नई दिल्ली: कश्मीर में पत्थर फेंकने वालों को तितर-बितर करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली पैलेट गन को लेकर बड़ा हंगामा हो चुका है. इससे बचने के लिए रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) ने प्लास्टिक की बुलेट विकसित की है, जो कि कम घातक है. पैलेट गन के इस्तेमाल के कारण लोगों के अंधे हो जाने के बाद गृह मंत्रालय ने त्वरित और प्रभावी समाधान की मांग की थी.


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पंजाब के जालंधर शहर में चल रही भारतीय विज्ञान कांग्रेस में इसको प्रदर्शित करते हुए बताया कि इस प्लास्टिक की गोली को एके-47 राइफलों में लोड करके दागा जा सकता है. यह रबड़ की गोलियों की तुलना में कम हानिकारक है.


चंडीगढ़ के डीआरडीओ की प्रमुख प्रयोगशालाओं में से एक, टर्मिनल बॉलिस्टिक्स रिसर्च लेबोरेटरी के डायरेक्टर मंजीत सिंह ने एक मीडिया हाउस को बताया, "पैलेट गन से होने वाले बड़े नुकसान से निपटने के लिए एक समाधान की जरूरत थी."


श्री सिंह ने कहा कि प्लास्टिक की गोली भीड़ को नियंत्रित करने का एक प्रभावी तरीका है और जम्मू-कश्मीर पुलिस को पहले ही एक लाख गोलियां दी जा चुकी हैं.


नायलॉन से बनी होती है
रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन के अध्यक्ष डॉ. सतीश रेड्डी ने कहा, "प्लास्टिक की गोली 50 मीटर की दूरी से फायर करने पर सतही चोट देती है. यह नायलॉन से बनी होती है और 500 गुना कम हानिकारक होती है. बुलेटहेड काफी कुंद होता है और इसका वजन बहुत कम होता है, इसलिए यह गोली अंगों को घायल करने के लिए शरीर में प्रवेश नहीं कर सकती है."


जहर का डर नहीं होता
प्लास्टिक की गोली में सीसे का इस्तेमाल नहीं होता, इसलिए इसमें जहर का डर नहीं होता है. जब फायर किया जाता है, तो यह सामान्य फायरिंग जैसा लगता है, इसलिए मनोवैज्ञानिक प्रभाव समान रूप से पड़ता है.


पैलेट का इस्तेमाल
बता दें कि जम्मू-कश्मीर में हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकवादी बुरहान वानी की 2016 में एनकाउंटर के बाद सेना का विरोध प्रदर्शन करने उतरे सैकड़ों लोग मारे गए थे. इसके बाद हुई हिंसक अशांति में लगभग 100 लोग मारे गए थे. वहीं, भीड़ को नियंत्रित करने के लिए इस्तेमाल की गई पैलेट गन के इस्तेमाल से हजारों घायल हो गए थे.