Ajmer: कहने को अजमेर स्मार्ट सिटी घोषित किया गया है, लेकिन इसे अजमेर का दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि आज तक इस एतिहासिक शहर का ड्रेनेज सिस्टम स्मार्ट नहीं किया जा सका है. नतीजा हर बरसात में यह शहर जलभराव के नासूर को भुगतने पर मजबूर होता है. शहर के निचले इलाकों में हालात बद से बदतर हो जाते हैं, लेकिन इस लाइलाज नासूर का मवाद जब आवश्यक समझी जाने वाली सेवाओं के दरवाजे पर बदबू मारता नजर आता है, तो सोचने पर मजबूर होना पड़ता है कि क्या यही स्मार्ट सिटी अजमेर है. 


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यह नजारा है अजमेर संभाग के सबसे बड़े सरकारी जे एल एन अस्पताल के बाहर का है. कहने को अजमेर स्मार्ट सिटी है, लेकिन कितना स्मार्ट है अजमेर यह बताने के लिए यह नजारे काफी है. इस अस्पताल में जाने के तीन रास्ते है और दुर्भाग्य से तीनों ही रास्तों पर जिस तरह से थोड़ी सी बरसात में पानी का सैलाब उमड़ता है.


इसके चलते मरीज और उनके परिजनों को भारी परेशानी उठानी पड़ती है. पैदल आने वाले मरीजों की मुसीबत इस दौरान कितनी बढ़ती है यह बताने की जरूरत नहीं है. नालो का गंदा पानी बिमारियों का इलाज करने वाले इस अस्पताल के लिए लाइलाज समस्या बन चुका है. यूं तो सफाई व्यवस्था का जिम्मा अजमेर नगर निगम का है. हर साल नालों की सफाई व्यवस्था के लिए करोड़ों रुपये के ठेके भी जारी होते है, लेकिन ओपचारिकता निभाने के प्रयास में समस्या जस की तस बनी रहती है. 


ऐसे ही हालात जे एल एन अस्पताल के अंडर के भी है. आपातकालीन वार्ड के बाहर भी जलभराव बड़ी समस्या है, तो कई वार्ड ऐसे हैं, जो थोड़ी सी बरसात में ही तालाब बन जाते हैं. स्मार्ट सिटी के नाम पर करोड़ो रुपये की योजनाएं बनाने वालो का ध्यान इस अस्पताल और इसके ड्रेनेज सिस्टम को सुधरने की तरफ कब जाएगा. फिलहाल कहना मुश्किल है.  


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