Pollution: पंजाब में खेतों में पराली जलाए जाने की बढ़ती घटनाओं के बीच प्रदेश में पठानकोट एकमात्र ऐसे जिले के रूप में उभरा है, जहां इस मौसम अब तक पराली जलाए जाने की एक भी घटना नहीं दर्ज की गई है. एक अधिकारी ने यह जानकारी दी. कृषि विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि धान की पराली जलाने के खिलाफ जिला प्रशासन द्वारा शुरू किए गए व्यापक जागरूकता अभियान के कारण ही यह संभव हो पाया है.


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अधिकारी के मुताबिक, प्रशासन ने जागरूकता शिविर आयोजित किए, एक यूट्यूब चैनल की शुरुआत की और ग्रामीणों के व्हाट्सएप ग्रुप बनाए, जिसके परिणामस्वरूप जिले में पराली जलाने की घटनाओं को रोकने में किसानों का सहयोग मिला.


दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण का एक कारण पराली जलाना है
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में अक्टूबर-नवंबर में प्रदूषण के स्तर के खतरनाक स्तर पर पहुंचने का एक कारण पंजाब और हरियाणा में खेतों में जलाई जाने वाली पराली है. पठानकोट के मुख्य कृषि अधिकारी अमरीक सिंह ने कहा, ‘‘हमने इस मौसम में यह लक्ष्य रखा था कि जिले में पराली जलाने की एक भी घटना नहीं होगी. और अब तक इस तरह की किसी भी घटना की खबर नहीं आई है.’’


पहले भी बहुत कम जलाई जाती थी पराली
पहले भी में पठानकोट में बहुत कम संख्या में खेतों में पराली जलाए जाने की घटनाएं होती थीं. पठानकोट जिला प्रशासन चाहता था कि 15 सितंबर से शुरू हो रहे इस मौसम में पराली जलाने की एक भी घटना न हो. पाकिस्तान की सीमा से लगने वाले पठानकोट में 2016 में खेतों में पराली जलाने की 28, 2017 में 12, 2018 में नौ, 2019 में चार, 2020 में 11 और 2021 में छह घटनाएं सामने आई थीं.


पठानकोट में 28,500 हेक्टेयर भूमि पर धान उगाया जाता है और हर साल लगभग 1.35 लाख मीट्रिक टन पराली निकलती है.


(इनपुट - भाषा)


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