Chirag Paswan Vs Pashupati Kumar Paras: लंबी राजनीतिक पारी खेल चुके पारस भले ही अच्छा-खासा सियासी अनुभव रखते हों, लेकिन भतीजे चिराग पासवान उनके राजनीतिक दांव-पेंच पर बिहार से लेकर दिल्ली तक उन पर भारी पड़े. पशुपति कुमार पारस ने आखिरकार पटना में पार्टी ऑफिस खाली कर दिया और जाते-जाते पार्टी ऑफिस का छप्पर भी उखाड़ ले गए. उनके कार्यकर्ता कार्यालय खाली करते हुए ऑफिस का एस्बेस्टस का छत ले गए. राम विलास पासवान के बाद जब यह पशुपति पारस के कब्जे में गया तो चाचा-भतीजे की लड़ाई में इसको खाली कराने का राजनीतिक द्वंद्व चला और भतीजा जीत गया तो चाचा को ऑफिस छोड़कर अब जाना पड़ा. पटना एयरपोर्ट के पास स्थित इस घर को चिराग के पिता राम विलास पासवान (Ramvilas Paswan) ने लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) के कार्यालय के रूप में पंजीकृत कराया था. अनौपचारिक रूप से यह पशुपति पारस का घर भी था और अपने परिवार के साथ यहीं रहते थे.


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अब पशुपति पारस के पास पटना में कोई ठिकाना नहीं बचा. मंत्री की कुर्सी गई, सांसद भी नहीं रहे. चिराग पासवान से अलग उनकी पार्टी सिर्फ कागज पर सिमट कर रह गई और पटना का सरकारी बंगला भी चला गया. 1 व्हीलर रोड के इस बंगले को बचाने के लिए पशुपति पारस ने हर जतन किया. दिल्ली जाकर अमित शाह से गुहार लगाए. पटना हाई कोर्ट में रिट दायर की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. अब पार्टी के प्रवक्ता श्रवण अग्रवाल कह रहे हैं कि उनकी पार्टी और पारस के साथ नीतीश सरकार भेदभाव कर रही है. लिहाजा वे 2025 का विधानसभा चुनाव सभी सीटों पर दूसरे गठबंधन के साथ लड़ेंगे.


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हाल के दिनों में पारस की एनडीए में पूछ घटी है. रालोजपा प्रवक्ता के मुताबिक़ पशुपति कुमार पारस को एनडीए की बैठक में नहीं बुलाना और अब पार्टी कार्यालय को खाली कराना इस बात के साफ संकेत है कि अगले साल होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए में रहते हुए राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी की दुर्गति कहीं लोकसभा चुनाव जैसी न हो जाए, इसलिए अब पार्टी और पारस को एनडीए से लाइन बदल कर आगे का रास्ता अख्तियार करना पड़ेगा. वह इसका फैसला भी इसी महीने के 19 तारीख को लेंगे.