Supreme court: सभी नागरिकों के लिए `तलाक के समान आधार` की मांग, जनहित याचिका दाखिल
याचिका में कहा गया कि दंपती में अगर एक जीवनसाथी विदेशी नागरिक है तो उसे विदेशी विवाह अधिनियम, 1969 के तहत तलाक की अर्जी देनी होगी.
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय (Supreme court) में दाखिल की गई एक जनहित याचिका (public interest litigation) में संविधान की भावना तथा अंतरराष्ट्रीय समझौतों के अनुरूप देशभर के सभी नागरिकों के लिए ‘तलाक के समान आधार’ की मांग की गई है. याचिका भाजपा नेता एवं अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने दाखिल की है. इसमें केंद्र को तलाक (Divorce) के कानूनों में विसंगतियों को दूर करने के लिए कदम उठाने तथा धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर पूर्वाग्रह नहीं रखते हुए सभी नागरिकों के लिए समान कानून बनाने का निर्देश देने की मांग की गई है.
याचिका में कहा गया कि ‘न्यायालय यह घोषणा कर सकता है कि तलाक के पक्षपातपूर्ण (Partial) आधार अनुच्छेद 14, 15, 21 का उल्लंघन करते हैं, वह सभी नागरिकों के लिए ‘तलाक के समान आधार’ संबंधी दिशानिर्देश बना सकता है.'
इसमें कहा गया, ‘इसके अलावा, अदालत विधि आयोग (Law Commission) को तलाक संबंधी कानूनों का अध्ययन करने तथा तीन महीने के भीतर अनुच्छेद 14, 15, 21 के अनुरूप और अंतरराष्ट्रीय कानूनों एवं अंतरराष्ट्रीय समझौतों को ध्यान में रखते हुए सभी नागरिकों के लिए ‘तलाक के समान आधारों’ का सुझाव देने का निर्देश दे सकती है.'
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याचिका में कहा गया, ‘हिंदू, बौद्ध, सिख और जैन समुदाय के लोगों को हिंदू विवाह अधिनियम 1955 (Hindu Marriage Act 1955) के तहत तलाक के लिए आवेदन करना पड़ता है. मुस्लिम, ईसाई और पारसी समुदायों के अपने पर्सनल लॉ (Personal law) हैं. अलग-अलग धर्मों के दंपती विशेष विवाह अधिनियम, 1956 के तहत तलाक मांग सकते हैं.'
याचिका में कहा गया कि 'दंपती में अगर एक जीवनसाथी विदेशी नागरिक है तो उसे विदेशी विवाह अधिनियम, 1969 (Foreign Marriage Act, 1969) के तहत तलाक की अर्जी (Divorce Application) देनी होगी.'