Rajasthan के इस जिले में धनोप मातेश्वरी का मंदिर, ऐसे की जाती है इनकी विशेष पूजा
फूलियाकलां तहसील में जनआस्था के केंद्र धनोप माताजी शक्तिपीठ अपनी चमत्कारिक सिद्घी के कारण क्षेत्र में ख्याति प्राप्त कर चुका है.
Bhilwara: शारदीय नवरात्रि (Navratri 2021) शक्ति उपासना का महत्वपूर्ण समय होता है. देवी के जयकारों से धनोप माता (Dhanop Mata Mandir) परिसर का समस्त वातावरण अभिभूत हो जाता है. पूज्या मां भगवती श्री श्री धनोप मातेश्वरी (Maa Bhagwati Sri Sri Dhanop Mateshwari) का प्राकट्य बृहद विष्णुपुराण के अनुसार 6 हजार वर्ष पूर्व हुआ, जिनका पुराण में राजा धुंध की कुलदेवी मां जगदीश्वरी के नाम से वर्णन मिलता है.
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फूलियाकलां तहसील में जनआस्था के केंद्र धनोप माताजी शक्तिपीठ अपनी चमत्कारिक सिद्घी के कारण क्षेत्र में ख्याति प्राप्त कर चुका है. धनोप माता मंदिर फूलियाकलां उपखंड मुख्यालय से पश्चिम की ओर बिजयनगर रोड़ पर और शाहपुरा गुलाबपुरा हाईवे 148डी पर सांगरिया चौराहा से 6 किलोमीटर उत्तर की ओर स्थित है. यहां लगे शिलालेख के मुताबिक, 1150 में राजा धुंध हाड़ौती क्षेत्र से इस ओर सेना सहित जा रहा था. उन दिनों नवरात्रि होने से इस स्थान पर उन्होंने विश्राम किया और देवी की प्रतिष्ठा करके पूजा अर्चना की. धनोप माता राजा धुंध की कुल देवी थी.
प्रति दो माह के अंतराल में पुजारी बदल जाता है
आजादी के पूर्व धनोप गांव शाहपुरा के नरेश सुदर्शन देव के चचेरे भाई महाराज शत्रुंजयदेव की जागीर था. यहां मंदिर में विशेष बात है कि माता की सेवा करने वाले पुजारी को अपने ओसरे के दौरान अखंड ब्रह्मचर्य नियमों के साथ वानप्रस्थी जीवन व्यतीत करना होता है. यहां तक कि क्षोर कर्म और साबुन से नहाना-धोना भी वर्जित होता है और प्रति दो माह के अंतराल में पुजारी बदल जाता है. ऐसी परंपरा यहां लंबे समय से चली आ रही है और पूजा अर्चना का काम धनोप के पंडा परिवार ही करते है. धनोप मंदिर में अभी श्रीअष्टभुजा, श्रीअन्नपूर्णाजी , श्रीचामुंडाजी , श्रीबिश्वनजी और श्रीकालिकाजी की पांच प्रतिमाएं पूर्वाभिमुख विराजित हैं. इनके ठीक सामने नीचे की ओर भैरू जी का स्थान है. मंदिर के दाई ओर ओघडऩाथ और बाई ओर भगवान शंकर पार्वती ,कार्तिकेय, रिद्घी-सिद्घी दायक गणेश और चौसठ जोगणिया स्थापित हैं.
मंदिर के शीर्ष भाग पर 6 छोटे गुंबद
मंदिर का सभा मंडप पृथ्वीराज चौहान का बनवाया हुआ है. मंदिर के शीर्ष भाग पर 6 छोटे गुंबद और एक बड़ा शिखर बना हुआ है और एक सिंह की मूर्ति लगी हुई है. यहां प्रतिदिन घी और तेल के अखंड दीपक जलते है. नित्य चावल और हलवा का भोग लगता है. मंदिर के पट प्रात: और सायंकाल दोनों समय खुलते है. दिन भर मंदिर में प्रतिमाओं के सामने बैठकर भक्त जन पुष्प की पाती मांगते है और मन्नत मांगते है.
श्रद्धालुओं का सेलाब उमड़ता है
भक्त की ओर से चढ़ाए गए प्रसाद में अगर माताजी कृपा से अपने आप पाती-पुष्प आ जाती है तो सोचा हुआ कार्य पूरा होता है. इस पर भक्त की ओर से सवामणी की रसोई की जाती है. धनोपमाता मंदिर में दोनों नवरात्रि में मेला लगता है और वहां श्रद्धालुओं का सेलाब उमड़ता है. धनोप माताजी मंदिर प्रन्यास के अध्यक्ष ठा. सत्येंद्र सिंह राणावत और सचिव रमेश पंडा के निर्देशन में भक्तों के लिए सुविधाएं मुहैया कराई जाती है. धनोप मंदिर क्षेत्र को आकर्षक और पर्यटन की दृष्टि से विकसित करने की कार्य योजना भी तैयार करते हुए क्रियान्वित की जा रही है.
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मंदिर का शिखर 51 फिट ऊंचा
साथ हीं, यहां दोनो रास्तों पर बड़े स्वागत द्वार बना दिए गए है और आस-पास विभिन्न समाजों की अलग-अलग धर्मशालाओं का निर्माण कार्य भी चल रहा है. कई धर्मशालाओं का निर्माण पूर्ण होने के बाद आने वाले भक्तों के लिए उनका उपयोग हो रहा है. धनोप माता मंदिर ट्रस्ट के सानिध्य में मंदिर का नवनिर्माण कार्य प्रगति पर है और माता मंदिर का शिखर 51 फिट और भैरव जी का मंदिर 31 फिट ऊंचा शिखर बनाया जाएगा.
वहीं, यहां दुर्गा अष्टमी और नवमी के दिन मां दुर्गा देवी की पूर्ण आहुति दी जाती है. नैवेद्य, चना, हलवा, खीर आदि से भोग लगाकर कन्याओं को भोजन कराया जाता है. शक्ति पूजा का यह समय, कन्याओं के रुप में शक्ति की पूजा को अभिव्यक्त करता है. आदिशक्ति की इस पूजा का उल्लेख पुराणों में प्राप्त होता है. नवरात्रि में देवी दुर्गा की कृपा, जीव को सदगति प्रदान करने वाली होती है और जीव समस्त बंधनों और कठिनाईयों से पार पाने की शक्ति प्राप्त करने में सफल होता है.
Reporter- Dilshad Khan