Arresting Rules: पुलिस नहीं कर सकती आपको मनमाने तरीके से गिरफ्तार, आपके पास हैं ये कानूनी अधिकार
Law: वकीलों के मुताबिक, पुलिस को आपराधिक मामलों में भी आरोपी की गिरफ्तारी के लिए पूरी कानूनी प्रक्रिया का पालन करना होता है. गैरकानूनी तरीके से गिरफ्तारी न सिर्फ सीआरपीसी का उल्लंघन है, बल्कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20, 21और 22 में बताए गए मौलिक अधिकारों के भी खिलाफ है.
What is Arresting Rules in Law: पुलिस का काम किसी भी एरिया में लॉ एंड ऑर्डर को बनाए रखना है. वह क्राइम कंट्रोल के लिए भी काम करती है. हालांकि समय-समय पर पुलिस की कार्य़प्रणाली पर भी सवाल उठते रहते हैं. कई मामलों में देखा गया है कि पुलिस ने नियमों को ताक पर रखकर किसी शख्स कि गिरफ्तारी की. बाद में इसे लेकर पुलिस की आलोचना होती है या फिर कोर्ट की तरफ से कार्रवाई के आदेश दिए जाते हैं, लेकिन तब तक पीड़ित बेवजह कई तरह की सजा भुगत चुका होता है. आज हम बता रहे हैं कानून में बताए ऐसे अधिकार जिनके जरिये आप पुलिस की मनमानी कार्रवाई से बच सकते हैं.
पुलिस के लिए इन गाइडलाइंस का पालन करना जरूरी
कानूनी जानकार और वकील कहते हैं कि पुलिस किसी को अपने मनमाने ढंग से गिरफ्तार नहीं कर सकती. उसे आपराधिक मामलों में भी आरोपी की गिरफ्तारी के लिए पूरी कानूनी प्रक्रिया का पालन करना होता है. गैरकानूनी तरीके से गिरफ्तारी न सिर्फ सीआरपीसी का उल्लंघन है, बल्कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20, 21और 22 में बताए गए मौलिक अधिकारों के भी खिलाफ है. वकीलों ने गिरफ्तारी को लेकर कुछ गाइडलाइंस भी बताईं.
अगर पुलिस किसी शख्स को गिरफ्तार करने गई है तो उसे गिऱफ्तार करने वाले पुलिस अधिकारी को पुलिस की वर्दी में होना जरूरी है साथ ही उसकी नेम प्लेट में उसका नाम भी साफ-साफ लिखा हो.
सीआरपीसी की धारा 57 कहती है कि पुलिस किसी भी शख्स को 24 घंटे से ज्यादा हिरासत में नहीं रख सकती है. उसे इससे ज्यादा के हिरासत के लिए सीआरपीसी की धारा 56 के तहत मैजिस्ट्रेट से इजाजत लेनी होगी.
सीआरपीसी की धारा 50 (1) कहती है कि पुलिस को गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को उसकी अरेस्टिंग का कारण भी बताना होगा.
सीआरपीसी की धारा-41बी में बताया गया है कि गिरफ्तारी से पहले अरेस्ट मेमो तैयार करना जरूरी है. इसमें अरेस्टिंग करने वाले पुलिस अफसर की रैंक, अरेस्टिंग की टाइमिंग और प्रत्यक्षदर्शी के हस्ताक्षर होने चाहिएं. इसके अलावा जिसकी गिरफ्तारी की गई है उसके साइन भी उस मेमो में होने चाहिए.
सीआरपीसी की धारा 50(A) अरेस्ट किए गए व्यक्ति को ये अधिकार देती है कि वह अपनी गिरफ्तारी की जानकारी अपने परिवार या रिश्तेदार को दे सके. अगर उस शख्स को इस नियम का पता नहीं है तो पुलिस को खुद यह सूचना उसके घर वालों को देनी होगी.
सीआरपीसी की धारा 41D गिरफ्तार व्यक्ति को पुलिस जांच के दौरान कभी भी अपने वकील से मिलने का अधिकार देती है. यही नहीं इसके तहत वह अपने परिवार से भी बात कर सकता है.
सीआरपीसी की धारा 54 गिरफ्तारी के बाद उस शख्स को मेडिकल जांच कराने का हक देती है. यानी अगर वह इसकी डिमांड करता है तो पुलिस को उसका मेडिकल कराना होगा. ऐसा कराने से ये फायदा होगा कि गिरफ्तारी के वक्त आपकी शारीरिक हालत, बीमारी आदि की जानकारी मिल जाएगी. मान लीजिए आप पूरी तरह फिट हैं और शऱीर पर कोई चोट भी नहीं है तो पुलिस आपके साथ मारपीट नहीं कर सकती. इससे उसके फंसने का खतरा रहेगा. जबकि बिना मेडिकल पुलिस आपके साथ पूछताछ के नाम पर मारपीट कर सकती है और यह साबित कर सकती है कि ये चोट पहले से लगी थी.
कानून कहता है कि अरेस्ट किए गए शख्स की हर 48 घंटे में मेडिकल जांच होती रहे.
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