Droupadi Murmu: क्या हैं द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने के मायने? यहां समझिए BJP की तैयारियों का गणित
President of India: द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति चुना जाना कई मायनों में अहम है. इसके राजनीतिक मायने भी हैं और इसके सामाजिक मायने भी हैं. ऐसे में आइए आपको एक एक कर बताते हैं कि राष्ट्रपति पद पर द्रौपदी मुर्मू की जीत को क्यों बीजेपी का मास्टर स्ट्रोक कहा जा रहा है.
Droupadi Murmu wins Presidential Election: भारत के राष्ट्रपति चुनाव में जीत (Presidential Election Result) के बाद द्रौपदी मुर्मू (Droupadi Murmu) को बधाई मिलने का सिलसिला जारी है. आज सुबह से ही दिल्ली में उनके घर पर कई बड़े नेता पहुंच रहे हैं. द्रौपदी मुर्मू देश की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति पद के लिए चुन ली गई हैं. उन्होंने विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को बड़े अंतर से हराया. वहीं द्रौपदी मुर्मू देश की ऐसी पहली राष्ट्रपति बनेंगी, जिनका जन्म आजादी के बाद हुआ है. यही नहीं 64 साल की द्रौपदी मुर्मू देश की सबसे युवा राष्ट्रपति भी होंगी.
द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति चुने जाने के मायने
द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति चुना जाना कई मायनों में अहम है. इसके राजनीतिक मायने भी हैं और इसके सामाजिक मायने भी हैं. पहले आपको इसके राजनीतिक मायने बताते हैं.द्रौपदी मुर्मू आदिवासी समुदाय से आती हैं. यानी उनके राष्ट्रपति बनने से आदिवासी समुदाय में बीजेपी की स्वीकार्यता और बढ़ेगी. और इसका असर चुनावों में भी खास तौर पर दिखेगा. कुछ आंकड़ों से इसे समझिए.
इस साल गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधान सभा के चुनाव हैं, जहां आदिवासी समुदाय की अच्छी खासी आबादी है. गुजरात की कुल आबादी में 14.8 प्रतिशत लोग आदिवासी समुदाय के हैं जबकि हिमाचल में 5.71 प्रतिशत आबादी आदिवासी समुदाय की है. इसलिए राष्ट्रपति चुनाव का असर इन राज्यों के विधान सभा चुनावों में साफ दिख सकता है. और बात सिर्फ़ इन दो राज्यों की नहीं है.
बीजेपी का मिशन 2023 और 2024
अगले साल यानी वर्ष 2023 में 9 राज्यों में विधान सभा चुनाव होने हैं. इनमें मेघालय में 86.15, नागालैंड में 86.5, त्रिपुरा में 31.8, कर्नाटक में 7, छत्तीसगढ़ में 30.6, मध्य प्रदेश में 21.1, मिज़ोरम में 94.4, राजस्थान में 13.5 और तेलंगाना में 9.3 प्रतिशत आबादी आदिवासी समुदाय की है. यानी अगले साल जिन 9 राज्यों में विधान सभा चुनाव होने हैं, उनमें से 6 राज्य ऐसे हैं, जहां आदिवासी समुदाय की आबादी 20 प्रतिशत से ज्यादा है.
द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने के मायने भी बड़े प्रासंगिक हैं. दरअसल पीएम मोदी (PM Modi) के अंत्योदय मिशन (Antyoday Mission) की देशभर में चर्चा है. आपको बता दें कि अंत्योदय का मतलब होता है कि देश की अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति को मुख्यधारा से जोड़ कर उसका समुचित विकास करना है. ऐसे में द्रौपदी मुर्मू जो आदिवासी समुदाय से आती हैं उनके प्रेसिडेंट बनने के बाद इस समाज के कमज़ोर वर्ग का भरोसा मोदी सरकार पर बढ़ेगा. यानी केंद्र सरकार के प्रति लोगों की उम्मीदें बढ़ेंगी.
वंशवाद पर और मुखर होगी बीजेपी
वहीं दूसरी खास बात ये है कि द्रौपदी मुर्मू किसी राजनीति परिवार से नहीं आती हैं ऐसे में राजनीति में परिवारवाद का पारंपरिक ढांचा कमजोर करने के साथ बीजेपी विपक्षी दलों पर इस मामले को लेकर और हमलावर रुख अख्तियार कर सकती है. बीजेपी की चुनावी रणनीति इस बात से भी समझी जा सकती है कि देश के वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद उस उत्तर प्रदेश से आते हैं जहां सबसे ज्यादा लोकसभा सीटे हैं. निवर्तमान उप राष्ट्रपति एम.वेंकैया नायडू आन्ध्र प्रदेश से हैं. देश की नई राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ओडिशा राज्य से आती हैं और बीजेपी के उपराष्ट्रपति उम्मीदवार जगदीप धनखड़ जगदीप धनखड़ राजस्थान से आते हैं.
बीजेपी के ब्रह्मास्त्र से विपक्षी दलों में हलचल
राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष के कुछ दल NDA के साथ चल गए. यशवंत सिन्हा विपक्ष के संयुक्त उम्मीदवार तो थे इसके बावजूद कई विपक्षी दलों ने द्रौपदी मुर्मू का साथ दिया. हैरानी की बात ये है कि इनमें बहुत सारे नेता कांग्रेस पार्टी के भी हैं. झारखंड और गुजरात में NCP विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की. जबकि हरियाणा और ओडिशा में कांग्रेस पार्टी के कई विधायकों ने यशवंत सिन्हा को अपना कीमती वोट नहीं दिया. इन विधायकों का कहना है कि उन्होंने वोटिंग के दौरान अपनी अंतर आत्मा की आवाज़ को सुना. असम में IUDF पार्टी का दावा है कि कांग्रेस के कम से कम 20 विधायकों ने द्रौपदी मुर्मू के समर्थन में वोटिंग की.
इसी तरह उत्तर प्रदेश में शिवपाल सिंह यादव ने पहले ही ये ऐलान कर दिया था कि वो यशवंत सिन्हा का कभी समर्थन नहीं करेंगे. जबकि ओडिशा में कांग्रेस के विधायक मोहम्मद मोकिम ने खुद ये कहा है कि उन्होंने चुनाव में द्रौपदी मुर्मू का समर्थन किया, क्योंकि वो ओडिशा की बेटी हैं. इसके अलावा ओडिशा की सत्तारूढ़ पार्टी बीजू जनता दल, आन्ध्र प्रदेश की YSRCP, मायावती की बीएसपी और कर्नाटक की JDS पार्टी ने पहले ही ये ऐलान कर दिया था कि वो चुनाव में द्रौपदी मुर्मू का समर्थन करेंगी. इसके अलावा झारखंड में हेमंत सोरेन की पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस की सरकार है. लेकिन इसके बावजूद झारखंड मुक्ति मोर्चा ने UPA से अलग द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति चुनावों में समर्थन किया.
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