Uttarakhand की वो रहस्यमी Roopkund Lake, जिसमें दबे हुए हैं सैकड़ों Human Skeletons

देश में एक से बढ़कर कई ऐसी जगहें हैं, जो अपने अंदर अनेक रहस्य समेटे हुए हैं. आज हम आपको उत्तराखंड (Uttarakhand) की ऐसी रहस्यमयी झील (Mysterious Lake) के बारे में बताएंगे, जिसके बर्फीले पानी में सैकड़ों मानव कंकाल समाए हुए हैं.

1/9

वर्ष 1942 में कंकालों का पता चला

वर्ष 1942 में एच. के. माधवल वहां पर वन रक्षक थे. तब उन्होंने रूपकुंड झील (Roopkund) में इन कंकालों को देखा. वर्ष 1960 के दशक में एकत्र नमूनों से लिए गये कार्बन डेटिंग की गई. उससे पता चला कि वे कंकाल करीब 1200 साल पुराने हैं. विशेषज्ञों ने अनुमान जताया कि उन लोगों की मौत किसी महामारी, भूस्खलन या बर्फानी तूफान की वजह से हुई होगी. 

2/9

भारत-यूरोपीय वैज्ञानिकों ने किया दौरा

भारतीय और यूरोपीय वैज्ञानिकों के एक दल ने वर्ष 2004 में उस स्थान का दौरा किया. उस दल ने कंकालों के बारे में अधिक जानकारी हासिल करने के लिए कंकालों के गहने, खोपड़ी, हड्डी और शरीर के संरक्षित ऊतक हासिल करके रिसर्च शुरू किया. 

 

3/9

अलग-अलग लोगों के समूह के थे कंकाल

लाशों के डीएनए परीक्षण से पता चला कि झील (Roopkund) में मिले लोगों के अलग-अलग समूहों के थे. इनमें एक समूह छोटे कद वाले लोगों का भी था. माना जाता है कि वे लोग शायद स्थानीय निवासी थे और कुली के रूप में समूह के साथ थे. वैज्ञानिक दल को वहीं पर लंबे लोगों के कंकालों का भी समूह मिला. माना जाता है कि ये लोग महाराष्ट्र में कोकणी ब्राह्मण थे. 

4/9

करीब 1200 साल पुराने हैं कंकाल

रूपकुंड झील (Roopkund) में ऐसे करीब 500 से ज्यादा कंकाल मिले हैं. हालांकि माना जाता है कि मरने वालों की संख्या 600 से ज्यादा रही होगी. ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने इन लोगों की मौत की सही अवधि जानने के लिए उनकी रेडियोकार्बन डेटिंग की. उससे पता चला कि वे कंकाल 850 ई. से 880 ई. के हैं यानी करीब 1200 साल पुराने हैं. 

5/9

बर्फीले तूफान से मरे थे इतने लोग

भारत-यूरोपीय वैज्ञानिकों का दल इन कंकालों पर लगातार हैदराबाद, पुणे और लंदन में रिसर्च करता रहा. सवाल था कि इतने बड़े समूह की अचानक मौत कैसे हो गई और उनके शव झील (Skeleton Lake) में कैसे पहुंच गए. जांच में पता चला कि लोगों का इतना बड़ा समूह किसी बीमारी की वजह से नहीं मरा बल्कि वे हिमालयी इलाके में आए बर्फीले तूफान से मरा थे.

6/9

अधिकतर कंकालों की खोपड़ी फ्रैक्चर

वैज्ञानिकों ने बताया कि सभी कंकालों की खोपड़ी फ्रैक्चर थी. इसका मतलब था कि हिमालयी यात्रा के दौरान अचानक तेज आंधी-बारिश शुरू हो गई. आसमान से क्रिकेट की गेंद जितने भारी ओले गिरने और छिपने का कोई ठिकाना न मिलने की वजह से धीरे-धीरे लोग घायल होकर गिरने लगे और बाद में ठंड की वजह से उनकी मौत हो गई. 

7/9

भूस्खलन से लाशें बहकर झील में आईं

वैज्ञानिकों का अनुमान है कि उस क्षेत्र में भूस्खलन की वजह से अधिकतर लाशें बहकर रूप कुंड झील में पहुंच गई. हालांकि कम घनत्व वाली हवा और बर्फीले वातावरण के कारण कई लाशें अब भी इस इलाके में भली भांति अवस्था में दबी हुई हैं. 

8/9

राजजात यात्रा में जाते हुए लोगों की मौत?

वैज्ञानिक आज तक इस सवाल का जवाब नहीं ढूंढ पाए हैं कि 9वीं सदी में लोगों का इतना बड़ा समूह आखिरकार जा कहां रहा था. दरअसल इस रूट पर तिब्बत के लिए कोई व्यापार मार्ग भी नहीं है. कुछ लोग अनुमान जताते हैं कि इस इलाके में हर 12 साल बाद नंदा देवी राज जात उत्सव मनाया जाता है. जिसमें भाग लेने के लिए देश-दुनिया से लोग पहुंचते हैं. अनुमान है कि इसी यात्रा में जाते समय पूरे समूह की मौत हो गई होगी.

9/9

साल भर बर्फ से ढकी रहती है झील

रूपकुंड झील, हिमालय की दो चोटियों त्रिशूल और नंदघुंगटी के तल के पास स्थित है. यह झील (कंकाल झील) वर्ष के ज्यादातर समय बर्फ से ढकी हुई रहती है. आम तौर पर ट्रैकर और रोमांच प्रेमी सड़क मार्ग से लोहाजंग या वाण से रूपकुंड की यात्रा करते हैं. हालांकि डर की वजह से कोई भी इस झील में स्नान या पानी को हाथ में लेने की हिम्मत नहीं कर पाता.

ZEENEWS TRENDING STORIES

By continuing to use the site, you agree to the use of cookies. You can find out more by Tapping this link