Lal Krishna Advani के जन्मदिन पर जानिए उनसे जुड़ी 10 अनसुनी दिलचस्प बातें

L.K. Advani के जन्मदिन के मौके पर जानिए उनसे जुड़ी 10 अनसुनी दिलचस्प बातें-

ज़ी न्यूज़ डेस्क Sun, 08 Nov 2020-2:37 pm,
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1960 में ज्वॉइन किया ऑर्गनाइजर अखबार

आडवाणी जी ने 1960 में ऑर्गनाइजर अखबार ज्वॉइन किया था. वो संघ से जुड़ने के बाद धोती कुर्ता पहनने लगे थे. असिस्टेंट एडिटर होकर धोती कुर्ता पहनना उनको अखर रहा था. सो साथी पत्रकारों ने इस पर ऐतराज जताया. नतीजा ये हुआ कि आडवाणी जी ने फिर से ट्राउजर पहनना शुरू कर दिया था. हालांकि बाद में पत्रकार की नौकरी ज्वॉइन करने के बाद वो अपनी पुरानी वेशभूषा पर फिर से आ गए. लेकिन उन्होंने बाद में दोनों तरह के कपड़े पहनना शुरू कर दिया था और आज भी पहनते हैं. अक्सर आपने देखा होगा कि आमिर खान, मधुर भंडारकर आदि आडवाणी जी के लिए अपने फिल्मों के स्पेशल शोज रखते हैं. फिल्मों से आडवाणी जी का पुराना प्रेम है, अक्सर आडवाणी जी और अटलजी फुरसत मिलते ही साथ में फिल्म देखने निकल जाया करते थे. आडवाणी जी तो बाकायदा फिल्म समीक्षा लिखते थे. बतौर फिल्म क्रिटिक उनका एक कॉलम भी छपता था, जिसका नाम था ‘नेत्र’.

 

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बतौर संवाददाता कई बार शास्त्री जी से मिलने का मिला मौका

एक बार ऑर्गनाइजर के 70 साल पूरे होने पर आडवाणी जी ने ये लिखकर सनसनी फैला दी थी कि नेहरू जी के बाद प्रधानमंत्री बने लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय मुद्दों पर सलाह लेने के लिए संघ प्रमुख गुरु गोलवलकर को भी मंत्रणा के लिए बुलाया करते थे. आडवाणी जी ने लिखा था कि, ‘नेहरू जी की तरह शास्त्रीजी भी पक्के कांग्रेसी थे. लेकिन कभी भी संघ या जनसंघ को लेकर उनके मन में दुश्मनी या नफरत का भाव नहीं था’. आडवाणी जी ने इस लेख में ये भी बताया कि बतौर ऑर्गनाइजर संवाददाता उनको कई बार शास्त्री जी से मिलने का मौका मिला था और हर बार वो उनके बारे में ‘पॉजीटिव इम्प्रेशन’ लेकर ही जाते थे.

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सबसे बड़ी कमजोरी किताबें और चॉकलेट

मुंबई से एक अखबार ‘आफ्टर नून कैरियर एंड डिस्पैच’ नाम का एक अखबार निकलता था. जिसमें ‘ट्वेंटी क्वश्चेन’ नाम से एक कॉलम आता था, जिसमें नेताओं के इंटरव्यू होते थे. आडवाणी जी से उसमें एक सवाल पूछा गया था कि आपकी सबसे बड़ी कमजोरी क्या है? आडवाणी जी का जवाब था- पुस्तकें और सामान्य तौर पर चॉकलेट. उनकी बेटी प्रतिभा आडवाणी ने भी एक इंटरव्यू में खुलासा किया था कि आडवाणी जी जब भी प्लेन में सफर करते हैं, तो वहां से टॉफियां ज्यादा से ज्यादा ले आते हैं और घर में सबको बांट देते हैं. प्रतिभा भी फिल्मों की काफी शौकीन हैं. फिल्मों से जुड़ी कई डॉक्यूमेंट्रीज उन्होंने बनाई हैं, जिनके प्रीमियर पर खुद आडवाणी, जिन्हें वो प्यार से ‘दद्दू’ कहते हैं, बड़ी हस्तियों को निमंत्रित करते आए हैं. प्रतिभा को किसी भी मूवी का पहला दिन पहला शो काफी पसंद है.

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2 साल छोड़कर लगातार संसद सदस्य रहे

1970 से 2019 तक आडवाणी जी 2 साल छोड़कर लगातार संसद सदस्य रहे. दरअसल हवाला मामले में उनका नाम सामने आने पर उन्होंने लोक सभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया और कहा कि जब तक उनके नाम से भ्रष्टाचार का ये दाग नहीं मिट जाता, मैं चुनाव नहीं लडूंगा. 1997 में उनको मो. शमीम की अदालत ने बरी कर दिया और इधर 1998 में फिर से चुनाव हो गए, तब वो जीतकर वापस आए. इन दो सालों के दौरान उन्होंने फादर रॉड्रिक्स की भेंट की हुई किताब ’टफ टाइम्स डू नॉट लास्ट, टफ मेन डू’ पढ़ी थी. जब जनता पार्टी सरकार बनी तो पीएम मोरारजी देसाई ने उनसे पूछा कि राष्ट्रपति के लिए कौन उम्मीदवार होना चाहिए तो उनकी पसंद थी जस्टिस हेगड़े. दरअसल जस्टिस हेगड़े और उनके नीचे के क्रम से दो और न्यायधीशों को दरकिनार करते हुए कभी इंदिरा गांधी ने चौथे नंबर के न्यायाधीश जस्टिस एएन रे को सुप्रीम कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश चुन लिया था, ऊपर के तीनों जजों ने इस्तीफा दे दिया था. आडवाणी उनको सम्मान देना चाहते थे. हालांकि नीलम संजीव रेड्डी को राष्ट्रपति पद के आधिकारिक कांग्रेस उम्मीदवार होने के बावजूद इंदिरा गांधी ने हरवा दिया था, तो उन्हें प्राथमिकता मिली, लेकिन आडवाणी जी की बात रखते हुए जस्टिस हेगड़े को भी लोकसभा अध्यक्ष बना दिया गया था.

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योग के प्रशंसक

आप अगर कभी दिल्ली के इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट के टर्मिनल 3 पर गए हों तो एक ऐसी शिल्पकृति लगी देखी होगी, जिसमें सूर्य नमस्कार की क्रियाएं प्रदर्शित की गई हैं. उसको देखकर सबसे ज्यादा खुश हुए थे एल के आडवाणी और एक ब्लॉग में जीएमआर के केजी सुब्बाराव और इस शिल्पकृति को बनाने वाले कलाकार जयपुर के आयुष कासलीवाल की जमकर सराहना की थी. वो मोदी जी से कहीं पहले योग के प्रशंसक थे.

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मुखर्जी की मौत की खबर

14 साल की उम्र में लाल कृष्ण आडवाणी ने सबसे पहले राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ का नाम सिंध के हैदराबाद में एक टेनिस कोर्ट में सुना था. उसके बाद उन्होंने संघ की शाखा ज्वॉइन कर ली. उन्होंने कराची में कई शाखाएं अपने दम पर खड़ी कीं, फिर वो पूर्णकालिक प्रचारक बन गए. तो उनको सबसे पहले राजस्थान के अलवर क्षेत्र में भेज दिया गया. वो क्षेत्र विभाजन के दंगों से काफी पीड़ित रहा था. 1952 तक वो अलवर, कोटा, बूंदी, भरतपुर और झालावाड़ के इलाकों में काम करते रहे. श्यामा प्रसाद मुखर्जी जब कश्मीर के लिए अपनी आखिरी यात्रा पर थे, तो अटलजी उनके साथ गए थे. लेकिन अटलजी और मुखर्जी से आडवाणी जी की मुलाकात उसी यात्री के दौरान कोटा रेलवे स्टेशन पर हुई थी. इस घटना का जिक्र आडवाणी अपनी किताब में कर चुके हैं. जिस दिन मुखर्जी की मौत की खबर आई, उस दिन लाल कृष्ण आडवाणी राजस्थान के उदयपुर में ही थे. एक स्थानीय पत्रकार उनके पास रोता हुआ आया और कहने लगा था कि ‘मुखर्जी नहीं रहे आडवाणी जी’.

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आडवाणी और मोदी के रिश्ते हमेशा चर्चा का विषय बनते रहेंगे

1984 में बीजेपी इतनी बुरी तरह हारी कि केवल 2 सीटें आईं, एक गुजरात से और दूसरी आंध्र प्रदेश से. हार की समीक्षा के लिए डॉ. कृष्णलाल शर्मा की अगुवाई में एक कमेटी बनाई गई. कमेटी ने कह दिया कि बीजेपी अपनी वजह से नहीं हारी, इंदिरा गांधी की हत्या से उठी सुहानुभूति की लहर की वजह से हारे. सबको लगता था कि अध्यक्ष आडवाणी इसको मानकर बात रफा दफा कर देंगे. लेकिन कोर कमेटी की मीटिंग में आडवाणी ने साफ कर दिया कि हम केवल इसी बहाने अपने मन को नहीं बहला सकते. हमें आत्मनिरीक्षण करना होगा, अपनी गलतियां सुधारनी ही होंगी. आडवाणी जी और मोदी जी के रिश्ते हमेशा चर्चा का विषय बनते रहेंगे. गुजरात दंगों के बाद जब राष्ट्रपति एपीजे कलाम ने गुजरात दौरे की योजना बनाई थी, तो उनके एक इंटरव्यू का हवाला देकर मीडिया ने खबरें चलाईं कि अटलजी ने उन्हें रोकने की कोशिश की थी. इससे आडवाणी जी मीडिया से काफी नाराज हो गए थे. तब मोदीजी की तरफदारी करते हुए उन्होंने लिखा था कि डॉ. कलाम ने वहां क्या देखा, मोदीजी ने उनके साथ कैसा व्यवहार किया, खुद डॉ. कलाम ने वहां जाकर क्या महूसस किया, सीएम मोदी की कितनी तारीफ की, मीडिया को इससे कोई लेना देना नहीं था, उसके मन में पहले से निष्कर्ष है कि सीएम मोदी दोषी हैं, तो वह उसी को समर्थन देने वाली रिपोर्ट्स छाप रही है.

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अमेरिकी सीनेट से आई रिपोर्ट से बेहद परेशान

आडवाणी जी भी अमेरिकी सीनेट से आई उस रिपोर्ट से बेहद परेशान थे कि मोदीजी के वीजा पर अमेरिका ने प्रतिबंध लगा दिया है, वो हैरान इस बात से भी थे कि मोदीजी ने वीजा के लिए अप्लाई ही नहीं किया था. जब 2008 में अमेरिकी विदेश मंत्री कोंडालिसा राइस भारत दौरे पर आईं तो आडवाणी जी से उनके घर आकर मिलीं. तब आडवाणी जी ने मोदीजी के वीजा का मुद्दा उनके सामने उठाया. फौरन कोंडालिसा ने अधिकारियों से उन्हीं के सामने पूछा कि क्या ये सत्य है? अधिकारियों ने बताया कि ये खबर एक सीनेटर के सवाल के जवाब पर आधारित है. लेकिन ये बात अहम है कि आडवाणी जी के दिल में मोदीजी के लिए हमेशा से जगह रही है. आडवाणी जी ने अमेरिकी कांग्रेस के थिंक टैंक की रिपोर्ट में मोदीजी की तारीफ वाले ब्लॉग की चर्चा अपने ब्लॉग में भी की थी.

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होली खेलने की आदत ब्रज से ही लग गई थी

अक्सर दिल्ली के अखबारों में होली खेलने की प्रमुख जगहों के तौर पर आडवाणी जी का घर भी सूची में छपता था, मुंबई में आरके स्टूडियो की तरह. बचपन से ही आडवाणी जी के लिए होली प्रमुख त्योहार था. वो बचपन में लोगों की पगड़ियों में चुपचाप हुक फंसाकर साथी लड़कों के साथ उन्हें हवा में उड़ा देने जैसे होली के मजाक किया करते थे. आरएसएस ने उन्हें शुरुआत में ही भरतपुर, अलवर जैसे मथुरा से लगे इलाकों में काम करने के लिए भेजा. भरतपुर तो ब्रज में ही आता है, सो आडवाणी जी को भी मस्ती से होली खेलने की आदत ब्रज से ही लग गई थी और आज तक उनका पृथ्वीराज रोड वाला बंगला होली पर हजारों का स्वागत करता है.

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जनसंघ पर लेख लिखकर दिया जवाब

पुराने दिनों में जनसंघ की तुलना पत्रकार मशहूर चरित्र अभिनेता ए के हंगल से किया करते थे कि वो पसंद तो सबको आते हैं, लेकिन वो कभी भी हीरो नहीं बन सकते. तो एक दिन आडवाणी जी ने इसका जवाब एक लेख लिखकर दिया था, एक दिन वो स्थिति आएगी जब हालात बदलेंगे और आप हमारे बारे में ये राय बदलेंगे और आडवाणी जी के सामने ही वो सपना साकार हो चुका है. दिलचस्प बात है कि एके हंगल कभी वामपंथी संस्था इप्टा से जुड़े रहे थे और नेहरूजी की पत्नी कमला नेहरू के रिश्तेदार थे. 

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