नई दिल्ली: देश में खतरनाक स्तर पर पहुंच चुके प्रदूषण (Pollution) के बीच दिल्ली स्थित सेंटर फॉर क्रॉनिक डिजीज कंट्रोल (CCDC) ने एक अध्ययन जारी किया है. इसमें बताया गया गया कि जहां राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (SPCB) ने पिछले दो दशकों में अपने काम के दायरे और पैमाने का विस्तार किया है, वहीं बजट और कर्मचारियों के गंभीर अभाव से जूझ रहे हैं. अध्ययन को 'स्‍ट्रेंदेनिंग पॉल्‍यूशन कंट्रोल बोर्ड्स टू अचीव द नेशनल एम्बिएंट एयर क्‍वालिटी स्‍टैंडर्ड्स इन इंडिया' (भारत में राष्‍ट्रीय वातावरणीय वायु गुणवत्‍ता मानकों पर खरा उतरने के लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को मजबूत करना) शीर्षक से जारी किया गया है.


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8 शहरों में किया गया रिसर्च
अध्ययन देश भर में वायु गुणवत्ता मानकों (Air quality standards) को प्राप्त करने के लक्ष्य को बाधित करने वाले अवरोधों को समझने का प्रयास किया गया है. अध्ययन के लिए प्राथमिक अनुसंधान आठ शहरों- लखनऊ, पटना, रांची, रायपुर, भुवनेश्वर, विजयवाड़ा, गोवा और मुंबई में आयोजित किया गया था. इस दौरान केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) और संबंधित राज्यो के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्यों से गहन बातचीत की गई.


प्रदूषण और ओजोन के कारण 12 लाख मौत
एनवायरमेंटल हेल्थ की प्रमुख और पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के सेंटर फॉर एनवायरमेंटल हेल्थ की उपनिदेशक डॉक्‍टर पूर्णिमा प्रभाकरण ने कहा, 'वायु प्रदूषण में ज्यादा समय तक रहना सेहत के लिए जोखिम पैदा करने वाला सबसे बड़ा कारण है. सिर्फ पार्टिकुलेट मैटर (PM 2.5) और ओजोन के संपर्क में आने से  ही हर साल 12 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो जाती है.'


भारत में वायु गुणवत्ता मानक हैं कम कड़े
उन्होंने आगे कहा, 'भारत ने हवा की गुणवत्ता के स्वीकार्य न्यूनतम मानकों को हासिल करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा सुझाए गए अंतरिम लक्ष्यों के अनुरूप खुद अपने राष्ट्रीय वातावरणीय वायु गुणवत्ता मानक (NNAQS) तैयार किए हैं. भारत में वायु गुणवत्ता संबंधी मानक वैश्विक मानकों के मुकाबले कम कड़े हैं, लेकिन इसके बावजूद भारत के ज्यादातर राज्य इन मानकों पर भी खरे नहीं उतर पाते. ऐसे में वायु गुणवत्ता में सुधार की योजनाओं को जमीन पर उतारने में व्याप्त खामियों को समझना बेहद महत्वपूर्ण है.'


अध्ययन में इन बाधाओं का हुआ है खुलासा
अध्ययन में कई तरह के प्रमुख संरचनात्मक, सूचनात्मक और संस्थागत बाधाओं का खुलासा किया गया है, जो मौजूदा नियमों को प्रभावी तरीके से अमल में लाने में बाधा उत्पन्न करते हैं. अध्ययन में बताया गया है कि पिछले दो दशक में राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के दायरे और काम में विस्तार देखा गया है, लेकिन उनके पास इसे संभालने के लिए पर्याप्त बजट और कर्मचारी की कमी है. अध्ययन में कहा गया है कि अक्सर प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों में नेतृत्व का जिम्मा संभाल रहे अधिकारियों  के पास काम को बेहतर ढंग से अंजाम देने के लिए जरूरी विशेषज्ञता की अक्सर कमी होती है और उन्हें आमतौर पर प्रशासनिक पदों पर देखा जाता है.


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