Presidential Election: जब रेस में कहीं नहीं था नाम, तब रामनाथ कोविंद कैसे पहुंचे लोकतंत्र के शिखर तक
Profile of Ram Nath Kovind: कानपुर देहात की तहसील डेरापुर के एक छोटे से गांव में 1 अक्टूबर 1945 को जन्मे थे रामनाथ कोविंद. अपने पांच भाइयों और दो बहनों में सबसे छोटे. परिवार बहुत गरीब था. गुजारा मुश्किल से हो पाता था. वह कोरी जाति से आते हैं, जो उत्तर प्रदेश-गुजरात में अनुसूचित जाति और ओडिशा में अनुसूचित जनजाति के तहत आती है.
President Election: साल था 2017. जुलाई महीने का तीसरा या चौथा हफ्ता था.रायसीना हिल्स पर हलचल तेज थी. दिल्ली में बूंदाबांदी हो रही थी. एक शख्स दो तिहाई से ज्यादा इलेक्टोरल कॉलेज के वोट पाकर देश के सर्वोच्च पद पर पहुंच चुका था.
बतौर राष्ट्रपति उस हस्ती ने अपने पहले भाषण में कहा, 'आज दिल्ली में सुबह से बारिश हो रही है. बारिश का ये मौसम मुझे बचपन के उन दिनों की याद दिलाता है, जब मैं अपने पैतृक गांव में रहा करता था. घर कच्चा था. मिट्टी की दीवारें थीं. तेज बारिश में फूस की बनी छत पानी रोक नहीं पाती थी. हम सब भाई-बहन कमरे की दीवार के पास खड़े होकर इंतजार करते थे कि कब बारिश समाप्त हो. आज देश में ऐसे कितने ही रामनाथ कोविंद होंगे, जो बारिश में भीग रहे होंगे. कहीं खेती कर रहे होंगे, कहीं मजदूरी कर रहे होंगे. शाम को भोजन मिल जाए इसके लिए पसीना बहा रहे होंगे.आज मुझे उनसे कहना है कि परौंख गांव का रामनाथ कोविंद राष्ट्रपति भवन में उनका प्रतिनिधि बनकर जा रहा है.'
जी न्यूज की खास सीरीज महामहिम की आखिरी किस्त में आज हम किसकी बात करने जा रहे हैं, ये बताने की जरूरत नहीं है. ये कहानी है देश के 14वें महामहिम रामनाथ कोविंद की.
उतरप्रदेश में शहर है कानपुर. वहां कानपुर देहात की तहसील डेरापुर के एक छोटे से गांव में 1 अक्टूबर 1945 को जन्मे थे रामनाथ कोविंद. अपने पांच भाइयों और दो बहनों में सबसे छोटे. परिवार बहुत गरीब था. गुजारा मुश्किल से हो पाता था. वह कोरी जाति से आते हैं, जो उत्तर प्रदेश-गुजरात में अनुसूचित जाति और ओडिशा में अनुसूचित जनजाति के तहत आती है. उनके पिता का नाम मैखू लाल और मां का नाम कलावती था. मैखू लाल किराने की दुकान चलाया करते थे और खेती-बाड़ी भी देखते थे. बीच-बीच में वैद्य का काम भी कर लेते थे. मां घर संभालती थीं. कोविंद का जन्म जिस झोपड़ी में हुआ था, वह ढह गई थी. जब पांच साल के थे, तो उनके फूस के घर में आग लग गई और मां की जलने से मृत्यु हो गई.
प्रारंभिक स्कूली शिक्षा के बाद, उन्हें जूनियर स्कूल जाने के लिए हर दिन 8 किमी दूर कानपुर गांव जाना पड़ता था, क्योंकि गांव में किसी के पास साइकिल नहीं थी. उन्होंने कानपुर यूनिवर्सिटी के डीएवी कॉलेज से पहले कॉमर्स और फिर वकालत की डिग्री हासिल की. डीएवी कॉलेज के दौरान उनकी मुलाकात अटल बिहारी वाजपेयी से हुई और दोस्ती हो गई.
वकालत के बाद आए दिल्ली
वकालत करने के बाद रामनाथ कोविंद सिविल सर्विसेज की पढ़ाई करने के लिए दिल्ली आए गए. उन्होंने तीसरे प्रयास में एग्जाम पास भी कर लिया. उन्हें इतने नंबर मिल गए थे कि आईएएस को छोड़कर किसी भी अन्य सेवा में काम कर सकें लिहाजा वे लॉ की प्रैक्टिस करने लगे.
1971 में वह दिल्ली बार काउंसिल के सदस्य बने. 1977 से 1979 तक वे दिल्ली हाई कोर्ट में सरकारी वकील रहे. 1977 से 1978 तक वह तत्कालीन पीएम मोरारजी देसाई के पर्सनल असिस्टेंट थे. 1978 में वह सुप्रीम कोर्ट के जज बन गए और फिर 1980 से 1983 तक सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार के स्थायी वकील बनाए गए. उन्होंने 1993 तक दिल्ली हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस की. एक वकील के तौर पर नई दिल्ली की फ्री लीगल एड सोसाइटी के तहत समाज के कमजोर वर्गों, महिलाओं और गरीबों को मुफ्त मदद दी.
ऐसे हुई राजनीति में एंट्री
रामनाथ कोविंद ने साल 1991 में बीजेपी जॉइन की. वह 1998 से 2002 तक बीजेपी दलित मोर्चा और ऑल इंडिया कोली समाज के अध्यक्ष रहे. पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता के तौर पर भी काम किया. उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को परौंख में अपना पैतृक घर दान में दे दिया था. भाजपा में शामिल होने के तुरंत बाद, उन्होंने यूपी के घाटमपुर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए और बाद में भाजपा के ही टिकट पर भोगनीपुर से चुनाव लड़ा, लेकिन दोबारा शिकस्त मिली. हालांकि इन चुनावों से पहले वह उत्तर प्रदेश से साल 1994 में राज्यसभा सांसद बने. 12 साल यानी 2006 तक वह राज्यसभा सांसद रहे. बतौर सांसद उन्होंने अनुसूचित जातियों/जनजातियों, गृह मामलों, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस, सामाजिक न्याय और अधिकारिता, कानून और न्याय के कल्याण के लिए संसदीय समिति में काम किया.
कोविंद राज्यसभा हाउस कमेटी के अध्यक्ष भी रहे. सांसद के तौर पर उन्होंने अपने करियर के दौरान, सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना के तहत उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में स्कूल भवनों के निर्माण में मदद करके ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा पर ध्यान लगाया. सांसद के रूप में वह स्टडी करने के लिए थाईलैंड, नेपाल, पाकिस्तान, सिंगापुर, जर्मनी, स्विट्जरलैंड, फ्रांस, यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका भी गए.
फिर बने बिहार के गवर्नर
8 अगस्त 2015 को तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने रामनाथ कोविंद को बिहार का राज्यपाल नियुक्ति किया. हालांकि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कोविंद की नियुक्ति की आलोचना की थी. लेकिन दो साल बाद ही जून 2017 में मोदी सरकार ने अप्रत्याशित फैसला लेते हुए रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति उम्मीदवार घोषित कर दिया. रामनाथ कोविंद का नाम इसलिए चौंकाने वाला था क्योंकि उनका नाम रेस में कहीं था ही नहीं. पहले कोविंद के गवर्नर बनने की आलोचना करने वाले नीतीश कुमार ने उनके राष्ट्रपति उम्मीदवार बनने की तारीफ की.
कोविंद ने राज्यपाल पद से इस्तीफा दे दिया. विपक्ष ने राष्ट्रपति उम्मीदवार के तौर पर बाबू जगजीवन राम की बेटी मीरा कुमार को उतारा. कोविंद को 702,044 मूल्य के वोट्स मिले जबकि मीरा कुमार को 367,314 मूल्य के. केआर नारायणन के बाद कोविंद राष्ट्रपति बनने वाले दूसरे दलित थे. साल 1974 में रामनाथ कोविंद ने सविता से शादी की. उनका एक बेटा प्रशांत और बेटी स्वाति है. राष्ट्रपति कोविंद को कई देशों ने अपने सम्मानों से नवाजा है. कोविंद का कार्यकाल 24 जुलाई 2022 को खत्म हो रहा है.
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