DNA: Mount Everest पर अंग्रेजों का `विश्वासघात`, जानिए कैसे बदलेगा पर्वत चोटी का नाम?

राधानाथ सिकदर ने पहली बार माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई को रिकॉर्ड किया था.

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कैसे बदलेगा माउंट एवरेस्ट का नाम

माउंट एवरेस्ट नेपाल और तिब्बत की सीमा पर स्थित है. इस समय तिब्बत पर चीन का कब्जा है और नाम बदलने के लिए इन देशों की सहमति जरूरी होगी.

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कैसे बदलेगा माउंट एवरेस्ट का नाम

माउंट एवरेस्ट का नाम बदलने के लिए UNESCO की सहमति भी जरूरी है.

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कैसे बदलेगा माउंट एवरेस्ट का नाम

माउंट एवरेस्ट नेपाल के सागरमाथा नेशनल पार्क में मौजूद है और ये एक UNESCO World Heritage Site है. 

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कैसे बदलेगा माउंट एवरेस्ट का नाम

हालांकि ऐसा करने के लिए सबसे पहले भारत सरकार को कूटनीतिक शुरुआत करनी होगी और ये प्रयास भी अपने आप में माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई जितना ही मुश्किल है.

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कैसे बदलेगा माउंट एवरेस्ट का नाम

माउंट एवरेस्ट को वैसे तो दुनिया का सबसे ऊंचा पर्वत कहा जाता है. पर्वतों की ऊंचाई का आकलन समुद्र की सतह से उसकी ऊंचाई के आधार पर किया जाता है. लेकिन अगर किसी पर्वत के आधार से उसके शिखर तक की ऊंचाई मापी जाए तो Mount Everest सबसे ऊंचा पर्वत नहीं है. 

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कैसे बदलेगा माउंट एवरेस्ट का नाम

Base यानी आधार से चोटी तक की ऊंचाई के नजरिए से अमेरिका के हवाई का 'माउना किया' दुनिया का सबसे ऊंचा पर्वत है.  माउना किया की ऊंचाई 10 हज़ार 210 मीटर है.

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कैसे बदलेगा माउंट एवरेस्ट का नाम

आपको जानकर हैरानी होगी कि हिमालय दुनिया की सबसे युवा पर्वत श्रृंखला है जिसकी ऊंचाई अब भी लगातार बढ़ रही है. वैज्ञानिकों के मुताबिक माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई हर साल 4 मिलीमीटर बढ़ जाती है. यानी 100 वर्षों में इसकी ऊंचाई 16 इंच तक बढ़ जाती है. नेपाल और तिब्बत की सीमा पर मौजूद माउंट एवरेस्ट का नाम तिब्बती भाषा में चोमो-लुंगमा है. नेपाल के लोग इसे सागर-माथा के नाम से जानते हैं. लेकिन पूरी दुनिया में ये माउंट एवरेस्ट  के नाम से प्रसिद्ध है. हालांकि जॉर्ज एवरेस्ट ने खुद कभी हकीकत में माउंट एवरेस्ट को देखा तक नहीं था.

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राधानाथ सिकदर की सफलता

वर्ष 1966 में Indian Journal of History of Science में भी राधानाथ सिकदर की इस सफलता के बारे में जानकारी दी गई थी. ये एक साइंस जर्नल है और पहली बार वर्ष 1966 में इसका प्रकाशन हुआ था. इस जर्नल के मुताबिक राधानाथ सिकदर वर्ष 1849 में Survey of India के चीफ कम्प्यूटर बन चुके थे और इस काम में दूसरे लोगों की भी थोड़ी-बहुत भूमिका थी. लेकिन इसके केंद्र में राधानाथ सिकदर ही थे.

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माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई का आधिकारिक आकलन

माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई का आधिकारिक आकलन पहली बार ब्रिटिश राज में सर्वे ऑफ ​इंडिया द्वारा किया गया था. इस एजेंसी की स्थापना भारत का आधिकारिक मानचित्र बनाने के लिए की गई थी.

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नामकरण सर जॉर्ज एवरेस्ट के नाम पर

वर्ष 1865 में रॉयल ज्योग्राफिकल सोसायटी (Royal Geographical Society) ने दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी का नाम Mount Everest रखा था. ये नामकरण सर जॉर्ज एवरेस्ट (Sir George Everest) के नाम पर हुआ था. जॉर्ज एवरेस्ट वर्ष 1830 से 1843 तक भारत में नक्शे और मानचित्र बनाने वाली संस्था सर्वे ऑफ ​इंडिया के प्रमुख थे 

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ब्रिटिश साम्राज्य ने नाम छिपा दिया

पश्चिम बंगाल के एक गणितज्ञ राधानाथ सिकदर ने ही पहली बार माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई को रिकॉर्ड किया था. लेकिन ब्रिटिश साम्राज्य ने उनका नाम छिपा दिया और इस महान खोज का श्रेय Sir Andrew Scott Waugh को दे दिया.

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Peak 15 की ऊंचाई 8 हज़ार 839 मीटर रिकॉर्ड की थी

वर्ष 1852 में राधानाथ सिकदर ने 'Peak 15' नामक पर्वत शिखर को मापने का काम शुरू किया. उस समय माउंट एवरेस्ट को इसी नाम से जाना जाता था. तब विदेशियों को नेपाल की सीमा में दाखिल होने की इजाजत नहीं थी. एक विशेष उपकरण की मदद से राधानाथ सिकदर ने 'Peak 15' की ऊंचाई 8 हज़ार 839 मीटर रिकॉर्ड की थी.

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दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी

वर्ष 1830 के दशक में सर्वे ऑफ ​इंडिया की टीम हिमालय पर्वत श्रृंखला के करीब पहुंच गई थी. उस समय कंचनजंगा पर्वत के शिखर को ही दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी माना जाता था.

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Mount Everest का Death Zone

8 हजार मीटर की ऊंचाई पर Mount Everest का Death Zone शुरू होता है क्योंकि खराब मौसम और ऑक्सीजन की कमी की वजह से सबसे ज्यादा मौतें यहीं होती हैं.

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कैसे बदलेगा माउंट एवरेस्ट का नाम

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चढ़ाई से पहले 10 हफ्तों की कठिन ट्रेनिंग

तकनीक के विकास की वजह से एवरेस्ट पर चढ़ाई के दौरान होने वाली मौतों में हर साल 2 प्रतिशत की कमी आ रही है. आधिकारिक तौर पर माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई से पहले 10 हफ्तों की कठिन ट्रेनिंग लेनी होती है. इसके बाद ही एवरेस्ट पर जाने की इजाजत मिलती है.

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चढ़ाई करने वालों को Two oClock Rule का पालन करना होता है

एवरेस्ट Everest की चढ़ाई करने वालों को "Two o’Clock Rule" का पालन करना होता है. यानी चढ़ाई करने वालों को दोपहर 2 बजे तक माउंट एवरेस्ट पर पहुंचना होता है क्योंकि इसके बाद मौसम बदलना शुरू हो जाता है.

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