अभिनेता अक्षय कुमार की फिल्म सम्राट पृथ्वीराज आने के बाद इस पर बहस छिड़ गई है कि पृथ्वीराज चौहान राजपूत थे या गुर्जर. ये सवाल राजस्थान से लेकर महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश से लेकर दिल्ली के सियासी गलियारों तक इसका असर पहुंच रहा है. एक पक्ष कहता है कि वो चौहान राजपूत थे तो दूसरा पक्ष कहता है कि वो चौहान गुर्जर थे. 


गुर्जर समाज का क्या दावा है


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गुर्जर समाज का कहना है कि जो फिल्म बन रही है वो फिल्म पृथ्वीराज रासो के आधार बन रही है. पृथ्वीराज रासो की रचना चंदरबरदाई ने की थी. गुर्जर समाज के नेता पृथ्वीराज रासो में लिखी बातों को ही तथ्यामक रुप से खारिज कर रहे है. उनका कहना है कि चंदरबरदाई उस कालखंड के कवि थे ही नहीं. उन्हौने इसकी रचना पृथ्वीराज के 400 साल बाद की है. ये रचना पूरी तरह से काल्पनिक है. इसके पक्ष में तर्क देते हुए ये कहा जाता है कि पृथ्वीराज चौहान के दौर में संस्कृत भाषा में काव्य रचनाएं होती थी. जबकि पृथ्वीराज रासो एक पिंगल महाकाव्य है. पश्चिमी राजस्थान की साहित्यिक भाषा डिंगल है. पूर्वी राजस्थान में जहां डिंगल और बृज भाषा मिक्स हो जाती है. उसे पिंगल भाषा कहते है. 


इसके अलावा गुर्जर नेता पृथ्वीराज विजय महाकाव्य का भी हवाला देते है. उनका कहना है कि इस महाकाव्य के 10वें सर्ग के 50 नंबर श्लोक में पृथ्वीराज के किले को गुर्जर दुर्ग कहा गया है. 11वें सर्ग के 7 और 9 नंबर श्लोक में इस बात का भी जिक्र है कि गौरी को गुर्जरों ने हराया था. इसके अलावा भी पृथ्वीराज को गुर्जर साबित करने के लिए कदवाहा, राजोर के शिलालेखों में के साथ साथ तिलक मंजरी, सरस्वती कंठाभरण, पृथ्वीराज विजय के शिलालेखों का भी हवाला दिया जाता है. जहां पृथ्वीराज को गुर्जर दिखाए जाने का दावा किया जाता है. 


गुर्जर समाज का ये भी दावा है कि पृथ्वीराज चौहान गुर्जर थे जिनके वंशज बाद में राजपूत में कंवर्ट हो गए थे. 


क्या है राजपूत समाज का दावा


राजपूत समाज ने ''पृथ्वीराज विजय'' महाकाव्य के 10वें सर्ग के 50वें श्लोक पृथ्वीराज के किले को गुर्जर दुर्ग कहने पर भी अपना तर्क दिया. उनका कहना है कि जिस किले को गुर्जर दुर्ग कहा गया है वो गुर्जर ( गुजरात ) का किला है. उसके नाम का संबंध भोगौलिक स्थिति से है. न कि किसी समाज से. वो किला नाडोल इलाके के शासक नादुला चौहान का था. जब पृथ्वीराज शाकंभरी चौहान थे. 


राजपूत समाज ने गुर्जर के क्षत्रिय होने पर ही सवाल उठाया है. राजपूत समाज के नेताओं का तर्क है कि गुर्जर शब्द गुज्जर और गउचर से बना है. गउचर का मतलब होता है वो जगह जो गायों के चरने की हो. उस दौर में जब राजस्थान के इलाके में अकाल पड़ता तो पशुपालक अपनी गायें लेकर सिंध के हरे भरे इलाके में जाते थे. इसीलिए उस इलाके को गउचर के नाम से भी लोग जानते थे. राजपूत समाज का दावा है कि गुर्जर नाम की उत्पति वहीं से हुई है. उनका तर्क है कि पृथ्वीराज की वंशावली को लेकर पुष्कर, हरिद्वार और गया में उसका रिकॉर्ड भी संरक्षित है. इन रिकॉर्ड को भारत सरकार की वैध मानती है. 


राजपूत समाज इस दावे को भी खारिज करता है कि गुर्जर से राजपूत में कंवर्ट हो गए थे पृथ्वीराज की वंशावली के लोग. उनका कहना है कि हम अगर देवनारायण की फड़ पर भी विश्वास करें तो उसके मुताबिक गुर्जर खुद राजपूतों के वंशज है. देवनारायण की फड़ के मायने राजस्थान में प्रचलित उस धार्मिक परंपरा से है जिसमें कपड़े पर बने चित्रों के जरिए किसी कहानी को बताया जाता है. देवनारायण गुर्जर समाज के साथ बाकी समाजों के भी अराध्य देव है. जिन्हैं भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है. 


दोनों पक्ष ऐतिहासिक साक्ष्यों के साथ अपने अपने दावे पेश कर रहे है. इधर फिल्म की रिलीज से पहले दोनों पक्षों का फिल्म निर्माताओं पर भी दबाव बढता जा रहा है. 


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