Ajmer: अजमेर के बोराज गांव में एक तरफ बरसात आसमानी आफत बनकर बरस रही है, तो दूसरी तरफ अजमेर के शिक्षा विभाग की लापरवाही से मासूमों की जिंदगी पर मौत का साया मंड़रा रहा है. बोराज गांव के राजकीय महात्मा गांधी इंग्लिश मीडियम स्कूल में बच्चे जान हथेली पर रखकर पढ़ाई करने को मजबूर हैं. इस स्कूल का भवन आजादी के बाद 1950 में बना था और शायद उसके बाद स्कूल भवन की तरफ शिक्षा विभाग के किसी अधिकारी ने देखने की जरूरत नहीं समझी, नतीजा आज यह स्कूल काल बनकर उन बच्चों को निगलने की कोशिश में लगा हुआ है जो बच्चे यहां पढ़कर अपना भविष्य सुधारने के सपने देख रहें हैं. जर्जर हो चुके स्कूल भवन के अधिकांश कमरे इस हालत में पहुंच गए हैं कि यह कभी भी मासूम बच्चों की लाशों का ताबूत बन जाएंगे. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

इस भवन के अधिकांश कक्षा कक्षों की छत जर्जर हो चुकी है, पुरानी पट्टियां अब दम तोड़ने पर मजबूर हैं और कई कक्षा कक्ष तो ऐसे हैं जिनकी छत पिछली बरसातों में धराशाई हो चुकि है, लेकिन गनीमत यह रही कि यह हादसे तब हुए, जब इन कमरों में कोई बच्चा नहीं था. इसी तरह के हादसे होने की आशंका अब अन्य कमरों में भी है, लेकिन शिक्षा विभाग है कि धृतराष्ट्र बना हुआ है, उसकी आंख पर बंधी काली पट्टी खुलने का नाम नहीं ले रही है.


स्कूल में मौत का सामान चारों तरफ बिखरा हुआ नजर आता है. बरसात के इस मौसम में भी बिजली के नंगे पड़े तार हादसे को निमंत्रण दे रहें हैं, तो वहीं जर्जर हो चुके भवन के साथ ही स्कूल का मैदान भी जलभराव का केंद्र बना हुआ है. ऐसी स्थिति में कोई भी बड़ा हादसा कब हो जाए कहना मुश्किल है. स्कूल के हालात इतने विकट है कि एक एक कमरे में 2-2 कक्षाओं का संचालन करना स्कूल प्रबंधन की मजबूरी बन चुका है.


इस पूरे मामले में जब स्कूल की प्रिंसिपल से जब बात की गई तो उन्होंने माना कि 1950 में बना यह भवन पूरी तरह जर्जर हो चुका है. पिछले सालों में इसके कई कमरे धराशाई हो चुके हैं लेकिन उन्हें अभी भी लगता है कि अजमेर का शिक्षा विभाग इस तरफ ध्यान देगा. उनके अनुसार अब क्योंकि इस स्कूल को महात्मा गांधी इंग्लिश मीडियम स्कूल घोषित कर दिया गया है तो सरकारी बजट से कई कमरे बनेंगे जो बच्चों के लिए राहत की बात होगी.