Ajmer Holi 2024: शहर के भैरू खजेड़े से अजमेरी गेट तक का रास्ता, अपार जन सैलाब, आओ बादशाह-आओ बादशाह... के गूंजते स्वर, भीड़ के बीच ढोल व चंग की थाप पर थिरकते बीरबल के कदम और उनके पीछे अबीर खर्ची लुटाते बादशाह टोडरमल की सवारी.


शहर के भैरू खजेड़े से अजमेरी गेट तक बीर खर्ची लुटाते रहे


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यह अनोखा दृश्य था मंगलवार को निकाली गई बादशाह की सवारी का. बादशाह की सवारी को देखने के लिए हजारों की संख्या में दर्शको का जन सैलाब उमड़ पड़ा. अपार भीड़ में शामिल लोग ही नहीं बल्कि खिड़कियों, झरोखों और छतों पर खड़े शहरवासी भी बादशाह द्वारा लुटाई जा रही खर्ची के लूटने के लिए आतुर दिखाई दे रहे थे.


हर तरफ गूंजा आओ बादशाह..आओ बादशाह


शाम के समय भैरू खेजड़े से रवाना हुई बादशाह की यह सवारी गुलाल उड़ाती हुई एकता सर्किल पहुंची, सवारी के आगे ढोल ढमाकों एवं चंग की थाप पर थिरकते बीरबल बने मुकेश उपाध्याय के नृत्य ने हजारों दर्शको का मन मोह लिया. दोनों हाथों से गुलाल की पुड़िया बांधकर दर्शकों की ओर फेंक रहे थे. दर्शक उनकी ओर से लुटाई जा रही अबीर खर्ची को लूटने के लिए बेताब थे.


बादशाह की सवारी एकता सर्किल से महादेव की छत्री, अजमेरी गेट, सुभाष चौक होते हुए जिला कलेक्टर कार्यालय पहुंची. जहां पर बादशाह ने जिला कलेक्टर उत्सव कौशल के साथ जमकर गुलाल खेली. इसके बाद प्रशासन की ओर से बादशाह की सवारी का भावभीनी स्वागत किया.


बादशाह ने जिला कलेक्टर उत्सव कौशल को प्रशासनिक व्यवस्था का फरमान दिया. इस दौरान बादशाह मेला संयोजक, अध्यक्ष सहित अनेक पदाधिकारी मौजूद थे. तत्पश्चात वहां से यह सवारी अग्रसेन भवन के लिए रवाना हो गई और अग्रसेन भवन पहुंचकर बादशाह मेले का विधिवत समापन किया गया. मेले के दौरान कानून एवं शांति व्यवस्था बनाएं रखने के एसपी नरेन्द्रसिंह, एसडीएम गौरव बुढ़ानिया, एएसपी राजेश कसाना, सिटी थानाधिकारी नाहरसिंह मय जाप्ते के तैनात रहे.


1851 से चली आ रही परंपरा, बादशाह की गुलाल से मिलती है बरकत



राजा महाराजा के समय से चला आ रहा बादशाहत का क्रम आज भी ब्यावर में कायम है. फर्क सिर्फ इतना है कि पहले राजा की प्रजा के मध्य हीरे जवाहरात लुटाये जाते थे और आज जमकर गुलाल लुटाई जाती है. लाल रंग की चूनर ओढा आसमान हो या जमीन पर बिछी लाल रंग की चादर.


लाल रंग में रंगा शहर ब्यावर में बादशाह मेले की पहचान है. सन् 1851 से चली आ रही परंपरा के तहत मुगल बादशाह अकबर के समय में उनके नवरत्नों में से एक टोडरमल को ढाई दिन की बादशाहत मिलने की याद ताजा करने के उद्वेश्य से होली के तीसरे दिन ब्यावर में बादशाह मेला भरा जाता है.


ऐसी किवदंती प्रचलित है कि एक बाद बादशाह अकबर शिकार के उद्वेश्य से जंगल में गए, रास्ता भटक जाने के कारण वह काफी आगे निकल गए. उन्हे डाकुओं ने घेर लिया ओर जान से मारने की धमकी दी. उस समय बादशाह के साथ सेठ टोडरमल भी थे, जिन्होंने अपने वाकचातुर्य से न केवल बादशाह को डाकुओं के चंगुल से छुडवाया बल्कि उनके माल असबाब को भी लूटने से बचा लिया. अकबर ने इस पर तोहफे के रुप में सेठ टोडरमल को ढ़ाई दिन की बादशाहत बख्शी. आम जनता को धनवान और समर्थ बनाने के लिये ढ़ाई दिन की बादशाहत की याद को संजोए रखने के लिये ढाई घंटे तक बादशाह की सवारी ब्यावर शहर में निकाली जाती है.


अग्रवाल समाज का बादशाह, ब्राह्मण समाज का बनता है बीरबल


साल 1851 से ब्यावर में शुरु हुए बादशाह मेले में बादशाह को सजाने संवारने का कार्य माहेश्वरी समाज के लोगों द्वारा किया जाता है. इसके अलावा भांगयुक्त ठंडाई बनाने का कार्य जैन समाज के निर्देशन में उनका सेवक करता है और इसका वितरण शहर के प्रमुख बाजारो में प्रसाद के रुप में किया जाता है.


मेले की पूर्ण व्यवस्थाओं की जिम्मेदारी अग्रवाल समाज द्वारा निभाई जाती है. बादशाह मेले में गुलाल की बोली लगाकर बादशाह का चयन किया जाता है, जो कि अग्रवाल समाज में से किसी सदस्य को बनाया जाता है, जिस सदस्य द्वारा सबसे ज्यादा बोली लगाई जाती है, उसी को बादशाहत प्रदान की जाती है. टोडरमल के मित्र बीरबल मुगल साम्राज्य में अपने मित्र को प्रथम हिन्दू शासक देख कर पगला से गए थे ओर बादशाह की सवारी के आगे नृत्य करते हुए चल रहे थे.


नृत्य की यह परंपरा आज भी अनवरत चली आ रही है जिसमें ब्राह्मण सदस्य द्वारा बीरबल का रुप धारण कर बादशाह की सवारी के आगे नृत्य किया जाता है. नगर के प्रशासनिक अधिकारी कार्यालय परिसर में बादशाह उपखंड अधिकारी से गुलाल खेलते है ओर नगर विकास का आदेश देते है.
 


तदन्तर उपखंड अधिकारी बादशाह का सम्मान करते हुए राजकीय कोष से बीरबल को नारीयल व मुद्रा के रुप में नजराना पेश करते है। यह आदेश ब्यावर के संस्थापक कर्नल डिक्शन के समय से प्रभावी है। मान्यता है कि बादशाह द्वारा लुटाई जाने वाली गुलाल घर में रखने से सुख समृद्धि में बढ़ोतरी होती है, यही कारण है कि आओ बादशाह... आओं बादशाह संगीत की धून के साथ लोगों द्वारा बादशाह का इंतजार किया जाता है ओर बादशाह से गुलाल लेकर घर के मंदिर में रखी जाती है.

अग्रवाल समाज ब्यावर की ओर से आयोजित किए जाने वाले बादशाह मेले की सवारी में मणों गुलाल-रंग उड़ाई गई. जिससे बादशाह की सवारी के मार्ग में गुलाल की परत जम गई. भैरू खेजड़े से लेकर जिला कलेक्टर कार्यालय तक की सड़क पर गुलाल ही गुलाल नजर आई. बादशाह मेले में शरीक होने वाला हर मेलार्थी लाल, गुलाबी गुलाल में लिपटा नजर आया. इस दौरान महावीर बाजार, एकता सर्किल, अग्रसेन बाजार, अजमेरी गेट, सुभाष सर्किल सहित संपूर्ण न्यायालय परिसर गुलाल से सराबोर हो गया.