Amarnath Yatra: मुस्लिम गडरिए ने नहीं की थी अमरनाथ गुफा की खोज, वो सच जो हिंदुओं से छिपाया गया

Amarnath Yatra Ka Sach: मशहूर लेखक मार्क ने कहा था कि जितनी देर में सच अपने जूते के फीते बांधता है, तब तक झूठ आधी दुनिया का चक्कर लगा चुका होता है. यानी झूठ की रफ्तार इतनी तेज़ होती है कि सच हमेशा कहीं ना कहीं पीछे छूट जाता है. इतनी पीछे कि इस सच को फिर दुनिया झूठ मानने लगती है. हमारे देश के इतिहास में ऐसा ना जाने कितनी बार हुआ है. आप खुद सोचिए, क्या जो इतिहास आप दशकों से पढ़ते आ रहे हैं, वो पूरी तरह सही है? क्या उसमें मिलावट नहीं की गई? इस संदर्भ में आपको वो सच्चाई बताते हैं जिससे अभी तक लोगों को दूर रखा गया. ये सच भगवान शिव के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक अमरनाथ गुफा से जुड़ा है. हमारे देश के इतिहासकारों और एक खास वर्ग द्वारा इस बात को कई बार दोहराया गया कि अमरनाथ गुफा की खोज वर्ष 1850 में एक मुस्लिम गडरिए ने की थी, जिसका नाम बूटा मलिक था ये एक झूठी कहानी है. सदियों से अमरनाथ में बाबा बर्फानी की खोज पर आपको जो बताया जा रहा है सब झूठ है. हम ऐसा क्यों कह रहे हैं आइए ऐतिहासिक दस्तावेजों के हवाले से आपको बताते हैं.

ज़ी न्यूज़ डेस्क Wed, 13 Jul 2022-11:37 am,
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अमरनाथ गुफा की खोज कैसे हुई इसके लिए बाकायदा एक पूरी कहानी बताई जाती है. कहा जाता है कि बूटा मलिक नाम का ये व्यक्ति एक दिन अपनी भेड़, बकरियों को चरा रहा था. उसी दौरान इस व्यक्ति की मुलाकात एक साधु से हुई. साधु ने बूटा मलिक को कोयले से भरा एक बैग भेंट में दिया और उसे वहां से चले जाने को कहा. उस शख्स ने जब घर पहुंचकर बैग खोला तो उसने कोयले की जगह सोने के सिक्के थे. ये देख मुस्लिम गडरिया चौंक गया. उसे विश्वास नहीं था कि साधु ने उसे कोयले से भरा बैग दिया जो सोने के सिक्कों में बदल गया. उसके लिए ये चमत्कार था. इसलिए वो इस साधु को उसकी गुफा में धन्यवाद देने पहुंचा. लेकिन कहा जाता है कि इस गुफा में उसे साधु तो नहीं मिला. लेकिन जब इस व्यक्ति ने गुफा के अंदर प्रवेश किया तो वहां बर्फ से बना सफेद शिवलिंग किसी सोने की तरह चमक रहा था. उसने ये बात वापस लौट कर गांव के लोगों को बताई और इस तरह दावा किया जाता है कि सन 1850 में अमरनाथ गुफा की खोज हुई.

 

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ये कहानी इस बात को स्थापित करती है कि हिन्दुओं की आस्था के केन्द्र अमरनाथ गुफा और बाबा बर्फानी की खोज एक मुस्लिम गडरिए ने की थी. और इसलिए हिन्दुओं को इस मुस्लिम गडरिए का अहसान मानना चाहिए. अमरनाथ गुफा से जुड़ा ये वो सच है, जो दशकों से हमें और आपको बताया जाता है. इस घटना को हमारे देश के कई इतिहासकारों ने भी मान्यता दी है. लेकिन क्या अमरनाथ गुफा का यही सच असली सच है?. क्या बूटा मलिक ने ही अमरनाथ गुफा की खोज की थी ऐसा नहीं है इसलिए हम आपको अमरनाथ गुफा के बारे में ये अनसुनी और बेहद कीमती जानकारी देने जा रहे हैं. अमरनाथ गुफा जम्मू कश्मीर के अनंतनाग ज़िले में है. इस गुफ़ा की लंबाई 19 मीटर है और चौड़ाई 16 मीटर है. वहीं मान्यता है कि यहां भगवान शिव ने देवी माता पार्वती को अमरत्व की कहानी सुनाई थी. इसलिए आस्था है कि भगवान शिव साक्षात इस गुफा में विराजमान रहते हैं.

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इस गुफा में स्थित पार्वती पीठ 51 शक्तिपीठों में से एक है जिसकी मान्यता है कि यहां भगवती सती का कंठ भाग गिरा था. पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव ने इस गुफा तक पहुंचने के लिए जो मार्ग यानी रास्ता लिया उसका पहला पड़ाव पहलगाम था. उन्होंने पहले इस स्थान पर अपने वाहन यानी नंदी को छोड़ दिया था. इसलिए इस जगह को पहलगाम कहा गया. ये जगह श्रीनगर से लगभग 90 KM दूर है. पहलगाम के बाद इस गुफा के रास्ते में दूसरा मार्ग आता है चंदनबाड़ी. मान्यता है कि भगवान शिव ने यहां अपने सिर से चंद्रमा का परित्याग किया था. फिर चंद्रमा ने लौटने के लिए भगवान शिव का इंतज़ार किया, इसलिए इस जगह को चंदनबाड़ी कहा गया. चंदनबाड़ी से थोड़ा आगे पिस्सू टॉप है. 

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कहा जाता है कि अमरनाथ के दर्शन के लिए देवताओं और राक्षसों के बीच एक बड़ी लड़ाई हुई थी. उस समय भगवान शिव की सहायता से देवों ने राक्षसों को हरा दिया था और राक्षसों के मृत शरीर से एक पहाड़ का गठन किया गया था. और कहते हैं कि तभी से इस जगह को पिस्सू टॉप के नाम से जाना जाता है. पिस्सू टॉप के बाद अगला स्थान आता है शेषनाग.. भगवान शिव ने अपनी गर्दन से सांप को निकाल कर यहां रखा था. यहां नीले पानी की एक झील भी है, जो साबित करती है कि ये शेषनाग का स्थान है. शेषनाग के बाद महागुन माउंटेन या महागुणस पर्वत और पंचतरणी जैसे स्थान हैं. ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव ने यहां पांच पंचभट्टों का त्याग किया था. यानी पृथ्वी, जल, वायु, आकाश और अग्रि का त्याग किया था. इसलिए इस स्थान को पंचतरणी कहा गया. और इसके बाद आती है अमरनाथ गुफा. जहां बर्फ से शिवलिंग का निर्माण होता है.

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वर्ष 2020 और 2021 में कोविड की वजह से अमरनाथ यात्रा पर रोक रही थी. लेकिन इस स्थान पर हमेशा से लाखों हिन्दू श्रद्धालु आते रहे हैं. साल 2011 और 2012 में 6 लाख से ज्यादा श्रद्धालुओं ने अमरनाथ गुफा के दर्शन किए थे. हालांकि वर्ष 2018 में ये आंकड़ा 3 लाख से कुछ कम रहा. लेकिन इस साल श्रद्धालुओं की संख्या आठ लाख तक रहने का अनुमान है. तो जैसा कि अब तक दिखाया और फैलाया गया कि क्या अमरनाथ गुफा की खोज एक मुस्लिम गडरिए ने की थी तो ये बात सरासर गलत है. 

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लिंग पुराण पांचवीं शताब्दी में लिखा गया था. यानी बूटा मलिक को लेकर जो कहानी बताई जाती है, ये पुराण उससे भी करीब 1400 साल पुराना है. इसके पेज नंबर 487 पर 12वां अध्याय है, जिसमें 151वां श्लोक बहुत महत्वपूर्ण है. इस श्लोक में लिखे अमरेश्वर का अर्थ है, अमरनाथ में विराजमान बाबा बर्फानी. जिन्हें अमरेश्वर के नाम से भी जाना जाता है. यानी अमरनाथ का जिक्र पांचवीं शताब्दी में लिखे गए लिंग पुराण में है. फिर सोचिए बूटा मलिक की ये कहानी कहां से आई?

 

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12वीं शताब्दी मे कश्मीर के प्राचीन इतिहासकार कल्हण द्वारा एक ग्रंथ की रचना की गई थी, जो रजत-रंगिणी के नाम से मशहूर है. इसके पेज नम्बर 280 पर 267वां श्लोक अमरनाथ गुफा के संबंध में है. ये श्लोक भी आप अपनी टीवी स्क्रीन पर देख सकते हैं. इसके अलावा मैं भी इसकी एक प्रति अपने साथ लाया हूं. इस श्लोक में बताया गया है कि.. दूर पर्वत पर दुग्ध सागर तुल्य धवल एक सर का निर्माण कराया. अमरेश्वर यात्रा में जनता उसे आज भी देखती है. सोचिए जिस अमरनाथ गुफा के साल 1850 में खोजे जाने का दावा किया जाता है और बताया जाता है कि 1850 के बाद ही अमरनाथ यात्रा की शुरुआत हुई, उस अमरनाथ यात्रा का जिक्र 12वीं शताब्दी में लिख गए ग्रंथ में भी किया गया है. हालांकि ये साक्ष्य यहीं खत्म नहीं होते.

 

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16वीं शताब्दी में मुगल शासक अकबर के नवरत्नों में से एक अबुल फजल ने आइने-अकबरी की रचना की थी. इसके दूसरे खंड के पेज नम्बर 360 पर लिखा है कि एक गुफा में बर्फ की आकृति है, जिसे अमरनाथ कहा जाता है. यह पवित्र स्थान है और पूर्णिमा के समय यहां बर्फ की बूंदों से एक आकृति बनती है, जिसे लोग महादेव की आकृति मानते हैं और अमावस के बाद ये धीमे धीमे पिघलने लगती है. सोचिए. 16वीं शताब्दी में अकबर के नवरत्नों में से एक अबुल फजल ने भी अपनी रचना में अमरनाथ गुफा का ज़िक्र किया था. इसके अलावा 17वीं शताब्दी में ही फ्रांस के मशहूर डॉक्टर फिजीशियन फ्रंसुआ बर्नियर भी अपनी पुस्तक में अमरनाथ गुफा का ज़िक्र करते हैं. वो मुगलों शासकों के डॉक्टर थे जो 17वीं शताब्दी में भारत में करीब 12 साल तक रहे. इस दौरान उन्होंने मुगल शासक औरंगज़ेब के साथ कश्मीर की यात्रा की और अमरनाथ गुफा का भी अनुभव किया था. इसका ज़िक्र उन्होंने अपनी पुस्तक Travels In The Mogul Empire में किया है. उससे भी ये सबूत मिलता है कि मुस्लिम गडरिए की कहानी पूरी तरह गलत और झूठी है.

 

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ब्रिटेन के मशहूर खोजी यात्री Godfrey Thomas Vigne भी भारत की यात्रा पर आए थे. उन्होंने वर्ष 1835 से 1838 तक कश्मीर की यात्रा की थी. 1842 में लिखी अपनी एक पुस्तक में इस यात्रा से जुड़े अनुभव का ज़िक्र किया था. ये पुस्तक दो भागों में लिखी गई है. इसके पहले भाग यानी पहले खंड के पेज नम्बर 148 पर पहलगाम और अमरनाथ गुफा का जिक्र आता है जबकि इस पुस्तक के दूसरे भाग के पेज नम्बर 7 और 8 पर पहलगाम के रास्ते अमरनाथ गुफा पहुंचने का वर्णन किया गया है. इसमें वो बताते हैं कि सावन महीने के 15वें दिन अमरनाथ की गुफा में पूजा पाठ हो रही है और इस पूजा में भारत के कोने कोने से श्रद्धालु आ रहे हैं.  ये किताब 1842 में लिखी गई थी. यानी बूटा मलिक की तथाकथित खोज से आठ साल पहले. लेकिन इसके बावजूद हमारे देश के इतिहासकारों ने इस झूठ को इतना फैलाया कि अमरनाथ गुफा की खोज एक मुस्लिम गडरिए ने की और इससे पहले इसके बारे में कोई नहीं जानता था. यहां ये बात जानकर आपको और आश्चर्य होगा कि बूटा मलिक के वंशजों ने कई दशकों तक अमरनाथ गुफा की रखवाली की और यहां श्रद्धालु जो चढ़ावा चढ़ाते थे, उसका एक तिहाई हिस्सा बूटा मलिक के वंशजों को मिलता था. ये सिलसिला वर्ष 2000 तक चला. लेकिन इसके बाद तत्कालीन वाजपेयी सरकार ने Amarnath Shrine Board का गठन किया और बूटा मलिक के वंशजों को दान का जो हिस्सा मिलता था, उसे बन्द कराया गया. सोचिए बूटा मलिक के वंशज दशकों तक इस दावे के आधार पर दान में से पैसे लेते रहे कि बूटा मलिक ने अमरनाथ गुफा की खोज की थी. जबकि सच ये है कि अमरनाथ गुफा का ज़िक्र हमारे पुराणों में ही किया गया है.

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आज जो बात हम आपसे कहना चाहते हैं, वो ये कि इतिहास वही लोग लिखते हैं, जो शक्तिशाली होते हैं. और इतिहास Rulers यानी शासकों द्वारा लिखा जाता है, जो अपनी ताकत से एक बड़ी आबादी पर राज करते हैं. वर्ष 1526 से 1857 के बीच जब भारत पर मुगलों का राज था, उस समय ये इतिहास मुगलों के दरबारी इतिहासकारों द्वारा लिखा गया. और इसमें मुगल शासकों को भारत के नायक के तौर पर पेश किया गया. अकबर को Akbar The Great कहा गया और मुगलों ने हिन्दुओं पर जो अत्याचार किए और जो सैकड़ों मन्दिर तोड़ कर मस्जिदें बनाई गईं, उनकी वास्तविकता को भी मुगलों ने अपने हिसाब से इतिहास में लिखवाई. सरल शब्दों में कहें तो अमरनाथ गुफा के सच के साथ हमारे देश में ऐसी सोशल इंजीनियरिंग हुई, जिसके तहत ये बताया गया कि हिन्दू श्रद्धालुओं को उस मुस्लिम गडरिए का अहसान मानना चाहिए, जिसने अमरनाथ गुफा की खोज की थी. जबकि सच ये है कि अमरनाथ गुफा की वास्तविकता, इसका इतिहास, इसका वैभव और इसकी पहचान सदियों पुरानी है.

 

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