Shardiya Navratri 2024: अलवर के महाराज को सपने में नजर आईं थीं मनसा माता, पहाड़ खोदा तो निकली मूर्ति, पढ़ें अनोखी कहानी

Alwar News: आज हम आपको अलवर के ऐतिहासिक मंदिर के बारे में बताते हैं, जो करीब 300 साल पुराना है. राजस्थान के सिंह द्वार अलवर को देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है. अलवर में पांडुपोल हनुमान मंदिर, भर्तहरि धाम, नारायणी माता मंदिर, नीलकंठ महादेव, करणी माता मंदिर और मनसा माता मंदिर प्रसिद्ध है. इन मंदिरों में साल भर लोग पूजा-अर्चना करते हैं. अलवर के अलावा आसपास के जिलों और राज्यों से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं. नवरात्रिके समय मनसा माता मंदिर में खास पूजा-अर्चना होती है.

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खुदाई के दौरान माता की मूर्ति मिली

मनसा माता मंदिर सिटी पैलेस और सागर जलाशय के पास एक पहाड़ी पर मनसा माता का मंदिर है. यह मंदिर 300 साल पुराना है. मंदिर की खूबसूरती और सुंदरता अन्य मंदिरों से अलग है. यहां आने वाले सभी लोगों की मुरादें पूरी होती है. जानकार बताते हैं कि एक दिन अलवर के महाराज बख्तावर सिंह को सपने में मनसा माता नजर आईं. इस पर उन्होंने सिटी पैलेस के पास इस पहाड़ को खुदवाया और इसमें खुदाई के दौरान माता की मूर्ति मिली. इस मूर्ति को इसी जगह पर स्थापित किया गया. उसके बाद से लगातार यहां माता की पूजा-अर्चना होती है.

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लोगों का माता में अटूट विश्वास है

मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं का कहना है कि लोगों का माता में अटूट विश्वास है. इसलिए जो व्यक्ति एक बार यहां आना शुरु करता है, वो सालों तक आता है. मंदिर से पहले पूरे शहर का नजारा नजर आता था, लेकिन अब बड़े भवन और आबादी बढ़ने के साथ ही शहर का कुछ हिस्सा ही मंदिर से दिखाई देता है. मंदिर के पुजारी का कहना है कि पहले मंदिर में पूजा राजपरिवार किया करते थे, लेकिन अब पंडितों की ओर से से मंदिर की पूजा की जाती है.

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नवरात्रि की मान्यता

भारतीय संस्कृति में देवी को ऊर्जा का स्रोत माना गया है. अपने पसंद की ऊर्जा को जागृत करना ही देवी उपासना का मुख्य उप प्रयोजन है. नवरात्रि मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक है. इसके लिए हजारों वर्षों से लोग नवरात्रिकी पूजा-अर्चना करते हैं.

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9 दिन तक शक्ति की पूजा की थी

शारदीय नवरात्रि की शुरुआत भगवान राम ने की थी. भगवान राम ने सबसे पहले समुद्र के तट पर शारदीय नवरात्रि की शुरुआत की और 9 दिन तक शक्ति की पूजा की थी, तब जाकर उन्हें लंका पर विजय प्राप्त हुई. यही मूल वजह है कि शारदीय नवरात्रि में 9 दिन तक दुर्गा मां की पूजा के बाद दसवें दिन दशहरा मनाया जाता है.

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