Ajmer: आदि-अनादि काल से भारतीय संस्कृति में रूप चतुर्दशी महत्व माना जाता रहा है. दीपावली (Deepawali) से पहले आने वाली यह चतुर्दशी के इस खास पर्व को सुहागन चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है. महिलाएं इस पर्व पर खास तौर से अपने रूप को निखारने के जतन करती है.


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धार्मिक नगरी पुष्कर (Pushkar) में भी महिलाओं को सजते-संवरते देखकर सात समंदर पार से आई विदेशी बालाएं भी अपने आपको रोक नहीं सकी और उन्होंने भी भारतीय संस्कृति में रूप चतुर्दशी का महत्व समझकर अपने आपको सजाने-संवारने के लिए ब्यूटी पार्लर का रूख किया, जहां पर न केवल इन विदेशी महिलाओं ने श्रृंगार करवाया बल्कि भारतीय परिधान को धारण करते हुए सोलह श्रृंगार भी किये. 


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भारतीय संस्कृति के धार्मिक ग्रंथों के कहा जाता है कि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन अत्याचारी नरकासुर राक्षस का वध कर उसके चंगुल में बंदी बनाई गई 17 हजार 1 सौ रानियों को भगवान कृष्ण ने मुक्त कराया था. तब इन रानियों ने चंगुल से मुक्त होने के बाद सम्मान का अनुभव किया और जड़ी बूटियों से स्नान कर श्रृंगार किया था. तब से स्त्रियां विशेष श्रृंगार कर अपने पति की दीर्घायु की कामना करते हुए व्रत भी रखती हैं. इसी कारण से रूप चतुर्दशी पर सजा का विशेष महत्व है. साथ ही पौराणिक ग्रंथों के लिखित राजा रंतिदेव और यमदूत की कथा में वर्णित प्रसंग के अनुसार आज के दिन ब्राह्मण भोजन करवाने तथा दक्षिण दिशा में घर के बाहर दीया जलाने से नर्क गामी पापों से मुक्ति मिलती है. 


विदेशों से आई युवतियों ने भी किया श्रृंगार
पाश्चात्य संस्कृति से भारत की संस्कृति को आत्मसात कर रही यह विदेशी पर्यटक डेनबरगा ऑस्ट्रेलिया से भारत भ्रमण के लिये आयी थी. डेनबरगा ने बताया कि वह पिछले कुछ वर्षों से लगातार भारत आ रही है इसी कारण से उसे भारत के त्योहारों के बारे में जानकारी मिली और इन्हें उत्साह के साथ बनाने का अवसर प्राप्त हुआ. विदेशी महिला ने सजने -संवरने के बाद अपने इस अनुभव बारे में बताया की यहां आने पर उन्हें इस त्योहार के बारे में जानकारी मिली थी. हमने भी भारतीय धार्मिक रीति-रिवाजों के अनुसार श्रृंगार किया है. हमें यह सब करके बहुत अच्छा लगा. यह एक अविस्मरणीय क्षण थे, जिन्हें वो कभी भूल नहीं पाएंगी.


Reporter- Manveer Singh chundawat