पहले से जीती हुई थी लड़ाई, फिर भी पूरी तैयारी से मैदान में उतरे थे प्रधानमंत्री
राफेल लड़ाकू विमान और डोकलाम में चीन से विवाद के मुद्दे पर उन्होंने राहुल गांधी के सवालों का जो जवाब दिया, उसमें जवाब कम और प्रत्यारोप ज्यादा दिखाई दिया.
नई दिल्ली: जिस बात की सबको उम्मीद थी और जिस बात को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुरू से आश्वस्त थे, आखिर वही बात सच भी हुई. मोदी सरकार ने अपने खिलाफ पेश किए गए अविश्वास प्रस्ताव को बड़ी आसानी से गिरा दिया. सरकार के पक्ष में 325 जबकि विपक्ष में 126 वोट पड़े. लेकिन इतने बड़े अंतर की जीत के बावजूद प्रधानमंत्री ने इस लड़ाई को हल्के में नहीं लिया. शुक्रवार को प्रधानमंत्री अपनी प्रिय पोशाक आधी बांह के कुर्ते की जगह एकदम झक्क सफेद फुल आस्तीन के कुर्ते में लोकसभा में मौजूद रहे.
उन्होंने अविश्वास प्रस्ताव के विपक्ष में अपना भाषण सवा नौ बजे रात को शुरू किया और कोई डेढ़ घंटे तक पानी पी पीकर विपक्ष के एक एक सवाल का जवाब दिया. अपने स्वभाव के विपरीत प्रधानमंत्री आज कम से कम 100 पेज के नोट्स लेकर जवाब देने उतरे. उनके नोट्स आंकड़ों से भरे हुए थे.
शुरू के बीस मिनट प्रधानमंत्री ने 18,000 गांवों को बिजली पहुंचाने से शुरू कर जनधन खाते, गैस सिलेंडर, स्वाइल हैल्थ कार्ड, नीम कोटेड यूरिया, एलईडी बल्ब, मुद्रा योजना, इन्नोवेटिव इंडिया, डिजिटल ट्रांजेक्शन, ईज ऑफ डुइंग बिजनेस तक हर योजना के बारे में आंकड़ों की बरसात के साथ जवाब दिया.
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जब एक राउंड आंकड़े उन्होंने पढ़ डाले तब वे अपनी पुरानी रंगत में आए. उन्होंने अब अपने भाषण की दिशा प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों तरह से राहुल गांधी की तरफ मोड़ दी. राफेल लड़ाकू विमान और डोकलाम में चीन से विवाद के मुद्दे पर उन्होंने राहुल गांधी के सवालों का जो जवाब दिया, उसमें जवाब कम और प्रत्यारोप ज्यादा दिखाई दिया. पीएम ने आज भी नहीं बताया कि राफेल विमान की कीमत असल में कितनी है और न उन्होंने यह बताया कि डोकलाम में वस्तुस्थिति असल में है क्या. इसके उलट उन्होंने राहुल गांधी के सवाल पूछने की मंशा पर ही सवाल उठा दिए.
वे यहीं नहीं रुके, राहुल गांधी के चौकीदार के भागीदार बन जाने के आरोप को भी उन्होंने पहले अपने हिसाब से पूरी तरह मोड़ा और फिर पलटकर राहुल पर ही दाग दिया. पीएम के आंख से आंख न मिलाने के राहुल के आरोप पर तो मोदी वीर रस के कवि की तरह दिखाई दिए. उन्होंने अपना रूपक गढ़ते हुए कहा कि राहुल नामदार हैं और मोदी कामदार हैं. कामदार आदमी नामदार आदमी से क्या आंखे मिलाएगा. फिर उन्होंने सुभाष चंद्र बोस से लेकर शरद पवार तक का उदाहरण देकर कहा कि जिसने आप से आंख मिलाई, उसका क्या हश्र हुआ, यह सब जानते हैं.
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यही नहीं, दिनभर संसद में व्यस्त रहने के बावजूद प्रधानमंत्री को पता था कि देश के समाचार चैनलों पर दिनभर संसद की किन चीजों को हाइलाइट किया गया है. राहुल गांधी के आंख से इशारा करने की दिनभर वायरल हुई तस्वीरों और वीडियो को मोदी ने पूरे नाटकीय ढंग से सदन में पेश किया और कहा कि वह ऐसा नहीं कर सकते.
देश में बैंकों के संकट के लिए उन्होंने अपने चार साल के कार्यकाल की किसी तरह की जिम्मेदारी मानने के बावजूद एक बार फिर कांग्रेस की पुरानी सरकारों को जिम्मेदार बताया. मोदी ने कहा कि डिजिटल इंडिया से बहुत पहले कांग्रेस ने टेलीफोन बैंकिंग शुरू कर दी थी. इस बैंकिंग में सत्ता प्रतिष्ठान से आने वाले फोन काल पर गलत लोगों को लोन दिए गए और इससे बैंकों का एनपीए बढ़ा.
मोदी ने सबसे ज्यादा मजेदार जवाब बेरोजगारी को लेकर दिया. उन्होंने राष्ट्रीय सेंपल सर्वे ऑर्गनाइजेशन के सरकारी आंकड़ों को खारिज करते हुए रोजगार की अपनी ही परिभाषा दी. इस हाइपोथैटिकल विमर्श में प्रधानमंत्री ने बेरोजगारी और रोजगार के पारंपरिक मायने ही बदल दिए. अब तक का चलन यही है कि अगर कोई पात्र व्यक्ति कोई डिग्री हासिल कर लेता है तो वह नौकरी पाने से पहले रोजगार कार्यालय में खुद को बेरोजकार के तौर पर दर्ज कराता है. अगर इस व्यक्ति को नौकरी मिल जाती है तो उसका नाम बेरोजगारों की सूची से हटा दिया जाता है. लेकिन प्रधानमंत्री ने कहा कि अगर कोई एलएलबी करके वकील बनता है तो उनमें से कम से कम 60 फीसदी लोग अदालत में प्रेक्टिस करने जाते हैं. ये साठ लोग अपने साथ कम से कम दो और लोगों को रोजगार देते हैं.
इसी तरह उन्होंने चार्टर्ड एकाउंटेंट से जुड़े रोजगार की भी गणना की. इसके बाद उन्होंने सबको चौंकाते हुए बताया कि जो नए कमर्शियल वाहन देश में बिकते हैं, उनका मतलब है कि हर वाहन पर कम से कम दो लोगों को रोजगार मिल रहा है. इस तरह के संपूर्ण गणित के साथ प्रधानमंत्री ने साबित किया कि देश में एक करोड़ रोजगार पिछले साल पैदा किए गए.
जाहिर है रोजगार की इस मोदीनॉमिक्स पर आने वाले समय में देश और दुनिया के अर्थशास्त्री अपनी राय देंगे. और विपक्ष को जो कहना है, वह कहेगा ही.
मोदी इतनी तैयारी के साथ आए थे कि जब उन्होंने अपनी मोटी नोट्स बुक का आखिरी पन्ना तक पलट लिया तभी अपने भाषण को अंत की ओर ले गए. पूरे भाषण में उन्होंने आंकड़ों के साथ यही समझाया कि वे देश का विकास करना चाहते हैं और विपक्ष विकास को रोकने के लिए उन्हें रोकना चाहता है.
मोदी का आज का भाषण उस दौर की याद दिला गया जब इंदिरा गांधी कहा करती थीं कि वे गरीबी हटाना चाहती हैं और विपक्ष उन्हें हटाना चाहता है. इंदिरा की तरह मोदी को भी अपनी लोकप्रियता पर पूरा भरोसा है. इसीलिए उन्होंने विपक्ष के लिए कामना की कि उन्हें कामयाबी मिले और 2024 में विपक्ष फिर से उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आए.