बंगाल विभाजन ने कैसे बदल दी थी राष्ट्रीय आंदोलन की पूरी सूरत

आज बंग भंग (Partition of Bengal) की 95वीं सालगिरह है. 1905 का वो भारत जिसे गांधी से पहले का भारत कहा जाता है. ना बंग भंग होता और ना गांधीजी के आंदोलनों के लिए इतनी बड़ी जमीन बनती, ना बंग भंग होता ना ही मुस्लिम लीग बनती.

Oct 16, 2020, 14:25 PM IST
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ऐसे पड़ी ‘डिवाइड एंड रूल पॉलिसी

अंग्रेजी वायसराय लॉर्ड कर्जन के होम सेक्रेट्री हर्बर्ट ने 7 फरवरी और 6 दिसम्बर को जो 2 खत लिखे थे, उनका सीधा मतलब ये था, ‘संयुक्त बंगाल एक बड़ी ताकत है, बंटा हुआ बंगाल अलग-अलग दिशाओं में जाएगा.’ लॉर्ड कर्जन ने तर्क दिया कि बंगाल इतना बड़ा प्रांत है कि इसका प्रबंधन करना खासा मुश्किल है. दरअसल उस वक्त अंग्रेजों की बंगाल प्रेसीडेंसी में आज का पश्चिम बंगाल, आज का बांग्लादेश यानी उस वक्त का बांग्लादेश, बिहार (आज का झारखंड भी), उड़ीसा, छत्तीसगढ़ के कुछ जिले और आसाम भी शामिल था, जो 1874 में अलग भी हुआ था.

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स्वामी विवेकानंद ने बदल ली युवाओं की ‘हीन सोच

पहले आपको ये जानना चाहिए कि देश में अंग्रेजी सरकार कोलकाता के फोर्ट विलियम से चलती थी. ऐसे में अंग्रेजों ने अपने आसपास के इलाकों पर जल्दी कब्जा किया था और बंगाल प्रेसीडेंसी को ही बड़ा करते गए. ऐसे में राष्ट्रीय चेतना भी सबसे पहले और सबसे ज्यादा बंगाल में ही देखने में आई, स्वामी विवेकानंद के भाषणों ने युवाओं को सोचने को मजबूर कर दिया.

अब तक ईसाई मिशनरियां और तमाम यूरोपीय विचारक भारतीयों के मन में ये विचार भर चुके थे कि भारत एक पिछड़ी मानसिकता का देश रहा है, यहां अंधविश्वास, सती प्रथा, दहेज प्रथा, बाल विवाह जैसी कुरीतियां रही हैं. उनको ब्रेनवाश करने में सबसे बड़ा रोल रहा उन यूनीवर्सिटीज का जो अंग्रेजों ने वहां खोलीं, भारतीय होने में ही उन्हें हीनता का अहसास होने लगा था. ऐसे में रहा सहा काम उन भारतीय इतिहासकारों ने करना शुरू कर दिया, जो आर्यों को बाहर का बताने लगे ताकि अंग्रेजों, मुगलों जैसे बाहरी आक्रांताओं का औचित्य सिद्ध कर सकें.

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कांग्रेस की स्थापना

उनको लगातार ‘ह्वाइट मैन वर्डन’ थ्यौरी पढ़ाई जा रही थी, कि हम तो यहां सुधार के लिए आए हैं. तभी आप देखिए कांग्रेस की स्थापना भी अंग्रेजों ने ही की, उनके कई राष्ट्रीय अध्यक्ष अंग्रेज रहे, तिलक ने जरूर स्वराज की मांग ली, लेकिन आधिकारिक तौर पर पूरी स्वतंत्रता की मांग कांग्रेस 45 साल बाद यानी 1930 में कर पाई. ऐसे हीन भावना से ग्रसित युवाओं, नेताओं के लिए संजीवनी बनकर आए स्वामी विवेकानंद और बंकिम चंद्र चटर्जी का गीत ‘वंदेमातरम’. अंग्रेज परेशान होने लगे थे, ना केवल आंदोलन वहां ज्यादा होने लगे थे, बल्कि क्रांतिकारी गतिविधियां भी वहां ज्यादा होने लगी थीं, तो योजना लाई गई डिवाइड एंड रूल की यानी बंग भंग की.

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‘हम फिर से मुगलों और पठानों के अत्याचारी युग में पहुंच गए हैं

लोग इस बात से भी गुस्सा थे कि उनसे सलाह ही नहीं जा रही थी. 4 जुलाई को ये प्रस्ताव लंदन के हाउस ऑफ कॉमन्स में लाया गया और 6 जुलाई को बंगाल की मीडिया में ये खबर आई, जिसे देख लोग तो हैरान ही रह गए. वे कुछ सोच पाते कि अगले दिन लॉर्ड कर्जन ने बंगाल विभाजन का ऐलान कर दिया और वो भी कोलकाता से नहीं बल्कि शिमला से. वो उन दिनों वहां छुट्टियां फरमा रहा था.

अगले दिन बंगाल के कई नेताओं ने विधान परिषद में ये मुद्दा उठाया, सुरेन्द्र नाथ बनर्जी के अखबार ‘बंगाली’ में इस घोषणा का खुलकर विरोध किया गया. अम्बिका चरण मजमूदार जो बाद में कांग्रेस अध्यक्ष बने, ने खुलकर विधान परिषद में लेफ्टिनेंट गर्वनर से कहा कि, ‘हम फिर से मुगलों और पठानों के अत्याचारी युग में पहुंच गए हैं.’

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बंटवारे की साजिश क्या थी?

इधर, लॉर्ड कर्जन बेपरवाह था, उसने मुस्लिम बाहुल्य ईस्ट बंगाल को असम के साथ मिलाकर अलग प्रांत बना दिया था, जिसका मुख्यालय ढाका को रखा गया था, राजशाही और चटगांव जैसे जिले भी शामिल थे, जिनकी कुल जनसंख्या थी 3.1 करोड़. उस वक्त आसामी के अंग्रेजी चीफ कमिश्नर ने इसका खुलकर विरोध भी किया था. इस हिस्से में मुस्लिम ज्यादा थे. तो दूसरी तरफ बिहार, उड़ीसा को बंगाल के बाकी हिस्से को मिलाकर पश्चिम बंगाल नाम दे दिया गया और जनसंख्या थी 4 करोड़. कुल मिलाकर दोनों प्रदेशों में दो अलग अलग धर्मों को बहुसंख्यक रखना था और बंगाली बोलने वालों को दोनों जगह अल्पसंख्यक बनाने का इरादा था.

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ऐसे निकला स्वदेसी का मंत्र

आप सोच सकते हैं कि क्या आलम रहा होगा, ऐसे में तय किया गया कि इसका खुलकर विरोध किया जाएगा. उससे पहले ही 13 जुलाई को कृष्ण कुमार मित्र की पत्रिका ‘संजीवनी’ का एक लेख स्वदेसी आंदोलन की नींव बन गया. इस लेख में कहा गया कि इंगलैंड बनियों, व्यापारियों का देश है, ब्रिटेन में बने कपड़े, साबुन, जूते, तम्बाकू आदि मंहगे दामों पर अंग्रेज यहां खपाना चाहते हैं, और यहां से कपास, नमक, नील जैसा कच्चा माल खपाना चाहते हैं. उनकी अर्थव्यवस्था टूट जाएगी अगर हम विदेशी माल का बहिष्कार करके, चाहे जैसे हों भारत में बने विदेशी सामान, कपड़ों आदि का इस्तेमाल करें’. यहीं से निकल स्वदेसी का मंत्र और पहले बंगाल और फिर धीरे धीरे पूरे देश में फैल गया.

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विदेशी वस्त्रों की पहली होली सावरकर ने जलाई

भारत में पहली बार विदेशी वस्त्रों की होली जलाने का काम किया 1905-06 के इसी आंदोलन में विनायक सावरकर उर्फ वीर सावरकर ने, जिसे बाद में गांधीजी ने भी अपना हथियार बना लिया था. इधर सारे बंगाली राष्ट्रवादी अंग्रेजों की साजिश समझ चुके थे, 16 अगस्त 1905 को टाउनहॉल की मीटिंग हुई, खुलकर विदेशी सामान के बहिष्कार का ऐलान कर दिया गया, उन दिनों 70 से 75 हजार लोगों की सभा जुटा लेना नामुमकिन सा काम था. कर्जन ने बंगाल विभाजन 16 अक्टूबर 1905 से लागू करने का ऐलान कर दिया था. लोगों में आक्रोश और भी बढ़ गया.

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मुस्लिम लीग की नींव भी पूर्वी बंगाल में ही पड़ी

ऐसे में कर्जन ने मुस्लिमों को अलग प्रांत का लालच देकर मुस्लिमों को पहले ही अपने पाले में कर लिया था, उन्हीं मुस्लिमों ने उसी पूर्वी बंगाल के ढाका से 1906 में मुस्लिमों की अपनी पार्टी मुस्लिम लीग का ऐलान कर दिया. हालांकि कुछ राष्ट्रवादी मुस्लिम बंग भंग आंदोलन से भी जुड़े थे, दिल्ली में सैयद हैदर रजा ने ही इस आंदोलन की कमान संभाली थी. लाल, बाल और पाल की तिगड़ी ने इस आंदोलन को देश भरे में फैला दिया, तिलक ने मुंबई, पुणे और महाराष्ट्र के कई इलाकों में अगुवाई की, अजीत सिंह और लाला लाजपत राय ने यूपी और पंजाब में मोर्चा संभाला, और चिदम्बरम पिल्लै ने मद्रास प्रेसीडेंसी में अगुवाई की.

गोखले ने भी 1905 के बनारस कांग्रेस अधिवेशन में स्वदेसी और बहिष्कार आंदोलन को समर्थन देने का ऐलान किया. अश्विनी दत्त की स्वदेसी बांधव समिति ने इस आंदोलन के लिए काफी काम किया, विपिन चंद्र पाल और अरविंदो घोष ने भी देश भर में इस आंदोलन को फैलाने में अहम भूमिका निभाई. अंग्रेजों ने ‘वंदेमातरम’ उदघोष को देशद्रोही घोषित कर दिया. गीत संगीत, स्वदेशी शिक्षा परिषदों की स्थापना, स्वदेसी उद्योगों की स्थापना जैसे तमाम ऐसे काम होने लगे, जिससे अंग्रेज सरकार परेशान हो गई लेकिन राष्ट्रीय  चेतना बढ़ती चली गई.

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कांग्रेस में पड़ गई पहली बड़ी फूट, तिलक गुट बाहर

1907 के सूरत अधिवेशन में कांग्रेस में इस बात पर फूट पड़ गई कि इस आंदोलन को आगे कैसे बढ़ाया जाए, ‘लाल बाल पाल’ का गरम दल अलग हो गया. हालांकि अगले साल ही तिलक को गिरफ्तार करके वर्मा की मांडले जेल भेज दिया गया. फिर 1916 में लखनऊ अधिवेशन में ही जाकर मिले वो. जहां कांग्रेस पर गांधीजी का प्रभाव पड़ना शुरू हो गया था, मुस्लिम लीग इतनी बड़ी ताकत 1916 में बन गई थी कि कांग्रेस और उसने ये 1916 का अधिवेशन संयुक्त करना पड़ा था, 1915 में हिंदू महासभा का गठन भी हो चुका था.

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नई राजधानी दिल्ली का ऐलान

ऐसे में लार्ड हार्डिंग नया वायसराय बनकर आया तो 2 योजनाएं लेकर आया, पहला बंगाल विभाजन को निरस्त करने का, लेकिन उसमें भी एक चालाकी थी, दूसरे राजधानी कोलकाता से हटाकर दिल्ली ले जाने का. इसलिए बाद में नई दिल्ली का इलाका विकसित करने का काम भी शुरू कर दिया गया. 1911 में किंग जॉर्ज का दिल्ली में दरबार लगा तो किंग ने ऐलान किया कि दोनों बंगाल फिर से मिला दिए जाएंगे, लेकिन बिहार, उड़ीसा और आसाम को बंगाल प्रेसीडेंसी से अलग कर दिया गया. लेकिन नींव तो विभाजन की रख ही दी गई थी, बाद में जिन्ना ने उसी पूर्वी बंगाल के हिस्से को पाकिस्तान में मांग लिया, और 1971 के युद्ध से वही हिस्सा पाक से अलग होकर बांग्लादेश बन गया.

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