पॉडकास्ट सुनें:


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING


नई दिल्ली: आज हम एक सवाल के साथ आपके सामने आए हैं कि अगर आप दूषित वातावरण, दूषित जल और दूषित स्थान पर पूजा करते हैं तो क्या उससे भगवान प्रसन्न होंगे? आज हमारे पास दिल्ली में यमुना नदी के दूषित जल में छठ पूजा करते हुए लोगों की कुछ ऐसी तस्वीरें आई हैं, जिन्हें देखकर आप या तो अपनी आंखें बंद कर लेंगे या अपनी नाक बंद कर लेंगे.


दूषित जल में छठ पूजा


यमुना में प्रदूषण से पैदा हुए झाग के बीच लोगों ने नदी में उतरकर ना सिर्फ पूजा की, बल्कि इसी नदी में स्नान भी किया और इसके दूषित जल को ग्रहण भी किया. छठ के पहले दिन नदी, तालाब और पोखरों में स्नान करने के बाद, घर का बना शुद्ध शाकाहारी भोजन किया जाता है और फिर 36 घंटे तक व्रत रखा जाता है.


मान्यता के अनुसार छठ का भोजन भी नदी के पानी से ही तैयार किया जाता है. लेकिन इन तस्वीरों को देखकर आप खुद सोचिए कि क्या इस पानी में स्नान किया जा सकता है? और क्या इस पानी को पिया जा सकता है या इससे भोजन बनाया जा सकता है?


केमिकल से तैयार हुआ झाग


यमुना नदी में जहरीला झाग इसलिए जमा हो रहा है क्योंकि आस पास की फैक्ट्रियों से लगातार यमुना में जो Waste डाला जा रहा है उसमें Ammonia और Phosphate (फॉस्फेट)  की मात्रा बहुत ज्यादा है. ये दोनों Chemicals पानी में घुलने के बाद झाग का निर्माण करते हैं.


छठ का पर्व सूर्य की उपासना का पर्व है. इस दौरान नदी के जल से ही सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. लेकिन क्या कोई भगवान खुद चाहेंगे कि उनकी पूजा इस दूषित जल से की जाए. वो कौन सा भगवान होगा जो प्रदूषण को प्रसाद समझेगा?


न नदी बचेगी, न सूर्य दिखेंगे


दिल्ली के जिस कालिंदी कुंज इलाके में लोगों ने छठ की पूजा की, वहां आज सुबह Air Qiality Index 450 से 500 के बीच था, जिसे बहुत खतरनाक माना जाता है. आप कह सकते हैं कि लोगों ने 500 के AQI के बीच अपना त्योहार मनाया. ये स्थिति देखकर लगता है कि कुछ दिनों के बाद त्योहार मनाने के लिए ना तो नदियां बचेंगी और ना ही प्रदूषण के बीच सूर्य के दर्शन होंगे.


विडंबना ये है कि छठ का त्योहार पूरे तरीके से प्रकृति को समर्पित है. लेकिन अब स्थिति ये हो गई है कि त्योहार तो बच गया है लेकिन प्रकृति नहीं बची है. यानी ये कलयुग का छठ पर्व है जहां ना तो अब प्रदूषण और स्मॉग के बीच सूर्य दिखाई देता है और ना ही झाग के बीच नदी का जल दिखाई देता है.


गंदा पानी बनाएगा रोग मुक्त?


छठ के पर्व की शुरुआत दिवाली के छठे दिन से होती है. इसलिए इसे छठ कहा जाता है लेकिन इसका एक उद्देश्य होता है, हठ योग के 6 अभ्यासों के जरिए सूर्य की प्रखर ऊर्जा को आत्मसात करके सभी रोगों से मुक्ति पाना. लेकिन क्या प्रदूषित नदी में खड़े होकर और 500 के AQI के बीच सांस लेकर कोई व्यक्ति खुद को रोग मुक्त बना सकता है?


कहा जाता है कि छठ पूजा की शुरुवात ऋगवेद काल से हुई थी और महाभारत के समय धौम्य ऋषि के कहने पर द्रौपदी ने ये व्रत रखा था. इससे पांडवों को उनका खोया हुआ राजपाट वापस मिला था. महाभारत काल में इंद्रप्रस्थ पांडवों की राजधानी हुआ करती थी जिसे आज आप दिल्ली के नाम से जानते हैं. लेकिन अगर आज के जमाने में पांडव होते तो वो शायद प्रदूषित इंद्रपस्थ को छोड़कर कहीं पहाड़ पर चले जाते और वहां अपनी नई राजधानी बसाते, क्योंकि कौरवों से जीतने वाली उनकी सेना 500 से 999 के AQI से युद्ध हार जाती.


ओजोन परत में विशालकाय छेद


कहा जाता है कि जब छठ पर्व की शुरुआत होती है, तब पृथ्वी की खगोलीय स्थिति कुछ ऐसी होती है कि सूर्य से आने वाली हानिकारक Ultra Violet Rays की मात्रा बढ़ जाती है. इससे पृथ्वी पर मौजूद जीव और जंतुओं को बहुत कष्ट होता है. जीव जंतुओं को कष्ट से बचाने के लिए ही सूर्य देव की उपासना की जाती है.


आम तौर पर पृथ्वी के वायुमंडल में मौजूद ओजोन की परत इन अल्ट्रा वॉयलेट किरणों को सीधे पृथ्वी पर आने से रोकती है. लेकिन अब ओजोन की परत में एक विशालकाय छेद हो चुका है जो आकार में अमेरिकी महाद्वीप से भी बड़ा है. ओजोन की ये परत पृथ्वी से 11 से 40 किलोमीटर की ऊंचाई पर होती है.


रस्म अदायगी बन जाएंगे त्योहार


प्रदूषण से पैदा होने वाली हानिकारक Gases की वजह से कई बार दिल्ली जैसे शहरों की सतह पर ही ओजोन की एक परत बन जाती है जिसे आप स्मॉग कहते हैं और इसका निर्माण होता है वाहनों और फैक्ट्रियों से निकलने वाले धुएं से. जब किसी शहर की सतह पर ये ओजोन जमा हो जाती है. तो लोगों को सांस से संबंधित रोग होने लगते हैं, Cardiac Arrest आ सकता है और लोगों को बड़ी संख्या में अस्पतालों में भर्ती कराना पड़ता है. दिल्ली और आस-पास के शहरों में इस समय यही हो रहा है जो प्रकृति के असंतुलन को दिखाता है.


छठ का पर्व इंसानों और प्रकृति के बीच संतुलन को बनाए रखने का पर्व है. लेकिन अब ये पर्व भी धीरे-धीरे रस्म अदायगी बनकर रह जाएंगे क्योंकि जैसा कि हमने कहा छठ जैसे त्योहार को मनाने के लिए ना तो अब नदिया बची हैं और ना ही स्मॉग के बीच सूर्य के दर्शन संभव हैं.


करवाचौथ पर नहीं दिखा था चांद


आपको याद होगा कि पिछले महीने करवाचौथ का त्योहार था और दिल्ली और आसपास के शहरों में बेमौसम बारिश की वजह से महिलाएं चंद्रमा के दर्शन नहीं कर पाई थीं, ये बेमौसम बारिश भी जलवायु परिवर्तन का ही नतीजा है. बहुत सारे लोगों ने तो अलग अलग Mobile Phone Application पर चंद्रमा के दर्शन किए थे, कुछ लोगों ने Youtube की मदद ली थी तो कुछ लोगों ने दूसरे शहरों में मौजूद अपने रिश्तेदारों और दोस्तों को वीडियो कॉल करके कहा था कि वो उन्हें चंद्रमा के दर्शन करा दें.


कोई भी त्योहार इसीलिए अपनी चमक खोने लगता है क्योंकि इंसान त्योहार के दिन प्रकृति को बचाने की शपथ खाने की बजाय उसी दिन प्रकृति को नुकसान पहुंचाने में जुट जाते हैं. ईद जैसे त्योहार पर भी कुर्बानी का असली मतलब था कि लोग अपनी किसी प्रिय वस्तु की कुर्बानी दें. लेकिन अब लोग ईद से दो चार दिन पहले बकरे खरीद कर घर लाते हैं और उसकी कुर्बानी दे देते हैं. अब दो चार दिन पहले घर लाया गया कोई जानवर किसी का प्रिय कैसे हो सकता है.


नदी से जुड़ी श्रद्धालुओं की आस्था


चार दिनों तक मनाए जाने वाले छठ पर्व का आज पहला दिन था जिसकी शुरुआत नहाय-खाय की परंपरा से होती है. इसी परंपरा को मनाने और यमुना में स्नान करने के लिए आज दिल्ली के कालिंदी कुंज स्थित यमुना नदी के घाट पर श्रद्धालु इकट्ठा हुए थे. लेकिन झाग युक्त जहरीला यमुना का पानी इतना गन्दा और बदबूदार था कि वहां स्नान करना तो छोड़िए, दो मिनट खड़े रहना भी मुश्किल था. हालांकि इस झाग वाले जहरीले पानी के आगे श्रद्धा ज्यादा मजबूत साबित हुई और लोगों ने इसी झाग वाले गंदे और बदबूदार पानी मे डुबकी लगाई और स्नान किया. क्योंकि श्रद्धालुओं का मानना था जैसे कोई बच्चा अपनी बीमार मां को नहीं छोड़ सकता है तो वो कैसे इस रूप में उपजी यमुना मां को छोड़ दें.


गंदे झाग वाले जहरीले पानी में आस्था का स्नान करने वाले श्रद्धालुओं के मन में दिल्ली सरकार के लिए गुस्सा भी था. क्योंकि उनके मुताबिक दिल्ली सरकार ने उन्हें उनके घर के पड़ोस में कोई और ऐसा घाट नहीं उपलब्ध करवाया जो साफ हो और तो और दिल्ली सरकार ने यमुना के घाट पर छठ की पूजा करने पर भी पाबंदी लगा दी थी.


असल बीमारी नहीं पहचान पा रही सरकार


एक्सपर्ट्स के मुताबिक दिल्ली में श्रद्धालु इस झाग से भरी यमुना में छठ का त्योहार मनाने के लिए इस लिए मजबूर हैं क्योंकि सरकारों ने इस विषय पर दावे, वादे और योजनाएं तो कई बनाईं लेकिन इन्हें जमीन पर सही से नहीं उतारा जा सका है. जमीन पर भी ये योजनाएं इस लिए ठीक से नहीं उतर पाई क्योंकि पहले की और आज की दिल्ली की सरकार को यही लगता है कि यमुना के प्रदूषण में मुख्य योगदान Commercial Waste की जगह Domestic Waste का है.


असल मे Domestic Waste नंबर में ज्यादा है लेकिन Commercial Waste में जहरीली गैस की जो मात्रा है उसके सामने घरों से पैदा होने वाला कचरा टिकता ही नहीं है. यानी दिल्ली सरकार बीमारी की पहचान नहीं कर रही और जब तक असली बीमारी पहचानी नहीं जाती, सही इलाज की भी उम्मीद नहीं की जा सकती.


करवाचौथ का चांद हो या छठ के पहले दिन का सूर्य और स्नान, दिल्ली वालों को हर बार मौसम और पर्यावरण की मार झेलनी पड़ती है. करवाचौथ की रात दिल्ली की महिलाओं को आसमान में चांद के दीदार नहीं हुए तो आज छठ के पहले दिन सूर्य और फिर झाग वाले पानी ने छठ को भी अपनी चपेट ले लिया. सवाल ये है कि करवाचौथ से शुरू हुआ और छठ तक पहुंचा त्योहारों में प्राकृतिक बाधाओं का यह सिलसिला अब किस नये त्योहार तक पहुंचेगा?


अब वर्चुअल होती जा रही पूजा


अब Virtual Technology का जमाना है और आने वाले दिनों में आप नहीं बल्कि आपका वर्चुअल अवतार दुनिया में कहीं भी चला जाएगा और आपके बदले में पूजा कर लेगा. उदाहरण के लिए अगर किसी को केदारनाथ या बद्रीनाथ जाना है तो हो सकता है कि आपको दुर्गम रास्तों से होकर जाने की जरूरत ही ना पड़े बल्कि आप अपने वर्चुअल अवतार को ही वहां भेज दें.


वैसे वर्चुअल तरीके से पूजा पाठ की शुरुआत अभी से हो चुकी है, लोग ऑनलाइन पूजा कराने लगे हैं अब पंडित और पुरोहित आपके लिए यज्ञ और हवन करते हैं आप इसका Live Telecast देखते हैं और दूर बैठे बैठे ही पूजा संपन्न हो जाती है. आने वाले दिनों में यही काम आपका वर्चुअल अवतार करने लगेगा.