Rwandan genocide: 7 अप्रैल 1994 को ऐसा नरसंहार हुआ जिसके दर्द की गूंज आज भी लोगों के जेहन में है. रवांडा नरसंहार बीसवीं सदी का सबसे बड़ा नरसंहार माना जाता है. जिसमें 100 दिन में ही पूरे देश में करीब आठ लाख लोगों की मौत हो गई. 

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रवांडा नरसंहार 
 6 अप्रैल 1994 में रवांडा के प्रेसिडेंट हेबिअरिमाना और बुरंडियन के प्रेसिडेंट सिप्रेन की हवाई जहाज परबोर्डिंग के दौरान हत्या कर दी गई थी. उस समय हुतु समुदाय की सरकार थी और उन्हें लगा कि यह हत्या तुत्सी समुदाय के लोगों ने की है. जिसके दूसरे दिन ही पूरे देश में  नरसंहार शुरू हो गया. हुतु सरकार के अपने सैनिक भी इसमें शामिल हो गए.

तुत्सी समुदाय को मारने का आदेश 
तत्कालीन हुतु सरकार ने आम जनता के साथ अपने सैनिकों को भी तुत्सी समुदाय के लोगों को मारने का आदेश दे दिया. इस नरसंहार में कुछ ही दिन में 80000 से भी ज्यादा तुत्सी समुदाय के लोगों को मार दिया गया था. कई देश छोड़कर भाग गए थे. नरसंहार करीब 100 दिन तक चला, जिसमें मौत का आंकड़ा 10 लाख के करीब पहुंचा था.  इसमें सबसे ज्यादा मरने वालों की संख्या तुत्सी समुदाय के लोगों की ही थी. पहले भी इन दोनों समुदायों के बीच वर्चस्व को लेकर हिंसक झड़प होती रही थीं, जो इस भयानक नरसंहार के रूप में सामने आई. इससे पहले इस नरसंहार के बारे में जाने सबसे पहले थोड़ा रवांडा का इतिहास जानते हैं. जिससे आपको समझने में आसानी होगी.
  
जानें रवांडा का इतिहास 
1918 से पहले रवांडा के हालात सामान्य थे. गरीबी में देश चल रहा था लेकिन कोई हिंसा नहीं थी. इसके बाद 1918 में बेल्जियम ने रवांडा पर कब्जा कर लिया. जिसके बाद बहुत सारे नियम कानून और योजनाएं लागू होने लगी.
जैसे:


  • - बेल्जियम की सरकार ने रवांडा के लोगों की पहचान के लिए पहचान-पत्र जारी करवाए.

  • - इस पहचान-पत्र में रवांडा की जनता को तीन जातियों (हुतु, तुत्सी और तोवा) में बांटा गया.

  • - विभाजन में हुतु समुदाय को रवांडा की उच्च जाति बताते हुए उन्हें सरकारी सुविधाएं देनी शुरू कर दीं.

  • - इससे तुत्सी समुदाय भड़क उठा. इसके बाद ही दोनों समुदायों के बीच अक्सर हिंसक झड़प शुरू हो गई.


1962 में रवांडा हुआ आजाद, बना देश 
1973 में हुतु समुदाय के ‘हेबिअरिमाना’ रवांडा के प्रेसिडेंट बने. 6 अप्रैल 1994 को उनके प्लेन पर हमला हुआ, जिसमें उनकी मौत हो गई. यही घटना रवांडा के नरसंहार का कारण बनी. इस जनसंहार में रवांडा की लगभग 20 प्रतिशत जनसंख्या खत्म हो गई थी.

अब देश के हालात धीरे-धीरे सुधर रहे हैं. कई देशों की समाज सेवी संस्थाएं यहां काम कर रही हैं. वर्तमान सरकार को भी पश्चिमी देशों से आर्थिक मदद मिल रही है, जिससे कि देश का विकास हो सके. और आम लोग अपना जीवन यापन कर पाएं. 


नरसंहार को हो गए 30 साल
7 अप्रैल को अफ्रीकी देश रवांडा में 1994 में हुए खौफनाक नरसंहार (Rwanda Genocide) को 30 साल पूरे हो गए. पूरी दुनिया में सबने अपने हिसाब से इसको याद किया. भारत ने रवांडा के साथ खड़े होने और मारे गए लोगों की याद में एक अनोखी पहल की. भारत ने कुतुब मीनार को रवांडा के झंडे के रंग की रोशनी से रंग दिया. यही वजह रही कि 7 अप्रैल को दिल्ली का कुतुब मीनार रवांडा के झंडे के रंग की रोशनी में नहाया हुआ दिखा.


भारत सरकार ने कुतुब मीनार को रवांडा के झंडे के रंग की रोशनी में रंग कर रवांडा की सरकार और वहां के लोगों के प्रति भारत सरकार और यहां के लोगों की सहानुभूति और एकजुटता दिखाई. इस मौके पर विदेश मंत्रालय के सचिव दम्मू रवि ने x पर लिखा कि रवांडा की राजधानी किगाली में नरसंहार के 30वें स्मरणोत्सव में भारत अपनी एकजुटता प्रदर्शित कर रहा है. ''रवांडा के लोगों के साथ एकजुटता दिखाते हुए, भारत ने आज कुतुब मीनार को रोशनी से सजाया है. जिससे रवांडा में तुत्सी के खिलाफ 1994 के नरसंहार पर संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय चिंतन दिवस के तौर पर मनाया गया.


रवांडा रके राष्ट्रपति ने कब्रों पर चढ़ाया फूल
रवांडा के राष्ट्रपति पॉल कागामे ने रविवार को राजधानी किगाली में सामूहिक कब्रों पर पुष्पांजलि अर्पित करके स्मरणोत्सव का नेतृत्व किया. इस कार्यक्रम में दक्षिण अफ़्रीकी नेताओं के साथ-साथ इथियोपिया के गणमान्य व्यक्तियों सहित कई विदेशी गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे. पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन भी इसमें मौजूद थे. उन्होंने इस नरसंहार को अपने प्रशासन की सबसे बड़ी विफलता कहा था.
बता दें कि विदेश मंत्रालय के सचिव दम्मू रवि, अतिरिक्त सचिव (पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीका) के साथ 7-12 अप्रैल तक रवांडा, युगांडा और केन्या की यात्रा पर हैं. जहां दोनों देशों के बीच कई अहम मुद्दों पर बातचीत होगी.