Ajmer Sharif Dargah: राजवर्धन सिंह परमार ने दावा किया है कि अजमेर शरीफ दरगाह एक शिव मंदिर था. अजमेर शरीफ एक तीर्थस्थल है, जहां ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह है. यहां लोग मुरादें लेकर आते हैं और उसके पूरी होने पर मुईनुद्दीन चिश्ती की कब्र पर चादर चढ़ाते हैं. कहते हैं कि जो भी ख्वाजा मुईनुद्दीन की दरगाह पर आता है, उनको यहां प्यार, मोहब्बत, शांति और इंसानियत का पैगाम दिया जाता है. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING


मुईनुद्दीन हसन चिश्ती का जन्म 1141-42 ई. में ईरान के सिज़िस्तान में हुआ था. वहीं, भारत में चिश्ती सिलसिले की स्थापना ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के द्वारा की गई थी, जो सूफीवाद फैलाने के लिए भारत आए थे. 



ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती ने यहां आकर कई चमत्कार किए और ऐसे में लोगों में उनके प्रति जिज्ञासा आने लगी. वहीं, लोग अपनी समस्याओं को लेकर उनके पास आने लगे. मोईनुद्दीन चिश्ती को निजामुद्दीन औलिया के बाद दूसरा सबसे बड़ा सूफी संत माना गया. वह सूफीवाद भाईचारे की शिक्षा देते थे, उस समय यहा पर पांच बार अजान होती थी और नमाज पढ़ी जाती थी. 



वहीं, ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती द्वारा दी जाने वाली शिक्षाओं से  मुगल बादशाह अकबर काफी खुश थे. कहते हैं कि बच्चे की मुराद लेकर अकबर 437 किमी. पैदल चलकर ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर आए थे, जिसके बाद उनके घर जहांगीर पैदा हुआ था. 


कहा जाता है कि  ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती ने खुद को कमरे के अंदर बंद कर लिया था. जिस जगह पर रोज नमाज पढ़ते थे वही, वे अल्लाह को प्यारे हुए. वहीं, लोगों ने उसी जगह पर उनको दफनाकर कब्र बना दी. 



इसके बाद यहां पर भव्य मकबरा बना, जिसे 'ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती का मकबरा' कहते हैं. इस दरगाह को हुमायूं द्वारा बनवाया गया था. इसके बाद हैदराबाद के निजाम ने इसका गेट बनवाए. अजमेर दरगाह के पानी को काफी पवित्र माना जाता है. यहां पर जन्नती दरवाजा है, जो साल में चार बार खुलता है.