण कर दिया है.'
HC ने कहा कि 'इस बात के कोई पुख्ता सबूत नहीं हैं कि अपीलकर्ता सुधार और पुनर्वास से परे है. सभी तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, यह नहीं कहा जा सकता कि अपीलकर्ता के लिए मृत्युदंड ही एकमात्र विकल्प है और आजीवन कारावास का विकल्प पर्याप्त नहीं होगा और यह पूरी तरह से असंगत है.' HC ने ओडिशा सरकार को पीड़िता के परिवार को 10 लाख रुपये देने का आदेश भी दिया.