जब Manekshaw ने PAK को दी थी चेतावनी, `सरेंडर करो, वर्ना नेस्तनाबूत कर देंगे`
भारत के फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ (Sam Manekshaw) ने साल 1971 के युद्ध में पाकिस्तान सेना के कमांडर जनरल एएके नियाजी को कहा था कि सरेंडर करो वर्ना हम आपको नेस्तनाबूत कर देंगे. इसके बाद पाकिस्तान के 93000 सैनिकों ने आत्मसमर्पण कर दिया था.
बांग्लादेश मुक्ति युद्ध
1971 के युद्ध को बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के नाम से भी जाना जाता है. पूर्वी पाकिस्तान में स्वतंत्रता के लिए चल रहे संघर्ष के बीच 3 दिसंबर 1971 को भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हुआ था. 13 दिन बाद यानी 16 दिसंबर को पाकिस्तानी सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया और बांग्लादेश एक अलग देश बना.
ढाका पहुंच गई थी भारतीय सेना
भारत और पाकिस्तान के संघर्ष के दौरान भारतीय सेना ने ढाका को 3 तरफ से घेर लिया था. 14 दिसंबर को भारतीय सेना ने ढाका में पाकिस्तान के गवर्नर के घर पर हमला किया, उस वक्त वहां पाकिस्तान के सभी बड़े अधिकारी गुप्त मीटिंग के लिए जमा हुए थे. इस हमले से पाकिस्तानी फौज के हौसले पस्त हो गए और पाक सेना के कमांडर जनरल एएके नियाजी ने युद्ध विराम का प्रस्ताव भेजा.
सरेंडर करें, वरना नेस्तनाबूत कर देंगे
पाकिस्तान सेना के कमांडर जनरल एएके नियाजी के युद्ध विराम के प्रस्ताव पर भारतीय थलसेनाध्यक्ष सैम मानेकशॉ ने साफ कर दिया कि अब युद्ध विराम नहीं, बल्कि सरेंडर होगा. उन्होंने 13 दिसंबर को पाकिस्तानी जनरल को स्पष्ट रूप से कहा था, 'आप सरेंडर करें वर्ना हम आपको नेस्तनाबूत कर देंगे.'
ऐसे हुई थी युद्ध की शुरुआत
पूर्वी पाकिस्तान में स्वतंत्रता के लिए चल रहे संघर्ष के बीच 3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी विमानों ने भारत के कुछ शहरों पर बमबारी की. इसके बाद हमले की जानकारी मौजूदा प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को दी गई और उन्होंने कैबिनेट बैठक के बाद भारतीय सेना को ढाका की तरफ बढ़ने का हुक्म दे दिया.
भारतीय सेना ने पाक में की नाकेबंदी
भारतीय सेना ने पूर्वी पाकिस्तान पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली और साथ ही भारतीय वायुसेना ने पश्चिमी पाकिस्तान के अहम ठिकानों व हवाई अड्डों पर बम बरसाने शुरू कर दिए. भारत की तीनों सेनाओं ने पाकिस्तान की जबरदस्त नाकेबंदी कर दी. 14 दिसंबर तक यह स्पष्ट हो गया कि पाकिस्ताी सेना कमजोर पड़ गई है.
पाक सेना को करना पड़ा सरेंडर
कोलकाता से भारत के पूर्वी कमांड के प्रमुख लेफिटेनेंट जेनरल जगजीत सिंह अरोड़ा ढाका पहुंचे. अरोड़ा और नियाजी की बैठक के बाद 16 दिसंबर 1971 को दोपहर के 2.30 बजे सरेंडर की प्रक्रिया शुरू हुई. पाकिस्तानी कमांडर नियाजी ने पहले सरेंडर के कागज पर दस्तखत किए और समर्पण के प्रतीक के तौर पर अपना रिवॉल्वर जनरल अरोड़ा को सौंप दिया.