Who was Rani Durgavati: देश की महानतम वीरांगनाओं में रानी दुर्गावती का नाम सबसे पहले याद किया जाता है. उन्होंने मातृभूमि और आत्मसम्मान की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया. उनके लिए कहा जाता है- 'वह तीर थी, तलवार थी, भालों और तोपों का वार थी, फुफकार थी, हुंकार थी, शत्रु का संहार थी!'


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बचपन से ही घुड़सवारी का शौक


बचपन से ही घुड़सवारी, तलवारबाजी, तीरंदाजी जैसी युद्ध कलाओं का हुनर रखने वाली रानी दुर्गावती के नाम से ही दुश्मन कांप जाते थे.अकबर को युद्ध में धुल चटाने वाली वीरांगना का सामना करना किसी भी दुश्मन के लिए आसान नहीं था. रानी दुर्गावती का जन्म दुर्गा अष्टमी के दिन 24 जून को 1524 को बांदा जिले में हुआ. 


वह राजपूत राजा कीर्तिसिंह चंदेल की इकलौती संतान थीं. उनका विवाह राजा दलपत शाह से हुआ था. उनके पास गोंड वंशजों के 4 राज्यों, गढ़मंडला, देवगढ़, चंदा और खेरला, में से गढ़मंडला पर अधिकार था. विवाह के महज सात साल बाद ही राजा दलपत का निधन हो गया. 


कम उम्र में ही हो गईं विधवा


पति के निधन के समय दुर्गावती का पुत्र केवल पांच साल का था. इस दौरान रानी को अपना साम्राज्य और बेटा दोनों को संभालना था. उनका कार्यकाल काफी लंबा रहा और अपने निधन से पहले उन्होंने अपनी सभी जिम्मेदारी बखूबी निभाई.
दुर्गा अष्टमी के दिन जन्मीं वीरांगना रानी दुर्गावती की 5 अक्टूबर को जयंती है. वैसे तो उनकी बहादुरी के कई किस्से हैं, लेकिन उनकी मृत्यु से जुड़ी कहानी सबसे अलग है.


दरअसल, 1562 में जब अकबर ने मालवा को मुगल साम्राज्य में मिला लिया और रीवा पर उनके शागिर्द का कब्जा था. तब मुगल सेना ने गोंडवाना पर हमला किया, लेकिन युद्ध में रानी दुर्गावती की जीत हुई. इसके बाद साल 1564 में मुगलों ने फिर से उनके किले पर हमला बोला.


मुगल सेना से जमकर लड़ीं रानी


रानी अपने हाथी पर सवार होकर युद्ध करने के लिए निकलीं. पहले युद्धभूमि में उन्होंने मुगल साम्राज्य के सिपाहियों को खदेड़ दिया था, लेकिन वो गंभीर रूप से घायल हो गई थीं. चारों ओर से दुश्मनों से घिरी रानी को इस बात का एहसास हो चुका था कि अब उनका जिंदा रहना मुश्किल है, तब उन्होंने अपने एक सैनिक से कहा कि वह उन्हें मार दे. लेकिन सैनिक ने ऐसा करने से इनकार कर दिया. 


रानी ने दुश्मनों के हाथों मरने से पहले खुद को ही मारना बेहतर समझा. उन्होंने बहादुरी से अपनी तलवार खुद ही अपने सीने में मार ली और शहीद हो गईं. आज भी देश में 24 जून यानी उनके शहादत के दिन को 'बलिदान दिवस' के तौर पर मनाया जाता है.


(एजेंसी आईएएनएस)