चार्ली चैप्लिन से जब मिले थे गांधीजी, तो बीच में आ गई थी ‘आत्मनिर्भरता’
उन दिनों चार्ली चैप्लिन अपनी मूवी `सिटी लाइट्स` का प्रचार करने लंदन में ही थे, किसी अपने ने उन्हें गांधीजी के बारे में बताया और कहा कि आपको उनसे मिलना चाहिए.
गांधीजी को हर कोई जान चुका था
दरअसल जब से गांधीजी के लिए शाही भोज वाली खबर छपी, चर्चिल ने उन्हें ‘नेक्ड फकीर’ कहा, ये सारी खबरे छपने से गांधीजी को वहां हर कोई जान गया था. चैप्लिन की भी मिलने की उत्सुकता हुई और बताते हैं कि इससे उनकी मूवी को भी प्रचार मिलना था. चैप्लिन ने गांधीजी के पास मिलने का संदेश पहुंचाया, गांधीजी के सचिव महादेव देसाई ने उस घटना के बारे में लिखा है कि गांधीजी की पहली प्रतिक्रिया ये थी कि, ‘कौन हैं ये महाशय और करते क्या हैं?’’ गांधीजी फिल्में नहीं देखते थे, उन्होंने अपने जीवन में 2 ही मूवीज देखी थीं, जिनमें से एक विजय भट्ट की ‘रामराज्य’ हिंदी मूवी थी और दूसरे एक इंगलिश मूवी थी. ऐसे में वो कैसे चार्ली चैप्लिन को जानते, जब उनके सामने कोई फिल्मों की चर्चा ही नहीं करता था.
तब जाकर गांधीजी मिलने को हुए तैयार
लेकिन लंदन में लोगों ने उन्हें समझाया कि ये आम लोगों के बीच का आदमी है, उनकी बात करता है और दुनियां भर में करोड़ों लोगों को हंसाता है तो गांधीजी मिलने को तैयार हो गए. इधर चार्ली चैप्लिन को पता था कि गांधीजी से ये मुलाकात अंग्रेजी सरकार के गुस्से का शिकार बना सकती है. सो एक रात पहले चार्ली ने चर्चिल और उनके करीबियों से डिनर पर मुलाकात की, और गांधीजी से अपनी मुलाकात के बारे में बताया. वहीं चर्चिल के एक करीबी ने कहा कि गांधी को जेल में डाल दो, सारा मसला खत्म हो जाएगा. इस पर चैप्लिन ने कहा था, एक गांधी को जेल में डालोगे, दूसरा तैयार हो जाएगा, किस किस को जेल में डालोगे? इस पर चर्चिल ने चार्ली चैप्लिन पर तंज कसते हुए कहा था, अब तुम लेबर पार्टी (विपक्ष) के सदस्य बनने लायक हो गए हो? चार्ली ने ये तंज साफ महसूस किया था.
सभी अखबारों में छपी फोटो
जब चार्ली चैप्लिन गांधीजी से मिलने पहुंचे तो उनकी ये फोटो तो सब अखबारों में छपी थी, लेकिन रिपोर्ट बस गांधीजी के अखबार ‘यंग इंडिया’ में ही छपी थी, जिसको लिखा था गांधीजी के निजी सचिव महादेव देसाई ने, लेकिन चैप्लिन ने बाद में इसका जिक्र अपनी ऑटोबायोग्राफी ‘माई ऑटोबायोग्राफी’ में किया था. उन दोनों की मुलाकात हुई एक स्लम एरिया में जहां गांधीजी रुके थे, ईस्ट इंडिया डॉक रोड पर एक भारतीय डॉक्टर के छोटे से घर में, इसी इलाके में जब चार्ली चैप्लिन पहुंचे तो तमाम मीडिया वाले कवरेज के लिए वहां पहुंच चुके थे
सरकार की भी थी नजर
चार्ली चैप्लिन को भी पता था कि उनकी इस मुलाकात पर सरकार भी नजर रख रही होगी. ऐसे में महादेव देसाई ने अपनी ‘यंग इंडिया’ की रिपोर्ट में लिखा है कि, ‘चार्ली चैप्लिन का पहला ही सवाल था कि आप मशीनों का इतना विरोध क्यों करते हैं’. गांधीजी उनका सवाल सुनकर मुस्कराए, और फिर विस्तार से समझाया कि भारत में किसान हर साल ‘6 महीने की बेरोजगारी’ के दिनों में कृषि सम्बंधित कुटीर उद्योगों पर ही आश्रित रहता है. चार्ली चैप्लिन ने फौरन दूसरा सवाल दाग दिया कि, ‘इट इज दैन ऑनली रिगार्ड्स क्लॉथ’? दरअसल ब्रिटेन के लोगों ने जितना पैसा भारतीय रेलवे में इन्वेस्ट करके गारंटी वाली ब्याज लेकर कमाया था, उतना ही पैसा भारत में कपड़ा उद्योग बर्बाद करके, भारत को कपास आदि कच्चे माल का निर्यातक बनाकर किया था. सारी इंडस्ट्री कपड़ों की इंगलैंड में थी, भारत के लोगों को सस्ता कपास बेचना पड़ता था और इंगलैंड के लोगों के कपड़ों का बाजार भी वही थे और महंगा कपड़ा खरीदना पड़ता था. ऐसे में गांधीजी ने चरखा और खादी की मुहिम चलाई, जिससे अंग्रेजी कपड़ा मिल मालिकों को लोग काफी परेशान थे.
आत्मनिर्भरता को लेकर चार्ली चैप्लिन को दिया ज्ञान
तब गांधीजी ने लम्बा ज्ञान ‘आत्मनिर्भरता’ को लेकर चार्ली चैप्लिन को दिया, कि कैसे किसी देश को कपड़ों, खाद्यान्न जैसी मूलभूत जरूरतों के लिए दूसरे देश पर निर्भर नहीं रहना चाहिए. उन्होंने जोर देकर कहा कि हम आत्मनिर्भर हमेशा रहे हैं, और आगे भी रहना चाहते हैं, उन्होंने काफी देर तक भारत के लोगों की आकांक्षा, उनकी परेशानियां और इंग्लैंड की कंपनियों के मकड़जाल के बारे में समझाया और चार्ली चैप्लिन इस बात से सहमत भी हुए. बाद में गांधीजी की काफी तारीफ अपनी ऑटोबायोग्राफी में की भी. गांधीजी ने उन्हें जैन धर्म के सिद्धांत ‘अपरिग्रह’ को भी समझाया था.
गांधीजी को बताया एंटरटेनर
जब एक अखबार ने गांधीजी से उनकी मुलाकात के बारे में पूछा तो उनका जवाब था कि गांधीजी मेरी जिंदगी में मिलने वाले सभी व्यक्तियों में सबसे बड़े एंटरटेनर थे. बाद में उन्होंने गांधीजी के इस ज्ञान को लेकर एक मूवी भी बना डाली. इस मुलाकात के बाद उनकी एक मूवी रिलीज हुई, जिसका टाइटिल था ‘मॉर्डन टाइम्स’. इस मूवी में उन्होंने ऑटोमेशन के साइड इफैक्ट्स पर फोकस किया था, अपने उसी चिरपरिचित मजाकिया अंदाज में. एक तरह से उन्होंने भी अपनी इस मूवी में यही संदेश दिया कि जरुरत से ज्यादा मशीनों का चक्कर छोड़ो, आत्मनिर्भर बनो.